इसरो का परमाणु रॉकेट कैसे करेगा काम?
एक सूत्र ने कहा, ‘इस पर काम पहले ही शुरू हो चुका है और इसे प्रमुख चुनौती के रूप में लिया गया है जिसे जल्द ही पूरा किया जाएगा।’ परमाणु इंजन को उस तरह का नहीं माना जाता है, जैसे परमाणु विखंडन वाले रिएक्टर होते हैं जिससे बिजली पैदा होती है। रेडियो थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर के अंदर रेडियोएक्टिव मटीरियल जैसे प्लूटोनियम-238 या स्ट्रोन्टियम-90 का इस्तेमाल किया जाता है। ये जब नष्ट होते हैं तो गर्मी पैदा करते हैं। इस इंजन में दो हिस्से होंगे पहला- द रेडियोआइसोटोप हीटर यूनिट जिससे गर्मी पैदा होगी और दूसरा रेडियो थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर होंगे जो इस गर्मी को इलेक्ट्रिसिटी में बदल देंगे।

यह गर्मी इसके बाद ‘थर्मोकपल’ में बदल जाएगी। यह एक ऐसा मटीरियल है जो वोल्टेज पैदा करता है। अगर आसान भाषा में कहें तो एक रॉड की कल्पना करिए जिसका एक सिरा बहुत गरम होता है तो दूसरा सिरा नहीं होता है। लेकिन पूरे रॉड के अंदर ही वोल्टेज होगा। इस वोल्टेज का इस्तेमाल बैटरी को चार्ज करने में किया जा सकता है जो सैटलाइट को जरूरी ताकत मुहैया कराएगी। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में साइबर सिक्यॉरिटी विशेषज्ञ नितांशा बंसल का मानना है कि रेडियो थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर के लिए ग्रहों के एक सीध में होने से कोई मतलब नहीं है।
नासा पहले ही कर रही है परमाणु इंजन का इस्तेमाल
नितांशा ने कहा कि इससे वैज्ञानिकों को लॉन्च विंडो की जरूरत बहुत कम होगी। रेडियो थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर हालांकि कोई नहीं बात नहीं हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के स्पेसक्राफ्ट वोयागेर, कैसिनी और क्यूरिसिटी भी इसी तरह के इंजन से चलते हैं। नासा अब नए परमाणु थर्मल प्रपल्शन तकनीक पर काम कर रही है जिसे साल 2027 तक शामिल किए जाने की योजना है। इस नई तकनीक की मदद से अंतरिक्षयात्री बहुत तेजी से सुदूर अंतरिक्ष में यात्रा कर सकेंगे। इससे नासा के अंतरिक्षयात्रियों के मंगल ग्रह और चांद पर आसानी से जाने का रास्ता साफ होगा। यही नहीं अंतरिक्षयात्रियों के लिए समय कम लगेगा और खतरा भी कम होगा। चीन भी इसी तरह की तकनीक पर बहुत तेजी से काम कर रहा है।(एएमएपी)



