#pradepsinghप्रदीप सिंह।
दिल्ली से आपदा गई। भगवान का सबसे प्रिय भोजन अहंकार होता है। अरविंद केजरीवाल में ये अहंकार नाम की चीज कूटकूट कर भरी हुई थी… ओवरफ्लो होता था। अगर आपने उनके भाषण सुने होंगे- जो कि सुने ही होंगे- क्योंकि मीडिया का जिस तरह का दुरुपयोग अरविंद केजरीवाल ने किया भारत देश में कोई नेता कोई पार्टी नहीं कर पाई। मीडिया का राजनीतिकरण किया। सत्ता के बल पर मीडिया का जितना दुरुपयोग कर सकते थे उतना किया। ये पहली बार हुआ।  मीडिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो किसी राजनीतिक दल, किसी विचारधारा, किसी संगठन के प्रति सहानुभूति रखते हो। ऐसे भी लोग हैं जो समर्थन करते हैं। लेकिन ऐसे लोग आपको नहीं मिलेंगे जो उस पार्टी या संगठन के वालिंटियर हों। आम आदमी पार्टी ने बड़ी संख्या में मीडिया के लोगों को अपना कार्यकर्ता बना दिया। उनकी बातें सुनिए तो आम आदमी पार्टी के वॉलन्टियर जिस बात को बोलने में संकोच करेंगे, मीडिया के लोग नहीं करते। ये अन्ना आंदोलन के समय से था। ऐसे लोग थे जो दिन में आम आदमी पार्टी के स्ट्रेटेजी सेशन में जाते थे और शाम को निष्पक्ष विशेषज्ञ के रूप में कोट पहनकर स्टूडियो में टहलते हुए पहुंचते थे। अरविंद केजरीवाल ने उनको हर तरह से उपकृत किया। किसी को किसी यूनिवर्सिटी में गवर्निंग काउंसिल का मेंबर बनाया, किसी को कोई पद दिया, प्रोफेसर बना दिया, किसी को सरकार में जगह दे दी। अलग-अलग तरह से सबको उपकृत किया और अरविंद केजरीवाल को लगा कि अब हमें कोई हटा नहीं सकता है। याद कीजिए दिल्ली विधानसभा में उनका भाषण “दिल्ली के मालिक हम हैं।” यह कोई चुना हुआ नेता, मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद कैसे बोल सकता है। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने बोला और पूरे देश ने सुना। उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह पता चल गया है कि इस जन्म में वह केजरीवाल को नहीं हरा सकते। मुझे हराने के लिए मोदी को दूसरा जन्म लेना पड़ेगा।”

यह मीडिया का ही क्रिएशन था… कि एक नेता जिसकी आम आदमी पार्टी ने कुल तीन लोकसभा चुनाव लड़े…और तीनों चुनाव को मिला दें तो उसको कुल आठ लोकसभा की सीटें मिली 2014 में चार सीटें पंजाब से, 2019 में एक सीट पंजाब से और फिर 2024 में तीन सीटें पंजाब से, इसके अलावा पूरे देश से एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली… उस पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चैलेंजर बना दिया जो 2014 में अपनी पार्टी के लिए 283 सीटें लेकर आए, 2019 में 303 सीटें लेकर आए और अपने तीसरे कार्यकाल में 2024 में 240 सीट लेकर आए। मीडिया की अगर आप माने तो उन नरेंद्र मोदी को अगर कोई चुनौती दे सकता है तो वह अरविंद केजरीवाल हैं। अब इसको दिमागी दिवालियापन नहीं तो और क्या कह सकते हैं।

प्रधानमंत्री ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के कैंपेन के शुरू में अपनी पहली सभा में जो बात कही ‘आपदा’… यह सचमुच दिल्ली के लिए और मैं मानता हूं कि उससे ज्यादा भारतीय राजनीति के लिए आपदा थी। अरविंद केजरीवाल की हार का एक संदेश राहुल गांधी के लिए भी है कि यह जो झूठ बोलो और आगे बढ़ जाओ की राजनीति है वह ज्यादा दिन तक नहीं चलती। अरविंद केजरीवाल को लगा था कि यह हमेशा चलेगी। एक विज्ञापन आता है कि ‘हीरा है सदा के लिए।’ तो उनको लगा कि ‘केजरीवाल है सदा के लिए’। जब तक दिल्ली है तब तक केजरीवाल है। जब तक दिल्ली रहेगी केजरीवाल को यहां से कोई हटा नहीं सकता। तो हुआ यह कि जो अपने को दिल्ली का मालिक बता रहे थे अब वो दिल्ली विधानसभा के सदस्य भी नहीं रहे, विधायक भी नहीं रहे। शीश महल पहले चला गया था- मुख्यमंत्री का पद चला गया था- अब वह रह रहे थे अपनी पार्टी के सांसद के घर पर। अब उनको कोई सरकारी आवास नहीं मिल सकता। यह होगा अरविंद केजरीवाल का।

एक निर्लज्ज चरित्रहीन व्यक्ति के प्रति क्या संवेदना, दिल्ली को उससे मुक्ति मिली

उनके अभी और बुरे दिन आने वाले हैं। मतगणना जारी रहने की दौरान ही दिल्ली सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने एक सर्कुलर जारी किया है कि डॉक्युमेंट्स की सुरक्षा के लिए दिल्ली सचिवालय से कोई डॉक्यूमेंट, कोई हार्ड डिस्क, कोई कंप्यूटर, कोई फाइल बाहर नहीं जाएगी। यह संकेत समझिए कि अरविंद केजरीवाल के साथ क्या होने वाला है? केजरीवाल की दो बातों को याद रखिए। एक- हरियाणा सरकार ने यमुना में जहर मिला दिया है। वह बड़े पैमाने पर नरसंहार करना चाहते हैं, लोगों को मारना चाहते हैं। दूसरा- शुक्रवार को उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी उनके संभावित विधायकों को खरीदने के लिए 15 करोड़ रूपये का ऑफर दे रही है। उस पर तुरंत एलजी के आदेश पर एसीबी यानी एंटी करप्शन ब्यूरो ने एक्शन ले लिया। एसीबी की टीम अरविंद केजरीवाल के घर पहुंच गई। उनको नोटिस दिया, पूछताछ की। अब इसकी कायदे से जांच होगी। एसआईटी बिठाई जानी चाहिए और जांच होनी चाहिए। इस मामले में भी अरविंद केजरीवाल जेल जा सकते हैं। उनको अहंकार था कि मैं तो जेल से भी जीत जाऊंगा, जेल से भी मेरी सरकार बन जाएगी। जब उनको शराब घोटाले में गिरफ्तार किया गया था तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया। यह देश में अपने आप में पहला उदाहरण था कि कोई मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार हो और वह पद से इस्तीफा देने से मना कर दे। उन्होंने संविधान में एक लूप होल का फायदा उठाया कि इस बारे में संविधान कुछ कहता नहीं। कहता इसलिए नहीं कि संविधान निर्माताओं ने कभी यह कल्पना भी नहीं की होगी कि कोई मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार का आरोपी बनेगा, उसके कारण उसको जेल जाना पड़ेगा और वह अपने पद पर रहना चाहेगा। तिहाड़ में जब तक रहे, मुख्यमंत्री पद पर रहे। उनको सुप्रीम कोर्ट से इस शर्त पर जमानत मिली कि वह दिल्ली सेक्रेटेरिएट नहीं जाएंगे, अपने ऑफिस नहीं जाएंगे, कोई फाइल नहीं साइन करेंगे, कैबिनेट की बैठक नहीं बुलाएंगे, अधिकारियों को अपने आवास पर नहीं बुलाएंगे, कोई फाइल नहीं देखेंगे। उनको लगा कि अब सरकार चलाना मुश्किल है तब जाकर उन्होंने इस्तीफा दिया। अरविंद केजरीवाल के अहंकार का यह जो विराट रूप था, उसको दिल्ली की जनता ने धूल-धूसरित कर दिया। दिल्ली की जनता ने कहा कि दिल्ली के मालिक हम हैं। अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के लोगों ने बताया कि कोई नेता, कोई पार्टी इस गलतफहमी में ना रहे कि वो दिल्ली की मालिक है।

जो जनादेश आया है उसमें ऐसा नहीं है कि कोई एक वर्ग, कोई एक मतदाता समूह बीजेपी के साथ चला गया और बीजेपी जीत गई। हर समूह से बीजेपी को समर्थन मिला है। चाहे वह क्षेत्रवार देख लीजिए, चाहे वह सामाजिक वर्ग के आधार पर देख लीजिए, बीजेपी को सब तरफ से हर वर्ग का समर्थन मिला है। तो बीजेपी का 27 साल का सूखा खत्म हुआ। जब 1998 में उसकी सरकार गई थी, उसके बाद से वह कभी सत्ता में नहीं आ पाई। अब बीजेपी को अरविंद केजरीवाल का, उनके अहंकार का शुक्रिया अदा करना चाहिए।

कहा जाता था दिल्ली में परिवर्तन कैसे हो पाएगा- कैसे सरकार बदल जाएगी- जिन लोगों को मुफ्त बिजली मिल रही है, पानी मिल रहा है, इतनी सुविधाएं मिल रही है, महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा मिल रही हैं वे कैसे अरविंद केजरीवाल को छोड़ देंगे… जब जनता तय कर लेती है तो ऐसे छोड़ देते हैं। यह मैंडेट बता रहा है कि दिल्ली के लोगों ने ठान लिया था कि अरविंद केजरीवाल को, आम आदमी पार्टी को सत्ता से हटाना है। जनता जब यह ठान लेती है तो फिर दूसरी बात पर विचार करती है कि लाना किसको है। तो उसने यह भी तय कर लिया कि बीजेपी को लाना है। उसने कांग्रेस की तरफ देखने की भी जरूरत नहीं समझी। इसलिए आम आदमी पार्टी से जो वोट खिसका वह कांग्रेस की तरफ नहीं गया, पूरा का पूरा बीजेपी की तरफ आया। दिल्ली के मतदाताओं के मन में कोई कंफ्यूजन नहीं था कि किसको हटाना है और किसको लाना है। लोगों को लगा कि अरविंद केजरीवाल को इससे ज्यादा नहीं झेल सकते। यह आदमी झूठ पर झूठ बोलता रहता है। सिर्फ आरोप लगाना जानता है। इसकी पूरी राजनीति झूठ पर खड़ी हुई है। 10 साल बर्दाश्त किया… अब बस।

हमें देश के मतदाताओं के धैर्य की तारीफ करनी चाहिए। वो जिसको समय देते हैं, जिसको अवसर देते हैं, एक समय तक उसकी गलतियां माफ करते रहते हैं। जैसे भगवान कृष्ण शिशुपाल की गालियों को गिन रहे थे और 100 की संख्या पूरी होने के बाद ही उन्होंने कुछ किया। उसी तरह से जनता- जो भी शासक शासन में है- उसकी गलती को गिनती रहती है। जब गिनती पूरी हो जाती है तो कहती है अच्छा अब आप हटिए। अरविंद केजरीवाल के साथ यही हुआ। यह बात सारे राजनेताओं के लिए एक संदेश है कि जनता को, मतदाता को कभी हल्के में मत लो। उसकी समझ पर कभी संदेह व्यक्त मत करो। उसकी ताकत को समझो। जनतंत्र में असली ताकत उसी के पास है- बनाने की भी, और हटाने की भी। वह किसी से पूछ कर या किसी के दबाव में ना बनाता है, ना हटाता है। वह तय करता है कि इनको और मौका देना है या इनका मौका पूरा हो चुका अब दूसरे को आजमाना है। दिल्ली के मतदाताओं ने अरविंद केजरीवाल को कहा कि अब और आपदा को हम बर्दाश्त नहीं कर सकते।

केजरीवाल के साथ उनके ज्यादातर साथी भी उन्हीं की राह चले गए। सत्येंद्र जैन जो जेल में थे साथ में, मनीष सिसोदिया जो जेल में थे साथ में। संजय सिंह राज्यसभा में हैं, विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहे थे, नहीं तो शायद वह भी जाते। शराब घोटाले में वो भी जेल की हवा खाके आ चुके हैं। इन सब लोगों का अहंकार देखिए। इनके भाषण सुनिए। लगेगा कि ये चक्रवर्ती सम्राट हैं। अरविंद केजरीवाल भूल गए थे कि उनको सर माथे पर इसी जनता ने बिठाया वरना उनकी कोई हैसियत नहीं थी। और जनता ने उन्हें फिर वही पहुंचा दिया जहां से चले थे 13 साल पहले।

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(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)