सावन माह में शिवभक्तों के लिए जिला मुख्यालय से करीब बीस किलोमीटर दूर कारो का कामेश्वरनाथ मंदिर आस्था का बड़ा केन्द्र है। इस मंदिर में खड़े आम के पेड़ के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने यहीं पर कामदेव को जलाकर भस्म किया था।  चितबड़ागांव कस्बे के पास कारो में कामेश्वरनाथ मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। मंदिर प्रांगण में जला हुआ आम का पेड़ हो या विशाल पोखरा, या फिर करीब पचास बीघे में फैला विशाल तालाब, सबकुछ शिवभक्तों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। काफी दूर-दूर से लोग जलाभिषेक करने आते हैं।इस मंदिर की महत्ता को लेकर पुराणों में भी जिक्र आता है। लोगों के जेहन में यह सवाल हमेशा उठता है कि आखिर क्यों महादेव शिव ने कामदेव को भस्म किया था। मंदिर में पूजा-पाठ करने वाले पुजारी अखिलेश पाण्डेय बताते हैं कि भगवान शिव के द्वारा कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म करने की कथा शिवपुराण में पाई जाती है। कथा के अनुसार, भगवान शिव की पत्नी सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर पाती हैं और यज्ञ वेदी में कूदकर आत्मदाह कर लेती हैं। जब यह बात भगवान शिव को पता चलती है तो वो अपने तांडव से पूरी सृष्टि में हाहाकार मचा देते हैं। इससे व्याकुल सारे देवता भगवान शंकर को समझाने पहुंचते हैं। महादेव उनके समझाने से शान्त होकर परम शान्ति के लिए समाधि में लीन हो जाते हैं।

इसी बीच महाबली राक्षस तारकासुर अपने तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके ऐसा वरदान प्राप्त कर लेता है, जिससे कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र द्वारा ही हो सकती थी। यह एक तरह से अमरता का वरदान था। क्योंकि सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव समाधि में लीन हो चुके थे। इसी कारण तारकासुर का उत्पात दिनों दिन बढ़ता गया और वह स्वर्ग पर अधिकार करने कि चेष्टा करने लगा। यह बात जब देवताओं को पता चली तो चिंतित हो गए और भगवान शिव को समाधि से जगाने का निश्चय किया। इसके लिए कामदेव को सेनापति बनाकर यह काम कामदेव को सौंपा गया।

कामदेव भगवान शिव को समाधि से जगाने लिए खुद को आम के पेड़ के पत्तों के पीछे छुपाकर शिवजी पर पुष्प बाण चलाने लगे। पुष्प बाण सीधे भगवान शिव के हृदय में लगा और उनकी समाधि टूट गई। अपनी समाधि टूट जाने से भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए और आम के पेड़ के पत्तों के पीछे खड़े कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से जला कर भस्म कर दिया। इसी मान्यता के अनुसार भोलेनाथ के भक्त यहां अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए हाजिरी लगाते हैं। सावन माह में भीड़ कुछ अधिक ही रहती है।(एएमएपी)