डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
अब घाटी के भी हर स्कूल में राष्‍ट्रगान ‘जन गण मन’ गाया जाएगा। जम्मू कश्मीर में अब सभी स्कूलों के लिए राष्ट्रगान गाना अनिवार्य कर दिया गया है। एक भारत और श्रेष्‍ठ भारत’ की संकल्‍पना को साकार करने की दिशा में यह सबसे बड़ा कदम विद्यालयीन स्‍तर पर उठाया गया है।

यह राज्‍य सरकार का सबसे बड़ा कदम इसलिए है क्‍योंकि जिन बच्‍चों के माध्‍यम से भविष्‍य में विकसित राज्‍य की जो नींव खड़ी होती है, उनमें विचारों का ही सबसे अधिक महत्‍व है। यदि यह विचार अलगाव से पूर्ण होंगे तो हिंसा का करण बनेंगे और यदि यही विचार राष्‍टीय एकत्‍व एवं अपने आसपास के वातावरण को बेहतर बनाने तथा अपने देश की एकात्‍मता का अनुभव करेंगे तो किसी भी देश को सशक्‍त बनाने का कारण बनते हैं।

जम्‍मू-कश्‍मीर में विशेषकर घाटी क्षेत्र के बारे में यह सर्वविदित है कि अलगाववादी, आतंकवादी, जिहादी, एक वर्ग विशेष तक सीमित मानसिकता, इस्‍लाम के शासन एवं खलीफा की पुनर्स्‍थापना जैसे एकल विचारों तथा इसके लिए जहां जरूरी हो, वहां हिंसा करते रहने की मानसिकता, यहां लम्‍बे समय से चली आ रही है। सनातन हिन्‍दू धर्म को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने का कार्य यदि संपूर्ण जम्‍मू-कश्‍मीर के किसी क्षेत्र में हुआ है तो वह यही घाटी क्षेत्र है। हिन्‍दुत्‍व एवं सनातन धर्म के प्रति यहां बहुसंख्‍यक मुसलमानों में इतनी अधिक नफरत व्‍याप्‍त रहती आई है कि जम्‍मू-कश्‍मीर की मूल संस्‍कृति के संस्‍थापक पंडितों को कई नरसंहारों एवं एकल मौतों के बाद घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर हो जाना पड़ा था। जिसमें कि जान बचाने के लिए वे कई करोड़ की अपनी संपत्‍त‍ि, बाग, बगीचे, केशर के उद्यान आदि सब कुछ छोड़ने के लिए विवश हुए।

हिन्‍दू लड़कियों से बलात्‍कार, सरे आम उन्‍हें उठा ले जाना, गैर मुसलमानों को गाली देना, अपमानित करना और उनके साथ हिंसक व्‍यवहार करते हुए इस्‍लामिक साम्राज्‍य की स्‍थापना के स्‍वप्‍न देखना जैसे यहां की दिनचर्या का एक आम हिस्‍सा हो चुका था। 1990 में घाटी से कश्मीरी पंडितों का सबसे अधिक पलायन हुआ। सरकारी आंकड़े के मुताबिक 1990 में 219 कश्मीरी पंडित हमले में मारे गए थे जिसके बाद बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हुआ। एक अनुमान के मुताबिक जनवरी और मार्च 1990 के बीच 1 लाख 40 हजार से अधिक कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर जाने को मजबूर हुए।

Singing 'Jana Gana Mana' in the schools of the valley will do nothing,  emotions will also have to be aroused. | घाटी के स्कूलों में 'जन गण मन' गान  से कुछ नहीं

2011 में सरकार के अनुमान के मुताबिक घाटी में करीब 2700 से 3400 पंडित थे। कश्‍मीरी पंडित संघर्ष समिति के अनुसार, जनवरी 1990 में घाटी के भीतर 75,343 परिवार थे। 1990 और 1992 के बीच 70,000 से ज्‍यादा परिवारों ने घाटी को छोड़ दिया। 1941 में कश्‍मीरी हिंदुओं का आबादी में हिस्‍सा 15% था और 1991 आते- आते हिस्सेदारी आधे प्रतिशत से भी कम हो गई थी, जिसके बाद हिंसक घटनाओं के दौर ने तो इसे आगे 99 प्रतिशत से भी अधिक कम कर दिया था। गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में 1990 से लेकर 2020 तक 31 सालों में 13 हजार 821 आम नागरिकों को आतंकियों ने मार दिया है. वहीं, सुरक्षाबलों ने अपने 5 हजार 359 जवान खोए हैं. इन्हीं 31 सालों में 25 हजार 133 आतंकी भी ढेर किए गए हैं। बीते चार सालों में भी लगभग 100 से अधिक हमले आतंकवादियों द्वारा अंजाम दिए गए, संयोग से सभी आतंकी इस्‍लाम को माननेवाले थे।

सिर्फ कश्‍मीरी पंडितों की ही नहीं, घाटी में पंजाबी, ईसाई एवं अन्‍य गैर मुसलमानों की संख्‍या भी लगातार इसलिए घटी क्‍योंकि वे भी घाटी में हिंसा के शिकार बनाए जा रहे थे। वह तो अच्‍छा हुआ कि केंद्र की मोदी सरकार ने यहां से धारा 370 हटा दी। जिन्‍हें कई वर्षों से उनके मौलिक अधिकार भी नहीं मिले थे, वह एक समान भारतवासी होने के नाते मिलना आरंभ हो गए। फिर भी आतंकवादी घटनाएं कम तो हुईं पर समाप्‍त नहीं हो सकी हैं। अभी हाल ही में  रियासी में श्रद्धालुओं की बस पर आतंकी हमले में दस लोगों की मौत हो गई। मारे गए सभी जन हिन्‍दू थे और यह इस्‍लामिक आतंकवादी अटैक उन पर सिर्फ इसलिए ही हुआ था क्‍योंकि वे हिन्‍दू थे।

देशभक्‍त‍ि का भाव भर देनेवाली गतिविधियों की जो कमी घाटी में सदा से रहती आई है, यह भी अलगाववाद का बड़ा कारण रहा है। बाल मन को जब हिंसा और नफरत की शिक्षा देते रहने का काम होता रहेगा तो वह बच्‍चा जब बड़ा होगा तब सिर्फ पत्‍थर फैंकने और सामनेवाले दूसरे मजहब के लोगों से नफरत ही करेगा। उससे कैसे भाईचारे और प्रेम की उम्‍मीद की जा सकती है, जब अंदर से दूसरे के प्रति वह भाव है ही नहीं। भारत भक्‍ति का भाव यहां के प्रत्‍येक ”बाल मन” में भरने के लिए राष्‍ट्रगान और राष्‍ट्रगीत से अच्‍छा अन्‍य कोई उदाहरण हो ही नहीं सकता है ।

Schools for Classes 1-12 to reopen on June 7 in TN

जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सर्कुलर जारी करके हर स्कूल में सुबह की सभा की शुरुआत राष्ट्रगान से करने के लिए कहा है और सुबह की सभा में प्रार्थना करना अनिवार्य किया गया है। सर्कुलर में कहा गया कि प्रार्थना सभा छात्रों में एकता और अनुशासन की भावना पैदा करती है। इससे नैतिकता, समाज में एकता, और मानसिक शांति को बढ़ावा मिलता है। इसलिए यह निर्देश सभी स्कूलों में समान रूप से लागू होंगे। किंतु इसके साथ यह भी ध्‍यान रखना होगा कि भाव बिना सब व्‍यर्थ है।

क्‍या हमारे बच्‍चे ”जन गण मन” के भाव से भी परिचित हैं? वास्‍तव में एक शिक्षक के रूप में प्रत्‍येक शिक्षक का यह दायित्‍व है कि वह पहले अपने स्‍कूली बच्‍चों को यह अवश्‍य बताएं कि सुबह की प्रार्थना एवं राष्‍ट्रगान का मूल भाव क्‍या है। बच्‍चे इस बारे में कितना जानते हैं। ऐसे ही हर बार विवादों में घेरने का प्रयास राष्‍ट्रगीत ”वन्‍देमातरम्” को लेकर भी होता हुआ खासकर अल्‍पसंख्‍यकों में मुसलमानों के बीच जरूर देखने को मिलता है। ”वन्‍देमातरम्” का विरोध करनेवालों का प्राय: यही तर्क रहता है कि उनका मजहब किसी देवी स्‍वरूप की प्रार्थना करने की इजाजत नहीं देता। किंतु इस्‍लाम के लोग भूल जाते हैं कि वे अपने घरों में तमाम चित्र मजहब से जुड़े लगाते हैं, उसका क्‍या अर्थ है? वह भी तो तस्‍वीर लगाकर उस स्‍थान एवं शब्‍दों को पूज रहे हैं! फिर मृत्‍यु पश्‍चात भी इसी हिंद की जमीन में दफन होना है, ऐसे में जो तर्क ”वन्‍देमातरम्” नहीं गाने के समर्थन में तथाकथि‍त मुसलमानों द्वारा दिए जाते हैं, उसकी तार्किकता समझ नहीं आती है। इसलिए आज यह जरूरी है कि ”जन गण मन” एवं ”वन्‍देभारत” के भावार्थ भी बच्‍चों को बताए जाएं। तभी उनके ह्दयों में और मत‍िष्‍क में एक राष्‍ट्र का भाव जाग्रत कर सकेंगे ।
(लेखक फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)