दक्षिण अफ्रीका-नामीबिया को भी लगा समय

दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया में मिलाकर वैश्विक चीता आबादी का हिस्सा 40% है। दुनिया भर में जानवरों की निरंतर गिरावट को देखते हुए दक्षिण अफ्रीका ने कमजोर प्रजातियों के संरक्षण का प्लान बनाया। इसी कड़ी में चीतों को देश के भीतर और बाहर फिर से बसाना शुरू किया गया। कुछ सालों के बाद उन्हें सफलता मिली और यह देश आगे की गिरावट को रोकने में सक्षम हो गया। फिलहाल चीतों की मेटा-जनसंख्या हर साल 8% बढ़ रही है जो कि संख्या के लिहाज से 40-60 है।
कुल 20 चीते लाए गए कूनो
चीता प्रोजेक्ट के तहत 8 नामीबियाई चीतों (पांच मादा और तीन नर) को पिछले साल 17 सितंबर को कूनो के बाड़ों में छोड़ा गया था। फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते केएनपी लाए गए। बाद में मार्च में नामीबियाई चीता ‘ज्वाला’ के 4 शावक पैदा हुए, लेकिन उनमें से तीन की मई में मौत हो गई थी। 11 जुलाई को एक नर चीता ‘तेजस’ मृत पाया गया था जबकि 14 जुलाई को एक और नर चीता ‘सूरज’ मृत पाया गया था। इससे पहले, नामीबियाई चीतों में से एक ‘साशा’ की 27 मार्च को किडनी से संबंधित बीमारी के कारण मौत हो गई थी, जबकि दक्षिण अफ्रीका के एक अन्य चीते ‘उदय’ की 13 अप्रैल को मौत हो गई थी। दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीते ‘दक्ष’ की 9 मई को मौत हो गई थी। मालूम हो कि देश में इस जंगली प्रजाति के विलुप्त होने के 70 साल बाद भारत में चीतों को फिर से लाया गया।(एएमएपी)



