सीताराम येचुरी (12 अगस्त 1952 – 12 सितम्बर 2024)।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) महासचिव सीताराम येचुरी का बृहस्पतिवार को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। लंबे समय से बीमार येचुरी 72 वर्ष के थे। उनकी हालत पिछले कुछ दिन से गंभीर बनी हुई थी और उन्हें कृत्रिम श्वसन प्रणाली पर रखा गया था। वह मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एक मजबूत स्तम्भ और प्रभावी सांसद रहे। येचुरी की सहजता ऐसी थी कि जो लोग उनके संपर्क में आते थे वो उनके आत्मीय व्यवहार से प्रभावित हो ही जाते थे। कई पत्रकारों ने येचुरी के साथ अपने अनुभवों को सोशल मीडिया पर साझा किया है।
उन पर कभी कोई दाग़ नहीं लगा
विष्णु नागर
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव 72 वर्षीय सीताराम येचुरी बीमारी के बाद नहीं रहे। एम्स के कुशल और समर्पित डाक्टर भी उनका जीवन बचा नहीं पाए। अभी कुछ साल पहले उन्होंने अपना बेटा खोया था और अब वह नहीं रहे।
एक संवाददाता के रूप में मुझे वामपंथी दलों की कवरेज करने का दायित्व नवभारत टाइम्स और दैनिक हिन्दुस्तान में दिया गया था। उस नाते येचुरी जी से संपर्क बना रहा। बाद में भी संबंध रहा। बाद में सफदर हाशमी की याद में होने वाले आयोजन आदि में उनसे मिलना होता रहता था। उनका व्यक्तित्व बहुत सहज था। मिलनसारिता उनमें थी। उन पर कभी कोई दाग़ नहीं लगा। उन्होंने अपना शरीर दान करने का निर्णय लिया था। गहरी वेदना के साथ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
सहमत ना भी हों तो भी उन्हें इग्नोर नहीं कर सकते
विवेक शुक्ल
करीब सात-आठ महीने पहले एम्स में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद आई सेंटर से निकला तो गेट के सामने सीताराम येचुरी धीरे-धीरे सेंटर में अकेले ही आ रहे था। गर्मजोशी से मिले। बता रहे थे कि चेक अप के लिए आए हैं। चार-पांच मिनट तक बात करते रहे। मीडिया में आने से पहले भी उन्हें देखा-सुना था। सच में सीपीआई (एम) के इतने प्रखर नेता का किसी सामान्य इंसान की तरह एम्स में चेक अप के लिए आना देखकर अच्छा लगा था।
एक बार नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में भी सीताराम येचुरी अकेले ही अपनी ट्रेन को पकड़ने के लिए जाते हुए मिले थे। आप उनकी राय से सहमत ना भी हों तो भी उन्हें इग्नोर नहीं कर सकते थे। याद नहीं आता कि उन्होंने कभी अपने विरोधी को लेकर कोई सस्ता बयान दिया हो। कहां मिलते हैं अब उनके जैसे लीडर।
लोकतंत्र की भारी क्षति
अजय तिवारी
कॉमरेड सीताराम येचुरी का निधन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस समय उनकी बहुत ज्यादा ज़रूरत थी, उस समय उनके जाने से न केवल भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन की बल्कि लोकतंत्र की भारी क्षति हुई है। सीताराम मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव थे और वे वर्तमान कम्युनिस्ट आंदोलन के एक लोकप्रिय नेता थे। उनके दोस्ताना व्यवहार से लोगबाग कम्युनिस्ट पार्टी के नज़दीक आते थे। यदि हरकिशन सिंह सुरजीत के बाद, 2005 में माकपा के दिल्ली अधिवेशन के बाद येचुरी पार्टी महासचिव बनते तो आज भारत में कम्युनिस्ट पार्टी और आंदोलन की इतनी दुर्दशा न हुई होती।
कॉमरेड येचुरी इधर कुछ समय से साँस की तकलीफ के कारण मेडिकल इंस्टीट्यूट में भर्ती थे। लेकिन बीमारी काबू में नहीं आयी। हम जो भी लोग उनके संपर्क में रहे हैं, वे सभी निजी तौर पर तो दुःखी हैं ही, भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन में आने वाले बिखराव के प्रति भी चिंतित हैं। सीताराम ने ज्योति बसु की भाँति अपनी देह मेडिकल इंस्टीट्यूट को दान कर दी थी। निस्संदेह, व्यक्ति की भूमिका सीमित होती है लेकिन व्यक्ति ही इतिहास के वाहक होते हैं और उनके निजी गुण-दोष इतिहास की प्रक्रिया को गहराई से प्रभावित करते हैं। (लेखक जनवादी लेखक संघ के संस्थापक सदस्य हैं)
बहुत तकलीफदेह था उनके मुंह से यह सुनना
शकील अख्तर
बहुत दुखद। सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी नहीं रहे। 72 साल के थे। कई दिनों से एम्स में भर्ती थे। भर्ती होने के कुछ दिन पहले ही हमें पार्लियामेंट के मेडिकल सेंटर में मिले थे। संसद का सत्र चल रहा था। पूर्व सांसदों को वहां आने की परमिशन नहीं थी। बोले सेंट्रल हॉल में किसी दिन बैठते हैं। सेंट्रल हॉल वापस खुल गया था। मगर वहां पत्रकारों की जाने की परमिशन वापस ले ली गई थी। इस मजेदार स्थिति पर थोड़ी देर हंसी मजाक हुआ। फिर जब स्वास्थ्य का हाल पूछा तो उन्होंने जो जवाब दिया वह हमेशा युवा दिखने वाले सीताराम के अंदाज से जुदा था। बोले बुढ़ापे का असर है। उनके मुंह से यह सुनना बहुत तकलीफदेह था। लेकिन उनकी तबीयत के बारे में अंदाजा था काफी दिनों से इलाज चल रहा था।
बात बदलने के लिए हमने उन्हें उनके राज्यसभा के दिनों की याद दिलाई कि कैसे उन्होंने वहां मोदी सरकार को हराया था पहली बार और आखरी बार भी। उसके बाद फिर कभी ऐसा नहीं हो पाया। वापस सहज होते हुए उस दौर की याद करने लगे। हमने कहा कि यह सीपीआईएम की एक और हिमालयन ब्लंडर थी जो आपको अगला टर्म नहीं दिया। दुखी हो गए। बोले क्या कहें। हमने कहा आपका इंटरव्यू करते हैं। बोले कभी भी आ जाइए। मगर उसके बाद ही एम्स में भर्ती होना पड़ा। 21 अगस्त को भर्ती हुए।
पार्टी ने सीताराम की प्रतिभा का पूरा उपयोग नहीं किया। उनमें गजब की तीक्ष्ण बुद्धि थी। राजनीतिक समझ थी। पढ़े लिखे थे। कई भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। तेलुगु होते हुए भी बहुत अच्छी हिंदी बांग्ला बोलते थे। अंग्रेजी और तेलुगु तो अच्छी आती ही थी। पार्टी ने उन्हें महासचिव भी देर से बनाया। हरकिशन सिंह सुरजीत के बाद उम्मीद थी कि उन्हें बनाया जाएगा मगर 2005 में प्रकाश कारत बन गए। सीताराम कामरेड सुरजीत के बहुत प्रिय थे मगर वे उन्हें नहीं बना पाए। लेकिन पार्टी ने उन्हें राज्यसभा दे दी। कारत के बाद 2015 में उन्हें महासचिव बनाया गया। राज्यसभा में वे दो टर्म रहे और बहुत प्रभावी। 2005 से 2017 तक। मगर उसके बाद जिस समय उनकी राज्यसभा में सबसे ज्यादा जरूरत थी पार्टी ने उन्हें यह कह कर तीसरा टर्म देने से इन्कार कर दिया कि उसके नियम उसे इसकी इजाजत नहीं देते हैं। पार्टी किसी को भी केवल दो टर्म ही देती है। जबकि मजेदार बात यह कि उसे फैसले के समय महासचिव वह खुद ही थे। मगर निर्णय पोलित ब्यूरो करता है।
हमने उसे समय भी लिखा था- पार्टी की भयानक भूल। और यह भी लिखा था कि ज्योति बसु को प्रधानमंत्री न बनाने- उसके बाद सोमनाथ चटर्जी को लोकसभा अध्यक्ष से इस्तीफा न देने पर पार्टी से निकालने के बाद- यह तीसरी सबसे बड़ी भूल थी। 2017 के बाद राज्यसभा में और लोकसभा में तो काफी दिनों से कोई प्रभावी लेफ्ट का एमपी था ही नहीं। तो दोनों जगह सशक्त विपक्ष की जगह बहुत सीमित हो गई। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने इस बार जैसा तेवर दिखाया है वह इससे पहले दोनों सदनों में गायब था। बस तभी तक था जब सीताराम राज्यसभा में थे। राज्यसभा में एक बिल पर उन्होंने इस तरह का फ्लोर मैनेजमेंट किया और जबरदस्त भाषण देने के बाद सभापति को मतदान के लिए मजबूर कर दिया कि मोदी सरकार हार गई। 2017 में राज्यसभा से जिस दिन येचुरी की विदाई हुई वह दिन भी संसद के इतिहास में हमेशा याद रहेगा। दलीय सीमाओं से उपर उठकर सभी दलों के सदस्यों ने कहा कि येचुरी के सदन से जाने से जो रिक्तता आएगी उसकी भरपाई संभव नहीं है।
सपा के रामगोपाल यादव तो इतने भावुक हो गए कि उनका गला रूंध गया और वे अपनी बात पूरी भी नहीं कर सके। यहां तक कि सीपीएम के प्रबल विरोधी टीएमसी के नेता डेरिक ओब्रायन ने भी उनकी तारीफों के पुल बांधते हुए यहां तक कहा कि उनकी बेटी कहती है कि वे (डेरिक) बिल्कुल येचुरी जैसे लगते हैं। डेरिक ने ठहाकों के बीच कहा कि हालांकि बेटी का यह काम्लीमेंट पार्टी में उनके लिए बड़ी समस्या बन सकता है। सदन के नेता अरुण जेटली से लेकर विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद तक सबने सदन की चर्चाओं का स्तर ऊंचा उठाने, बौद्धिक विमर्श का टोन सेट करने और तैयारी के साथ आने के मामले में येचुरी को एक आदर्श बताया।
थोड़े हंसी के मूड में सीपीएम की यह एक और हिस्टोरिकल ब्लंडर भी बताई गई और पार्टी को अपने संविधान में संशोधन का सुझाव भी दिया गया।
रिटायर हो रहे येचुरी ने भी एक और अद्भूत भाषण दिया एवं भारत और भारतीयता की परिभाषा और पहचान को अपने बेटे की धर्म व जाति क्या होगी के सवाल से जोड़कर पूरे सदन को विचार एवं भावनाओं के आवेग में पहुंचा दिया! अपने आखिरी भाषण में भी सीता ने बीजेपी के अन्तरविरोधों पर प्रहार किया। उसके बाद भी बीजेपी के सदस्य सब के साथ देर तक मेजें थपथपाते रहे।