दिनेश श्रीनेत ।

पुराने दिनों में (शायद आज भी) कॉलेज के फेयरवेल में किशोर कुमार का यह गीत अक्सर गूंजता था। बप्पी लाहड़ी भी इसी गीत से इंडस्ट्री में लोकप्रिय हुए। गीत था, “चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा ना कहना…”। बचपन की तमाम कभी न भूलने वाली स्मृतियों में इस फिल्म का पोस्टर भी था। हर पोस्टर पर एक ही तस्वीर- हरे रंग की बिकिनी में नाज़नीन और विशाल आनंद।


 

उन दिनों बनारस और लखनऊ जैसे शहरों में सड़कों लगे लैंप पोस्ट पर एक साथ बहुत दूर तक पोस्ट लगे होते थे। भागते आटो से झांको तो एक के बाद एक पोस्टर पीछे छूटते जाते थे। फिल्म शायद फ्लॉप हो गई थी मगर उसका गीत हिट था। हर कहीं बजता था। दुकानों, चौराहों, सड़क के किसी मोड़ पर और रेडियो में। यह उस साल बिनाका गीत माला के टॉप चार्ट में था। फिल्म के नायक थे विशाल आनंद। उनका असली नाम भीष्म कोहली था। वे देव आनंद के भांजे थे। दिक्कत यह थी कि वे अभिनय भी देव आनंद जैसा करते थे। यह उनको बेहद औसत और मिमक्री आर्टिस्ट जैसा बना देता था। उनका चेहरा-मोहरा साधारण था।

सदाबहार “चलते-चलते” गीत जितना सुनने में खूबसूरत लगता है, स्क्रीन पर उसका फिल्मांकन बहुत औसत है। हालांकि यह फिल्म कई मायनों में उल्लेखनीय कही जा सकती है। यह एक साइकोलॉजिकल थ्रिलर थी। सिमी ग्रेवाल ने इसमें एक ऑब्सेस़्ड स्त्री का किरदार निभाया है। उन्होंने इस रोल को बखूबी किया है, वे सेंसुअसल लगती हैं, सहानुभूति बटोरती हैं और डराती भी हैं। नाज़नीन इस फिल्म में सुंदर लगी हैं। सत्तर के दशक में अक्सर छोटे कपड़ों में नायिकाएं असहज सी दिखती थीं (जीनत अमान को छोड़कर), मगर फिल्म के ऐसे कुछ दृश्यों में वो बहुत नार्मल सी लगी हैं। यह फिल्म दरअसल सन् 1971 में आई हॉलीवुड की थ्रिलर ‘प्ले मिस्टी फॉर मी’ पर आधारित थी। जिसके निर्देशक व नायक क्लायंट ईस्टवुड थे।

'Chalte Chalte' Actor Vishal Anand Passes Away

दिलचस्प बात यह है कि लगभग ऐसी ही कहानी पर बहुत साल बाद सन् 2004 में ‘प्यार तूने क्या किया’ आई, जिसके प्रोड्यूसर राम गोपाल वर्मा थे। इस फिल्म में दीवानगी की हद तक प्यार करने वाली स्त्री का किरदार उर्मिला मांतोडकर ने निभाया था। इस फिल्म को ‘फैटल अट्रैक्शन’ से इंसपायर्ड बतााया जाता है, जो कि सन् 1987 में आई थी। दिलचस्प बात यह है कि ‘फैटल अट्रैक्शन’ भी ‘प्ले मिस्टी फॉर मी’ पर आधारित थी। यानी एक जैसी कहानी पर हॉलीवुड और बॉलीवुड मे कुल चार फिल्में बनीं जो एक-दूसरे से प्रभावित थीं।

विशाल आनंद ने और भी कई फिल्म कीं। कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया, मगर हम उन्हें सिर्फ इसी फिल्म और इसके एक गीत की वजह से याद रखेंगे। चार अक्तूबर को उनका लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। मीडिया ने उन्हें और उनके उस गीत को याद किया। “कभी अलविदा ना कहना” स्क्रीन पर गाने वाला वह गुमनाम सा नायक खुद ही कहीं खो गया। यह गीत शायद आगे भी फेयरवेल और पिकनिक में गाया जाता रहेगा। हो सकता है उसके रिमिक्स भी बनें।

इतिहास में हर किसी के शिलालेख नहीं बनते। कुछ लोग अपनी कहानी चुपचाप जैसे समय की रेत पर लिख जाते हैं। कब पानी का रेला आकर बहा ले जाता है पता ही नहीं चलता। न उनको कोई याद करता है, न उनकी कोई बात करता है।

विशाल आनंद को विनम्र श्रद्धांजलि। उनके पोस्टर, उनके गीत, औसत ही सही- अभिनय, उनके यादगार गीत और उनके अपने तरीके से जीये गए जीवन को..

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं । यह उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है)

 

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