कांग्रेस के लिए लड़ाई आसान नहीं
गौरतलब है कि राजस्थान सहित कई राज्य में कांग्रेस का भाजपा से सीधा मुकाबला है। राजस्थान में पार्टी पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ने का दम भर रही है, पर कांग्रेस के लिए यह लड़ाई आसान नहीं है। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपना खाता तक खोलने में नाकाम रही थी। वहीं, भाजपा ने राजस्थान की सभी 25 सीट फतह करते हुए अपने वोट बैंक में भी वृद्धि की है। इतना ही नहीं, वर्ष 2019 में करौली-धौलपुर और दौसा लोकसभा सीट को छोड़ दिया जाए, तो बाकी सभी सीट पर जीत का अंतर एक लाख से ज्यादा रहा है। भीलवाड़ा में जीत का अंतर छह लाख था। यह पार्टी के लिए सोच का विषय है।
कांग्रेस के लिए वोट प्रतिशत बढ़ाना जरूरी
राजस्थान में पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 34 फीसदी के आसपास रहा है। कुछ माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 39 प्रतिशत वोट मिले। वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को 39 फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में साफ है कि कांग्रेस को लोकसभा चुनाव का मैदान जीतने के लिए अपना वोट प्रतिशत बढ़ाना होगा। रणनीतिकार मानते हैं कि पिछले दो लोकसभा चुनावों के मुकाबले इस बार के चुनाव अलग हैं। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे और 2019 में पुलवामा की घटना ने पूरी चुनावी तस्वीर बदल दी थी पर, इस बार महंगाई, बेरोजगारी के साथ किसानों की समस्याएं बड़े मुद्दे हैं। ऐसे में इस चुनाव में कांग्रेस के पास अपनी स्थिति को बेहतर करने का मौका है।
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साल 2009 में कांग्रेस ने 21 सीट जीती थी
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 47 फीसदी वोट के साथ राज्य में 21 सीट जीतने में सफल रही थी। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि विधानसभा चुनाव में हार एक बड़ा झटका है, पर पार्टी लगातार कार्यक्रमों के जरिए लोगों के बीच जा रही है। उन्होंने कहा कि, पार्टी को पूरा भरोसा है कि वह अपने वोट प्रतिशत में वृद्धि के साथ लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहेगी। (एएमएपी)