31 जुलाई 1986 प्रातः सुमिला, जुहू, बंबई

पिछले तीस वर्षों से मैं भारत में कार्य करता रहा हूं। इस दौरान पश्चिम से हजारों लोग मुझे सुनने के लिए भारत आने लगे। उन्होंने मुझे उनके देश में आने का निमंत्रण दिया। मैंने सोचा कि पूर्व के लिए यह एक अच्छा अवसर है… क्योंकि पश्चिम का पूर्व पर प्रभुत्व रहा है। सैकड़ों वर्षों से पश्चिम ने भौतिक रूप से, राजनैतिक रूप से गुलाम बना कर रखा है। पूर्व की ओर से इसका एक ही उत्तर हो सकता है कि वह पश्चिम पर आध्यात्मिक विजय पाए। इसलिए मैं वहां गया था।

वे हमें रोटी दे सकते हैं हम उन्हें आत्मा दे सकते हैं। वे हमें रहने के लिए आश्रय दे सकते हैं, लेकिन हम उन्हें जीवन दे सकते हैं। वे खोखले हैं, उनके भीतर कुछ भी नहीं है। हम भले ही गरीब हों लेकिन आध्यात्मिक रूप से समृद्ध हैं। पश्चिम इस प्रयास में लगा है कि हम निर्धन से और निर्धन होते चले जाएं, क्योंकि सिर्फ गरीब लोगों को ही ईसाई बनाया जा सकता है।

और वे सब के सब मेरे दुश्मन बन गए। क्योंकि मेरी बातें गरीबों को, अनाथों को, भिखारियों को नहीं, बल्कि प्रोफेसरों,  चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, कलाकारों, संगीतज्ञों को- जो वहां के श्रेष्ठतम प्रतिभाशाली लोग हैं- उनको प्रभावित कर रही थीं। उनके लिए यह एक गंभीर अपमानजनक बात थी। अन्यथा पूरी दुनिया में इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि एक व्यक्ति के खिलाफ पूरी दुनिया खड़ी हो। इन अर्थों में मैं सौभाग्यशाली हूं।

इसका कारण बहुत सीधा है। हरे कृष्ण आंदोलन ने क्राइस्ट के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला है। इसके विपरीत हरे कृष्ण आंदोलन ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि क्राइस्ट सिर्फ कृष्ण का ही दूसरा नाम है। बंगला भाषा में बहुत से लोगों के नाम हैं कृष्टो, जो कृष्ण का ही एक रूप है। हरे कृष्ण आंदोलन के लोग पश्चिम को यही समझाते रहे हैं कि क्राइस्ट सिर्फ कृष्ण का ही दूसरा नाम है। स्वभावतः लोग खुश हुए। उन्हें कोई कठिनाई न थी।

कृष्णमूर्ति ने कभी किसी धर्म का नाम लेकर न तो निंदा की, न आलोचना की। यह शुद्ध राजनीति है। विवेकानंद ने ईसाइयत की उतनी ही प्रशंसा की है, जितनी अन्य किसी बात की। फिर वे लोग क्यों इनके खिलाफ होते? मैं सिर्फ सत्य कहता हूं। मैं वह नहीं कहता हूं, जो तुम सुनना चाहते हो, मैं तो जो वास्तविकता है, उसे ही कह रहा हूं।

मैं यह नहीं कह सकता कि जीसस पानी पर चले। यह बकवास है। यदि यह सच है तो पोप को कम से कम स्वीमिंग पूल पर तो चल कर दिखाना ही चाहिए। जीसस क्राइस्ट के प्रतिनिधि होने के नाते उन्हें कम से कम एक छोटा सा उदाहरण तो देना चाहिए। जीसस का जन्म एक कुंआरी कन्या के गर्भ से हुआ। इसे वे नैतिकता कहते हैं।

अभी कल ही मैं एक मजाक पढ़ रहा था। एक सत्रह वर्षीय युवती गर्भवती हो गई। इससे उसकी मां को भारी धक्का लगा। वह उसे डाक्टर के पास ले गई। डाक्टर ने उसकी जांच की। लड़की ने डाक्टर को बताया कि आज तक मैं किसी पुरूष से नहीं मिली हूं, किसी पुरुष ने कभी मुझे स्पर्श तक नहीं किया, न कभी चूमा, फिर गर्भवती कैसे हो सकती हूं? डाक्टर खिड़की के पास गया, उसने खिड़की खोली, और वह तारों की ओर देखने लगा। ऐसे कुछ क्षण बीत गए। लड़की की मां ने पूछा कि आखिर बात क्या है? आप वहां कर क्या रहे हैं।

डाक्टर ने उत्तर दिया कि ऐसा केवल एक बार हुआ है- जब जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ था। लेकिन उस समय एक विशेष सितारा आकाश में दिखाई दिया था। मैं देख रहा हूं कि वही सितारा फिर से आकाश पर चमक रहा है या नहीं। कैसे बिना किसी पुरुष के संपर्क के यह लड़की गर्भवती हो सकती है? लेकिन न तो मुझे कोई सितारा दिखाई पड़ता है- न मैं यही देखता हूं कि पूरब से तीन ज्ञानवान लोग जीसस की पूजा के लिए आए हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से यह बिलकुल अनर्गल बात है। मैंने पोप को चुनौती दी है, मैं वैटिकन में आकर उनके ही लोगों के बीच उनसे विवाद करने के लिए तैयार हूं। आप जीसस के विषय में एक भी बात सिद्ध नहीं कर सकते, और आपका सारा धर्म अंधविश्वास पर खड़ा है। जीसस लोगों को स्पर्श करते हैं और वे रोगमुक्त हो जाते हैं। वे मुर्दों को जीवित कर देते हैं। स्पर्श से ही कोई लोगों को रोगमुक्त करे, पानी पर चले, क्या यह सबसे बड़े समाचार का विषय नहीं होगा। लेकिन उस समय के यहूदी साहित्य में उनके नाम का भी उल्लेख नहीं मिलता है। ईसाइयों की बाइबिल के अलावा किसी भी शास्त्र में उनके नाम का उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा आदमी जो पानी को शराब में बदल देता है, उसके नाम का उल्लेख न हो यद्यपि पानी को शराब बनाना कोई चमत्कार नहीं है, यह एक जुर्म है।

कृष्णमूर्ति या महेश योगी या योगानंद या विवेकानंद- इनमें से एक ने भी इन दुखती हुई रगों पर हाथ नहीं रखा। इसलिए उनकी निंदा नहीं हुई। और ईसाइयत कुल जमा इतनी ही है।

हमने धर्म की ऊंचाइयों को जाना है। हम यह स्वीकार नहीं करते कि जीसस को धार्मिक होने के लिए पानी पर चलना होगा। अन्यथा गौतम बुद्ध का क्या होगा? वे तो कभी पानी पर नहीं चले। कृष्ण का क्या होगा? वे कभी पानी पर नहीं चले। इन लोगों ने मृत लोगों को कभी पुनर्जीवित नहीं किया।

यदि जीसस धर्म की कसौटी हैं तो सभी धर्म निरर्थक हैं। लेकिन जीसस कसौटी नहीं हैं। और उनका दावा है कि केवल वह परमात्मा के इकलौते पुत्र हैं। जहां तक मेरा संबंध है, मैंने हमेशा पश्चिमी लोगों को यह कहा कि जीसस सनकी हैं। स्वाभाविक है कि उन्हें बुरा लगे। परमात्मा केवल एक ही पुत्र पैदा क्यों करेगा? अनंत काल से वह प्रयास करता रहा है और वह केवल एक ही पुत्र पैदा कर सका। और यहां भारत में भिखारी हर वर्ष और बड़े-बड़े परमात्मा पैदा किए चले जा रहा हैं।

और जिस ढंग से ईश्वर ने अपने पुत्र को रचा, वह नैतिक नहीं है। यह बिलकुल अनैतिक है। तुम जरा किसी दूसरे व्यक्ति की पत्नी को गर्भवती करने का प्रयास करो तो तुम्हें तुरंत पता चल जाएगा कि यह नैतिकता है या अनैतिकता। ईसाइयों की त्रिमूर्ति में स्त्री के लिए कोई स्थान नहीं है। वहां परमात्मा है पिता के रूप में, फिर परमात्मा है पुत्र के रूप में, और होली घोस्ट के रूप में। यह होली घोस्ट कौन है? स्त्री या पुरुष? ऐसा लगता है कि वह दोनों ढंग से कार्य करता है। संभवतः उभयलिंगी।

चीजों को वैसा ही देखना, जैसी कि वे हैं, एक अलग ही बात है। मेरा किसी से भी अपनी बात को मनवाने में कोई रस नहीं है। मैं सिर्फ लोगों तक सत्य को पहुंचा देना चाहता हूं और सत्य पीड़ादायक है। झूठ बहुत ही मीठा होता है उसे और भी मीठा बनाया जा सकता है, क्योंकि झूठ गढ़ने वाले तुम खुद हो।

वे तीन ज्ञानी कौन थे, जो पूरब से जेरूसलम के लिए जीसस का उत्सव मनाने गए थे। उनके नामों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। क्योंकि आज भी कोई ज्ञानवान पुरुष ईसाइयत को धर्म नहीं स्वीकार करेगा। मैंने एक प्रसिद्ध जापानी फकीर रिंझाई के विषय में सुना है। ईसाइयों का एक बड़ा पादरी रिंझाई को ईसाई बनाने के लिए बाइबिल लेकर उसके पास गया। उसने “सरमन आफ द माउंट’ अध्याय खोला। पूरी बाइबिल में यही एक मात्र सुंदर अध्याय है। अन्यथा पूरी दुनिया में बाइबिल सर्वाधिक अश्लील पुस्तक है। अश्लीलता पूरे 500 पृष्ठ। और इसे पवित्र बाइबिल कहा जाता है। फिर अपवित्र क्या है उसने “सरमन आन द माउंट’ अध्याय खोला और दो ही पंक्तियां पढ़ीं थीं कि रिंझाई ने कहा, रुको! भविष्य में कभी यह व्यक्ति बुद्ध बनेगा, लेकिन अभी नहीं।

क्योंकि पहली दो पंक्तियां थीं: धन्य हैं वे जो गरीब हैं, क्योंकि वे ही प्रभु के राज्य के अधिकारी होंगे। और दूसरी पंक्ति थी कि सुई के छेद से होकर एक ऊंट गुजर सकता है, लेकिन एक धनी व्यक्ति स्वर्ग के द्वार में प्रवेश नहीं कर सकता है। इसी कथन पर रिंझाई ने कहा कि रुक जाओ।

यदि गरीबी धन्यता है तो फिर हमें गरीबी को और फैलाना चाहिए। फिर दुनिया में जितने अधिक गरीब होंगे, दुनिया उतनी ही अधिक धन्य होगी। फिर अधिक लोग स्वर्ग में होंगे। यदि धनवान होना इतना बड़ा पाप है कि सुई के छेद से होकर ऊंट निकल सकता है, लेकिन धनवान व्यक्ति स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकता है तब तो सभी धनवानों को अपनी संपत्ति गरीबों में बांट देनी चाहिए… और गरीब और भिखारी बन जाना चाहिए।

यह धर्म नहीं है। यह शुद्ध राजनीति है। यह सिर्फ गरीबों के लिए एक सांत्वना है कि तुम चिंता न करो, यह कुछ वर्षों की ही बात है, और तुम प्रभु के सान्निध्य में होगे। और यह दूसरी ओर क्रांति को रोकने का प्रयास है कि धनवानों पर क्रोध न करो, वे शाश्वत नरक में यातना भोगने ही वाले हैं।

यह शब्द याद रखो ‘शाश्वत नरक’। विश्व का कोई भी धर्म शाश्वत नरक में विश्वास नहीं करता है। तुम एक जीवन में कितने पाप कर सकते हो, ईसाइयत केवल एक ही जन्म में विश्वास करती है। आखिर तुम एक ही जीवनकाल में कितने पाप कर सकते हो? जिस क्षण तुम्हारा जन्म हुआ था, उस क्षण से लेकर अंतिम श्वास तक यदि तुम एक के बाद एक पाप ही करते चले जाओ, न खाओ, कुछ भी न करो, केवल पाप ही करते चले जाओ, तो भी शाश्वत दंड उचित निर्णय नहीं होगा।

इस युग के महान दार्शनिक बर्ट्रेण्ड रसेल ने इस बात को एकदम अस्वीकार किया है। वह जन्म से ईसाई थे। उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी है: व्हाई आइ एम नाट ए क्रिश्चियन’ (मैं ईसाई क्यों नहीं हूं)। पुस्तक में जो उन्होंने बहुत से कारण दिए हैं, उनमें से यह भी एक है।

कहते हैं कि मैंने जो पाप किए हैं और वे पाप जो मैंने सपनों में किए हैं, यदि इन दोनों का मिला दिया जाए तो भी एक कठोर से कठोर न्यायाधीश भी मुझे साढ़े चार वर्ष की जेल से अधिक कोई सजा नहीं दे सकता।

लेकिन अनंतकाल के लिए नरक… बाहर आने का कोई उपाय ही नहीं। एक बार तुम नरक चले जाओ, फिर तुम हमेशा वहीं रहोगे। ये मूढ़तापूर्ण बातें हैं, जिनके पीछे कोई तर्क नहीं है।

मेरी निंदा की गई है। क्योंकि मैं मानता हूं कि दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक तो वे जो चाहते हैं कि सत्य सदा उनके पीछे हो और दूसरे वे लोग जो चाहते हैं कि वे सदा सत्य के पीछे हों। मैं दूसरी कोटि में आता हूं। और तुमने जो नाम गिनाए हैं, वे पहली कोटि में आते हैं। एक राजनेता तथा रहस्यदर्शी में यही फर्क है।

यह बात इसलिए दुखदायी है, क्योंकि तुमको शुरू से ही, बचपन से ही एक निश्चित ढंग से सोचने विचारने के लिए संस्कारित किया गया है।

(कल पढ़िए- जीसस कभी ईसाई नहीं थे, उन्होंने ईसाई शब्द भी नहीं सुना था)

(‘मैं स्वतंत्र आदमी हूं’- पहला प्रवचन )