कर्नाटक विधानसभा चुनाव का प्रचार पूरे चरम पर है। कांग्रेस, भाजपा और जनता दल (सेक्युलर) मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के सामने अपनी सरकार बरकरार रखने की चुनौती है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह चुनाव कई मामलों में अहम है। पार्टी हर हाल में अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती है।
1- खड़गे की साख दांव पर
कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सिर्फ एक राज्य का चुनाव भर नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से हैं। पार्टी को विधानसभा चुनाव से सियासी फायदा मिलने की उम्मीद है। कर्नाटक में चुनाव के दौरान दलित मतदाता काफी अहम भूमिका निभाता है, लेकिन पिछले कुछ मौकों पर वह कांग्रेस से छिटक गया।
राज्य में 19.5 फीसदी दलित मतदाता हैं और उनके लिए 36 सीट आरक्षित हैं, पर वह इससे ज्यादा सीटों पर असर रखते हैं। पिछले चुनाव में दलित मतदाताओं ने भाजपा पर भरोसा जताया। ऐसे में पार्टी को विश्वास है कि खड़गे के जरिए दलित मतदाता चुनाव में कांग्रेस पर भरोसा जताएंगे।
2- दक्षिण के लिए अहम

केरल में पहले ही लगातार दूसरी बार सीपीएम सरकार बनाकर इतिहास रच चुकी है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के लिए कोई बड़ी संभावना फिलहाल बनती नही दिख रही। तमिलनाडु में पार्टी कई दशक पहले अपनी जमीन खो चुकी है।
3- 2024 की जमीन तैयार करना
4- जातीय समीकरणों को साधना
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण बेहद अहम हैं। पार्टी के पास अलग-अलग जातियों के तीन बड़े चेहरे मल्लिकार्जुन खड़गे, सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार हैं। खड़गे अनुसूचित जाति, सिद्धारमैया करुबा और डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। पार्टी को उम्मीद है कि इन नेताओं के जरिए वह संबंधित जातियों का भरोसा हासिल कर लेगी।
इसके साथ मुस्लिम मतदाता भी आरक्षण खत्म करने से नाराज हैं और वह कांग्रेस की तरफ आ सकते हैं। जगदीश शेट्टार के कांग्रेस में शामिल होने के बाद पार्टी को लिंगायत वोट भी मिल सकता है।
सामाजिक समीकरण की स्थिति
वोक्कालिगा: प्रदेश में 11 प्रतिशत मतदाता 54 सीट पर प्रभाव डाल सकते हैं, विधानसभा में समुदाय के 42 विधायक
करूबा: समुदाय के सात फीसदी लोग लगभग पूरे प्रदेश में फैले हैं, विधानसभा में 12 विधायक
ओबीसी: प्रदेश में 16 फीसदी ओबीसी करीब दो दर्जन सीटों पर प्रभावशाली, विधानसभा में 15 विधायक
अनुसूचित जाति: कर्नाटक में 19.5 प्रतिशत मतदाता 45 सीटों पर असर डाल सकते हैं, विधानसभा में 36 सीट आरक्षित
अनुसूचित जनजाति: प्रदेश में सात फीसदी मतदाताओं का करीब 20 सीटों पर वर्चस्व, विधानसभा में 15 सीट आरक्षित
मुस्लिम: 14 फीसदी मतदाता तीन दर्जन से ज्यादा सीटों पर असर डाल सकते हैं, विधानसभा में सात विधायक(एएमएपी)



