आपका अखबार ब्यूरो।

“कला एवं संस्कृति को आम जन तक पहुंचाने का काम पत्रकार करता है, इसलिए कला रिपोर्टर को कला का विशेषज्ञ होना चाहिए।” यह बात कही साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता नाटककार, कला प्रशासक, कला अध्येता और पूर्व आईएएस अधिकारी ‘पद्मश्री’ दया प्रकाश सिन्हा ने। मौका था, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मीडिया सेंटर और कलानिधि प्रभाग द्वारा 10-12 फरवरी तक आयोजित कला एवं संस्कृति रिपोर्टिंग पर तीन दिवसीय वर्कशॉप का समापन समारोह।

इस सत्र में बतौर मुख्य अतिथि दया प्रकाश सिन्हा ने संत कवि कबीरदास के दोहे “कबिरा खड़ा बाज़ार में लिये लुकाठी हाथ/ जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ…” को उद्धृत करते हुए कहा कि रंगकर्मी, पेंटर, सभी कलाओं से जुड़े लोगों को खुद को जलाना पड़ाता है, तब कला की साधना होती है।

उन्होंने भारत में थियेटर के इतिहास की संक्षिप्त जानकारी देते हुए कहा कि उत्तर भारत में, हिन्दी समाज में नाटक के क्षेत्र में 700-800 साल तक सन्नाटा था। 20वीं सदी में हिन्दी थियेटर का कुछ विकास हुआ। आजादी के बाद 1952 में पृथ्वीराज कपूर ने “पृथ्वी थियेटर्स” की स्थापना की, उसके बाद हिन्दी थियेटर को लेकर लोगों में कुछ चेतना आई। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी थियेटर अपने समाज से उस तरह नहीं जुड़ पाया, जैसा बांग्ला और मराठी थियेटर में देखने को मिलता है।

आईजीएनसीए के कलानिधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने कहा, हमारी यह कोशिश थी कि इस वर्कशॉप के माध्यम से एक संवाद शुरू किया जाए। आमतौर पर, कला की रिपोर्टिंग एक सामान्य रिपोर्टिंग बनकर रह जाती है, ऐसे में कला की खासियतें लोगों तक नहीं पहुंच पातीं। यह वर्कशॉप शुरुआत है, हम आगे विचार कर सकते हैं कि कला और संस्कृति की रिपोर्टिंग की बेहतरी कैसे हो सकती है।

इससे पहले, वर्कशॉप के तीसरे दिन की शुरुआत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा निर्मित और दीपक चतुर्वेदी द्वारा निर्देशित शॉर्ट फिल्म “काशी पवित्र भूगोल” की स्क्रीनिंग से हुई। इसके बाद आईआईएमसी की प्रोफेसर अनुभूति यादव ने “डिजिटल टूल्स फॉर कल्चरल कम्यूनिकेशन” विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। इसके बाद के सत्रों में पीआईबी की अतिरिक्त महानिदेशक श्रीमती नानू भसीन ने “कला और संस्कृति रिपोर्टिंग में पीआईबी की भूमिका” पर विचार व्यक्त किए। इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “कू” की पॉलिसी डायरेक्टर नियति और केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की स्वायत्त संस्था “विज्ञान प्रसार” के वैज्ञानिक निमिष कपूर ने भी अपने विचार प्रकट किए।

इस तीन दिवसीय वर्कशॉप में कुल 12 सत्र आयोजित किए गए। इनमें कला एवं संस्कृति रिपोर्टिंग से जुड़े विभिन्न विषयों पर वरिष्ठ कवि व कला समीक्षक श्री प्रयाग शुक्ल, वरिष्ठ लेखक व पत्रकार श्री विनोद भारद्वाज, वरिष्ठ पत्रकार व पांचजन्य साप्ताहिक के संपादक श्री हितेश शंकर, वरिष्ठ कला समीक्षक श्री अनिल गोयल आदि ने अपने विचार रखे।