ओशो
सावन के बादल के घिरते ही सारा माहौल बदल जाता है, सारा वातावरण बदल जाता है। वातावरण जीवंत हो जाता है। वर्षा के बादल जल ही नहीं लाते, जीवन लाते हैं। जल के बिना जीवन हो भी नहीं सकता।
तुम्हें पता है, तुम्हारी देह में अस्सी प्रतिशत जल है! तुम्हारी देह जल को खो दे कि तुम जी न सकोगे। और यही अनुपात आत्मा का है तुम्हारे भीतर। बीस प्रतिशत ही संसार है। अस्सी प्रतिशत तुम्हारे भीतर परमात्मा छिपा है, लेकिन तुम बीस में इस बुरी तरह उलझे हो कि अस्सी का पता नहीं चलता।
अदृश्य परमात्मा भक्त के सामने दृश्य
भक्त से और तरह के चमत्कार चाहना मूलतः गलत हैं। वह आकांक्षा ही भूल—भरी है। इससे बड़ा और क्या चमत्कार हो सकता है कि परमात्मा, जो अदृश्य है, भक्त के सामने दृश्य हो जाता है? उन्हीं अपूर्व क्षणों का स्मरण है मीरा के इन शब्दों में-
झुक आई बदरिया सावन की, सावन की मनभावन की/ सावन में उमग्यो मेरा मनवा, भनक सुनी हरि आवन की/ उमड़—घुमड़ चहुं दिस से आए, दामण दमक झर लावन की/ नन्हीं—नन्हीं बुंदिया मेहा बरसे, सीतल पवन सुहावन की/ मीरा के प्रभु गिरधर नागर, आनंद मंगल गावन की।
जैसे बादल झुक आते हैं सावन में। स्मरण करो। पृथ्वी उमंग से भर जाती है, अहोभाव से भर जाती है। मंगलगान छिड़ जाता है। वृक्ष नाचने लगते हैं। पक्षी गीत गाने लगते हैं। सब तरफ हरियाली हो जाती है। सब तरफ हरा—भरा हो जाता है। पृथ्वी दुल्हन बनती है।
अपनी असहाय अवस्था का पूर्ण बोध
परमात्मा को आदमी अपने ही प्रयास से खोजता रहे तो खोजता ही रहेगा—और खोज न पाएगा। इस बात को भी खयाल में लेना। खोजते—खोजते—खोजते एक दिन ऐसी घड़ी आती है कि खोज तो मिट जाती है, क्योंकि अपनी असहाय अवस्था का पूर्ण बोध होता है, कि मेरे किए कुछ भी न होगा। जिस दिन यह बात इतनी सघन हो जाती है कि सौ प्रतिशत तुम्हारे भीतर बैठ जाती है कि मेरे किए कुछ भी न होगा, उसी दिन तुम्हारी प्रार्थना सच्ची होती है। उसके पहले प्रार्थना में संकल्प होता है। तुम कहते हो: प्रार्थना के जरिए तुझे पा लूंगा। तुम्हें अपने पर भरोसा होता है। तुम कहते हो: उपवास करूंगा, व्रत करूंगा, नियम पालूंगा— तुझे पा लूंगा। लेकिन भरोसा तुम्हें अपने पर है—अपने व्रत, अपने नियम, अपनी प्रार्थना, अपनी पूजा पर। जब तक यह भरोसा है तब तक तुम भटकोगे। यह अहंकार है। यह अहंकार का बड़ा सूक्ष्म रूप है। इसमें बहुत सार मिलने वाला नहीं है। कुछ भी मिलने वाला नहीं है। लेकिन यह जाते ही जाते जाएगा। इसे तुम आज छोड़ भी दो तो नहीं छोड़ सकते—जब तक तुम्हारा अनुभव ही तुम्हें न बता दे और एक बार नहीं हजार बार बता दे कि तुम्हारे किए कुछ भी नहीं होने वाला है; जिस दिन तुम्हें अपने पर पूरा भरोसा खो जाएगा—उस दिन जो प्रार्थना उठेगी वही सच हो जाएगी। उसी दिन सावन की बदरिया घिर आएगी।
प्रार्थनाएं चूकती हैं तुम्हारे अहंकार से
खूब बारीकी से इस बात को खयाल में ले लेना, ध्यान में समाहित हो जाने देना। तुम्हारी प्रार्थनाएं चूकती हैं—इसलिए नहीं कि परमात्मा बहरा है। तुम्हारी प्रार्थनाएं चूकती हैं, क्योंकि तुम्हारे अहंकार से उठती हैं। अहंकार कैसे प्रार्थना करेगा? अहंकार प्रार्थना का धोखा दे सकता है। प्रार्थना अहंकार पूर्ण हृदय में उठ ही नहीं सकती। अहंकार तो प्रार्थना से बिलकुल ही विपरीत है।
तो अहंकार धोखा पैदा कर लेता है प्रार्थना का। जाते हो तुम मंदिर में, हाथ जोड़ते हो, झुकते भी हो—जरा भीतर देखना, तुम्हारे भीतर कोई नहीं झुका, सिर्फ देह झुकी। यह देह की कवायद हो गई।
(‘पद घूंघरू बांध’, प्रवचन-17 के सम्पादित अंश)