(24 मार्च पर विशेष)
माना जाता है कि इस शहर की स्थापना सचेन्दी राज्य के राजा हिन्दू सिंह ने की थी। कानपुर का मूल नाम ‘कान्हपुर’ था। कानपुर की उत्पत्ति का सचेंदी के राजा हिन्दू सिंह से अथवा महाभारतकाल के वीर कर्ण से संबद्ध होना चाहे संदेहात्मक हो पर इतना प्रमाणित है कि अवध के नवाबों के शासनकाल के अंतिम चरण में यह नगर पुराना कानपुर, पटकापुर, कुरसवां, जूही और सीमामऊ गांवों के मिलने से बना था। पड़ोस के प्रदेश के साथ इस नगर का शासन भी कन्नौज और कालपी के शासकों के हाथों में रहा और बाद में मुसलमान शासकों के। अवध के नवाब अलमास अली के शासन को यहां के इतिहासकार सबसे अच्छा मानते हैं।1773 की संधि के बाद यह नगर अंग्रेजों के शासन में आया। फलस्वरूप 1778 ईस्वी में यहां अंग्रेज छावनी बनी। सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहां नील का व्यवसाय प्रारंभ किया था। 1832 में ग्रैंड ट्रंक सड़क के बन जाने पर यह नगर इलाहाबाद से जुड़ा। 1864 में लखनऊ, कालपी आदि मुख्य स्थानों से सड़कों के जरिये इसे जोड़ा गया। इसके बाद ऊपरी गंगा नहर का निर्माण भी कराया गया।
पहले के समय में फलते-फूलते कपड़ा उद्योग के कारण भारत के मैनचेस्टर के रूप में प्रसिद्ध रहे कानपुर को अब उत्तर प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी भी कहा जाता है। आजादी के बाद भी कानपुर ने तरक्की की। यहां आईआईटी खुला। ग्रीन पार्क इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम बना। ऑर्डिनेंस फैक्टरी स्थापित की गई। इस सबके बाद कानपुर का परचम दुनिया में फहराने लगा। मगर 221 साल के लंबे सफर में कहीं कानपुर की गाड़ी शायद पटरी से उतर गई। सिविल लाइंस स्थित लाल इमली मिल का हाल किसी से छुपा नहीं है। लाल इमली की घड़ी जो लंदन के बिग बेन की तर्ज पर बनी थी, कभी कानपुर का चेहरा हुआ करती थी।(एएमएपी)