अजय विद्युत ।
शिव- जितने अगम्य, उतने ही सबको सब जगह सुलभ। आप एक लोटा जल चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं और कुछ भी मांग सकते हैं। पहाड़, पत्थर, पेड़, आकाश, जल, पृथ्वी पर जो कुछ है- वह सब शिव का ही प्रतिरूप हम मानते हैं। चलते हैं जागेश्वर। हिमालय की गोद में अल्मोड़ा से कोई तीस पैंतीस किलोमीटर दूर शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। शिव ने हजारों साल यहां तपस्या की। यहां शिवलिंग को अपने भ्रमण के दौरान आदि शंकराचार्य ने कीलित किया है।
एक सौ पच्चीस मंदिरों का समूह
ऊंचे पहाड़ और देवदार के घने जंगलों के बीच भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में आठवें ज्योतिर्लिंग के रूप में नागेशम दारुकावन है। नागेश भगवान शिव के एक सौ आठ नामों में एक नाम है। और दारुकावन का मतलब है देवदार का जंगल। यह एक सौ पच्चीस मंदिरों का समूह है जिसमें एक सौ आठ शिवलिंग हैं और बाकी अन्य देवी देवताओं के मंदिर हैं। भगवान शिव के आठवें ज्योतिर्लिंग के रूप में वर्तमान में यह मंदिर जागेश्वर के नाम से विख्यात है। पौराणिक दृष्टि से यह मान्यता है और शास्त्रों में भी वर्णन आता है कि हिमालय के पास कोई स्थान है जहां भगवान शिव ने अनादिकाल तक तपस्या की है। दारुकावन में भगवान शिव द्वारा लंबे समय तक की गई तपस्या के कारण इस पूरे क्षेत्र में उनकी उपस्थिति जागृत रूप में मानी जाती है। पूर्व में हाटकेश्वर और याज्ञेश्वर आदि अलग अलग नामों से जागेश्वर को जाना जाता था।
मंदिर परिसर में भगवान शिव का मंदिर जागेश्वर है। इसके बाद हनुमान जी का मंदिर है जो कालांतर में बना है। उसके पीछे पुष्टिमाता का मंदिर है। वे मूलरूप में मां पार्वती हैं और पुष्टि के रूप में उनकी पूजा होती है। श्रीमद देवीभागवत में यह वर्णन आता है कि मां सती के जो इक्यावन अंग पृथ्वी पर गिरे थे उनमें जो अंग दारुकावन में गिरा वह पुष्टि के रूप में कहलाया। यहां भगवान महामृत्युंजय का मंदिर है जो भगवान शिव के एक सौ आठ नामों में एक नाम है। महामहामृत्युंजय मंदिर और उसका शिखर जागेश्वर के मंदिर समूहों में सबसे अधिक ऊंचा है। महामृत्युंजय की जो शक्ति यहां पर थी वह बहुत जागृत अवस्था में थी। ऐसी मान्यता है कि आठवीं शताब्दी में जब जगत्गुरु आदि शंकराचार्य यहां आए और रात्रि विश्राम किया तो उन्होंने देखा कि यहां महामृत्युंजय की शक्ति जागृत अवस्था में है और लोग उसका दुरुपयोग भी कर रहे हैं। कलियुग का प्रभाव आगे जैसे जैसे और बढ़ेगा लोग इस शक्ति का दुरुपयोग और और करेंगे। उन्होंने वेदोक्त मंत्र द्वारा उस शक्ति को कीलित कर दिया। तब से ऐसी मान्यता है कि लोग इस शाक्ति से लोकहित में, राज्यहित में, देशहित में जो भी मांगते हैं, वह कामना पूरी होती है। इसकी एक वैदिक प्रक्रिया बनी हुई है। वर्तमान में यहां पुजारी उस प्रक्रिया का पालन कर भक्तों के कल्याण के लिए भगवान महामृत्युंजय से प्रार्थना करते हैं, पूजा करते हैं, जप अनुष्ठान यज्ञ इत्यादि करते हैं। मृत्युंजय के मंदिर के पास लघु केदार नाम से एक शिला है जहां लघु केदार के रूप में भगवान शिव की पूजा होती है।
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कल सोमवार (7 दिसंबर) के दिन,बाबा जागेश्वर के दर्शन हुए।उत्तराखंड में सुरम्य देवदार वन में स्थित जागेश्वरधाम के बारे में मान्यता है कि यह प्रथम मंदिर है जहां से शिवपूजन की परंपरा आरंभ हुई, महादेव यहां जागृत हुए, इसलिए इसका नाम #जागेश्वर पड़ा। इस तपोभूमि की दिव्य ऊर्जा का प्रसाद लेने मैं आती रहती हूँ…
ॐ नमः शिवाय
भगवान शिव की जागृत उपस्थिति -प्रकाश भट्ट
श्रीजागेश्वरधाम मंदिर प्रबंध समिति के पूर्व प्रबंधक प्रकाश भट्ट बताते हैं- मुख्यरूप में जागेश्वर को लेकर यह मान्यता है कि भगवान शिव मां सती के वियोग में दुखी होकर भटकते हुए दारुकावन में पहुंचे थे तो यहां उन्हें बहुत शांति मिली थी। उन्होंने इस स्थान को अपनी तपस्थली बनाया और हजारों साल तक दारुकावन क्षेत्र के इस स्थान पर तपस्या की और समाधिस्थ रहे। भगवान शिव की जागृत उपस्थिति के कारण कालान्तर में यह स्थान जागेश्वर यानी जहां ईश्वर जागृत अवस्था में हैं- जाना गया। यहां सोलहवीं शताब्दी से लगातार पूजा अर्चना चली आ रही है। मंदिरों का जो वर्तमान ढांचा और बनावट है वह कत्यूरी राजाओं के समय की है। कत्यूरी राजवंश द्वारा पत्थरों से संरचित ये मंदिर बनाए गए हैं। फिर चंद्र राजाओं ने यहां तीन समय की निर्धारित पूजा की व्यवस्था बनाई थी। सुबह प्रात:काल पूजा, दिन में भगवान शिव की भोग पूजा और सायंकाल आरती।
आठवें ज्योतिर्लिंग पर भ्रम
वैसे भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से आठवें ज्योतिर्लिंग को लेकर कुछ मतभेद भी है। कुछ लोगों का मानना है कि गुजरात में द्वारिका के पास एक स्थान नागेश्वर नागनाथ का मंदिर है। वे उसे आठवें ज्योतिर्लिंग के रूप में मानते हैं। उनका तर्क है कि दारुका नाम की राक्षसी थी जो एक ब्राह्मण का वध कर रही थी। ब्राह्मण को बचाने के लिए भगवान शिव उस स्थान पर प्रकट हुए और तब से वह स्थान ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाने लगा। वहीं तमाम लोग जागेश्वर से अपनी मान्यता जोड़ते हैं। श्री भट्ट ने बताया कि शास्त्र और स्कंदपुराण के मानस खंड की कुछ ऋचाएं भी इस ओर इंगित करती हैं कि आठवां ज्योतिर्लिंग हिमालय के पास किसी वन में होना चाहिए। तो उसकी प्रामाणिकता इस दारुकावन से स्वत: ही सिद्ध होती है।
कामनाओं की पूर्ति
भगवान शिव से जो लोग अभीष्ट फल की मनोकामना या इच्छा रखते हैं, भगवान शिव का रुद्राभिषेक पूजन करते हैं उसके लिए महामृत्युंजय मंदिर की बड़ी मान्यता है। महामृत्युंजय भगवान शिव का इस प्रकार का स्वरूप है कि जब श्रद्धालु या भक्त भगवान शिव की आराधना ग्रहों की शांति के लिए, अपने जीवन में शांति और उन्नति के लिए करता है तो महामृत्युंजय स्वरूप के रूप में करता है।
पूजन का महत्व
प्रकाश भट्ट ने बताया कि वैदिक और हिंदू धर्म से जुड़ी हमारी जितनी पूजाएं हैं कालसर्प जाप, अनुष्ठान, यज्ञ हवन, रुद्राभिषेक, पार्थिव शिवपूजन- ये सारी पूजाएं इस स्थान पर होती हैं। मां पार्वती की कनकधारा स्तोत्र, सूत्रलक्ष्मी पाठ होता है। महामृत्युंजय जाप, सुख शांति अनिष्ट निवारण के लिए रुद्राभिषेक भगवान के महामृत्युंजय स्वरूप में होता है। इसके लिए अलग अलग धनराशि नियत की गई है। मुख्यरूप में श्रावण मास में पार्थिव पूजन- मिट्टी, चावल, मक्खन और गोबर के एक सौ आठ शिवलिंग बनाकर विशेष मनोकामना इच्छा के लिए सबसे अधिक होता है। इस पूजन को कराने के लिए पांच सौ पचास रुपये की पर्ची कटती है जिसमें ब्राह्मण की दक्षिणा और ट्रस्ट का हिस्सा निहित होता है। इसके अलावा पूजन सामग्री का और विधियों का अलग से मूल्य निर्धारित है। श्रद्धालुओं को अपने स्तर से व्यवस्था करनी होती है वरना स्थानीय ब्राह्मणों की मदद लेकर वे पूजन संपन्न कराते हैं।
सभी देवता हैं यहां, कुबेर भी
यहां कुबेर भी विराजमान हैं और उनकी पूजा अर्चना होती है। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव इस दारुकावन में लंबे समय तक समाधिस्थ हो गए, ध्यान में मग्न हो गए और उधर देवी देवताओं पर संकट आया तो वे शिव को तपस्या से जागृत करने के लिए इस स्थान पर आए थे और भगवान शिव की स्तुति की थी। इसीलिए यहां पर हमारे सभी देवी देवता इंद्र, वरुण, कुबेर, ब्रह्मा, विष्णु, लक्ष्मी, नवदुर्गा, नीलकंठ, सूर्य, यम व अन्य के अलग अलग मंदिर बने हुए हैं। उनकी स्तुति से भगवान शिव जागृत हुए और सभी को इच्छित वरदान दिया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से यहां पर मेरी पूजा होगी वैसे ही आप सब देवी देवताओं की भी यहां पर किसी न किसी रूप में पूजा होगी।
नरसिंहराव की पुत्रवधू को संतान सुख की प्राप्ति
जागेश्वरधाम मंदिर परिसर में अपने कार्यालय में प्रकाश भट्ट काम निपटाते और फिर उत्साह से बताने लगते। जब पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री थे तो उनकी पुत्रवधू व परिवार के लोग जागेश्वरधाम पूजा अर्चना करने आए थे। महामृत्युंजय मंदिर में उन्होंने विशेष पूजा की थी और मनचाहा वरदान उन्हें मिला था। पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के परिवार के लोग भी यहां से जुड़े हैं और आते रहते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के परिवार के लोग भी प्रतिवर्ष एक दिन के लिए यहां आते हैं। अभी चार महीने पहले वे आए हुए थे। डॉ. कर्णसिंह और अन्य वे लोग जिनकी जानकारी में यह मंदिर है किसी न किसी रूप में उनकी ओर से पूजा अर्चना यहां होती है। कर्णसिंह खुद तो नहीं आए लेकिन अपने मित्रों के माध्यम से अपनी ओर से पूजा अर्चना वे यहां पर करवाते हैं। ऐसे प्रमाण हैं कि आचार्य विनोबा भावे भी यहां पर आए थे। राजघरानों और उद्योगपतियों के परिवार यहां से जुड़े हैं। बिड़ला परिवार सबसे ज्यादा इस मंदिर से जुड़ा हुआ है।
मनोकामनाएं
प्रकाश भट्ट ने बताया कि मेरी आंखों देखी प्रत्यक्ष घटना यह है कि एक दंपती की जागेश्वरधाम में बहुत श्रद्धा थी। बारह वर्ष पहले वे अपने बालक को लेकर सुबह सुबह यहां पर पहुंचे और स्थानीय ब्राह्मण के द्वारा भगवान महामृत्युंजय की पूजा अर्चना की। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों ने बता दिया है कि इस बालक को कैंसर है और यह बहुत ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाएगा। अब हम भगवान महामृत्युंजय की शरण में आए हैं। ब्राह्मणों द्वारा विशेष रूप से उनकी पूजा कराई गई। मेरी जानकारी में आया है कि तबसे वे हर वर्ष यहां अपने पुत्र को लेकर पूजा अर्चना करने आते हैं और पुत्र स्वस्थ है। एक और वृत्तांत यह है कि यहां एक ब्राह्मण थे गंगाधर भट्ट। उनके पास आये एक दम्पती को तो चौबीस पच्चीस साल बाद संतान सुख प्राप्त हुआ था भगवान महामृत्युंजय के मंदिर में आने के बाद।
श्रद्धा और एक लोटा जल काफी
यहां भगवान शिव की पूजा सात्विक रूप से होती है। लेकिन कोई भक्त अपने साथ कुछ सामग्री न जाए, कुछ न करे, केवल श्रद्धा से शिव की आराधना करे, जल चढ़ाए और जोर जोर से घंटियां बजाए… भगवान उसकी मनोवांछित इच्छाएं अवश्य पूरी करते हैं। उसे उतना ही फल मिलता है जितना एक हजार, दस हजार, बीस हजार खर्च करने वाले किसी अन्य श्रद्धालु को- ऐसी यहां पौराणिक मान्यता है। इस स्थान पर श्रद्धा और भाव सर्वापरि है।
ये बहुत सुरम्य स्थान है। मार्ग बिल्कुल सुरक्षित है। पिछले कई सालों में यहां किसी भक्त की दुर्घटना या किसी अन्य नुकसान की कोई सूचना नहीं है। हर साल दो लाख से ऊपर श्रद्धालु यहां आते हैं।
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