(23 नवंबर पर विशेष)
इस दौरान एक घटना हुई जिससे इस महान वैज्ञानिक के स्वाभिमानी व्यक्तित्व का पता चलता है। उस दौर में भारतीय प्राध्यपकों को यूरोपीय प्राध्यापकों की तुलना में दो तिहाई वेतन दिया जाता था। जगदीश चंद्र बोस इस भेदभाव और उनपर होने वाली नस्लीय टिप्पणियों से परेशान थे। लिहाजा, उन्होंने भारतीय प्राध्यापकों को भी समान वेतन की मांग करते हुए सालभर तक वेतन लेने से मना कर दिया। इस दौरान आर्थिक तंगी के कारण कलकत्ता का मकान छोड़ कर शहर से दूर जाने का फैसला लिया, पर कम वेतन लेने को राजी नहीं हुए। आखिरकार कॉलेज प्रशासन को उनके सामने झुकना पड़ा और बराबर वेतन देने की बात कही।
उन्होंने पौधों की वृद्धि को मापने के लिए एक उपकरण क्रेस्कोग्राफ का आविष्कार किया। चंद्रमा पर एक क्रेटर का नाम उनके सम्मान में रखा गया था। उन्होंने बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जो भारत का सबसे पुराना प्रमुख शोध संस्थान है। (एएमएपी)