फौरी राहत की जगह सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते बाद की तारीख लगा दी
मनुज बली नहीं होत है समय होत बलवान। भीलन लूटी गोपिया वही अर्जुन वही बान।। यह समय का फेर आदमी को कहां से कहां पहुंचा देता है। ‘वक्त’ फिल्म का एक गाना था- आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे, कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज। तो अरविंद केजरीवाल के लिए वक्त का मिजाज बड़ा बदला हुआ है।2011 के अरविंद केजरीवाल को याद कीजिए, क्या धमक थी… और आज 2024 के अरविंद केजरीवाल को देखिए, कितनी दयनीय दशा है। जिस दिल्ली में उनकी तूती बोलती थी और अब भी उनकी सरकार है, उसी दिल्ली में वह उसी दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले तिहाड़ जेल में 15 मार्च से बंद हैं।9 अप्रैल को दिल्ली हाई कोर्ट ने उनको कोई राहत देने से मना कर दिया। वह दिल्ली हाई कोर्ट गए थे कि शराब घोटाले में ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी को अवैध या गैर कानूनी या असंवैधानिक ठहरा दिया जाए। उनके वकील ने कहा कि उनकी गिरफ्तारी की जरूरत नहीं थी। उनको चुनाव प्रचार करने से रोकने के लिए गिरफ्तार किया गया है। यह राजनीतिक गिरफ्तारी है। दिल्ली हाई कोर्ट ने ऐसा नहीं माना।दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। किस तरह से दिल्ली शराब घोटाले का पैसा आया इसकी उनको जानकारी थी। उसमें वह हिस्सेदार थे। उस पैसे को इधर-उधर खर्च करने में वह शामिल थे। हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को उस पूरे घोटाले का सिरमौर, किंग पिन बताया और कोई राहत देने से मना कर दिया।
उनके वकील हाई कोर्ट का फैसला आते ही 9 अप्रैल को ही आनन फानन में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए कि मामले की जल्दी सुनवाई हो। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जल्दी सुनवाई पर विचार करेंगे। अगले दिन यानी 10 तारीख को सुनवाई हुई थी उस पर। सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल की तारीख दे दी। 15 अप्रैल को आज जब सुनवाई शुरू हुई तो अरविंद केजरीवाल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जल्दी सुनवाई की अपील की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जल्दी सुनवाई से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को कहा कि अरविंद केजरीवाल और उनके वकील ने जो आरोप लगाया है कि उनकी गिरफ्तारी का कोई आधार नहीं था, गैर कानूनी ढंग से गिरफ्तारी हुई है, इस पर अपना जवाब 24 अप्रैल तक दाखिल करें। ईडी को 24 अप्रैल तक जवाब दाखिल करना है। सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 29 अप्रैल तय की है।
इससे एक बात बड़ी स्पष्ट हो गई कि अरविंद केजरीवाल और उनके वकील जो दावा कर रहे थे कि उनको चुनाव प्रचार से रोकने के लिए यह गिरफ्तारी हुई है उससे सुप्रीम कोर्ट सहमत नजर नहीं आता। ऐसा कुछ सुप्रीम कोर्ट ने कहा नहीं है लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता कि अरविंद केजरीवाल को चुनाव प्रचार से रोकने के लिए गिरफ्तार किया गया है और उनकी गिरफ्तारी ठीक नहीं है इस पर विचार होना चाहिए तो सुप्रीम कोर्ट जल्दी सुनवाई करता। 29 अप्रैल का मतलब है 26 अप्रैल तक दो चरण के चुनाव लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुके होंगे। तीसरे चरण का चुनाव प्रचार तेजी पर होगा। 29 अप्रैल को अरविंद केजरीवाल को कोई राहत मिलने वाली है इसके कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहे। उसकी बड़ी वजह है कि हाई कोर्ट के जजमेंट में जिस तरह के सबूतों की बात की गई है, अरविंद केजरीवाल के इवॉल्वमेंट की बात की गई है, उसके बाद उनके लिए कोई राहत मिलना मुश्किल है।
यह तो केजरीवाल के मामले की अदालत में स्थिति है। अदालत से बाहर दिल्ली में उन्हें कोई सिंपैथी नहीं मिल रही है। अरविंद केजरीवाल इतने दिन से जेल में हैं और कोई सड़क पर नहीं उतर रहा है। उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल उनसे मिलने जाती थीं और उनका एक नया संदेश लेकर आती थीं। जब से संजय सिंह जमानत पर जेल से बाहर आए हैं तब से जेल से संदेश आने का सिलसिला ही रुक गया है। या तो अरविंद केजरीवाल संदेश दे नहीं रहे हैं या सुनीता केजरीवाल वह संदेश सुना नहीं रही हैं। मामला क्या है यह समझ से परे है। लेकिन इतना समझ में आ रहा है कि संजय सिंह के आने से अरविंद केजरीवाल की अपने राजनीतिक उत्तराधिकार की योजना में कुछ ना कुछ तो पलीता लगा है। कुछ ना कुछ गड़बड़ हुई है।
अरविंद केजरीवाल को समझ में आ गया है यह मामला इतना आसान नहीं है। वह अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, अपनी जगह पर यह स्पष्ट है। वह कहते हैं कि मैं जेल से सरकार चलाऊंगा। उनसे एक सवाल पूछा जाना चाहिए अगर आप जेल से सरकार चला सकते हैं, चलाना चाहते हैं और उसको संवैधानिक मानते हैं, तो मनीष सिसौदिया क्यों नहीं जेल से अपना मंत्रालय चला सकते। सत्येंद्र जैन क्यों नहीं चला सकते जेल से सरकार। उनसे क्यों इस्तीफा लिया? जो संविधान आप पर लागू होता है वही इन दोनों नेताओं पर भी लागू होता है। संजय सिंह मंत्री नहीं थे इसलिए यह प्रश्न उन पर लागू नहीं होता। लेकिन मनीष सिसौदिया और सत्येंद्र जैन पर तो लागू होता है। अगर संविधान इस बारे में चुप है जो कि सही है तो उनसे इस्तीफा क्यों लिया? क्यों नहीं इनको जेल से अपना विभाग चलाने दिया। अगर यह जेल से अपना विभाग नहीं चला सकते तो आप जेल से सरकार कैसे चला सकते हैं। तो अरविंद केजरीवाल के लिए दिन पर दिन मुश्किल बढ़ती जा रही हैं।
लगभग दो हफ्ते बाद 29 अप्रैल को जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी तब तीसरे चरण का चुनाव प्रचार तेजी पर होगा। यानी यह निश्चित हो गया है कि अरविंद केजरीवाल इस लोकसभा चुनाव से लगभग बाहर हो गए हैं। मेरा तो मानना है कि वह जनवरी 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव तक भी जेल में रहेंगे। उनके जेल से जल्दी बाहर आने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं दिख रही है। अरविंद केजरीवाल इससे ज्यादा परेशान नहीं होंगे कि जेल से आने की संभावना नहीं दिख रही है। उनको विश्वास था कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूरी कोशिश करेगी कि उनकी गिरफ्तारी ना हो क्योंकि उनकी गिरफ्तारी का मतलब होगा कि उनको सिंपैथी मिलना और यह भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से नुकसान देह होगा।
लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने पूरी स्थिति का आकलन कर लिया था। मालूम था कि अरविंद केजरीवाल को अब अपनी गिरफ्तारी से कोई फायदा नहीं होने वाला है। जिस तरह से उन्होंने ईडी के नौ समन पर जाने से मना कर दिया और उसकी कानूनी वैधता को चुनौती देते रहे, उससे उन्होंने अपने बारे में जो सहानुभूति की संभावना हो सकती थी उसको खत्म कर दिया। इसीलिए जब उनकी गिरफ्तारी हुई तो उनके नाम पर रोने वाला कोई नहीं था। उनकी पार्टी के लोग भी जिस तरह से अनमने हैं, जिस तरह से सबने हाथ खींच लिए हैं, उससे पता चलता है कि भविष्य में अरविंद केजरीवाल की स्थिति और खराब होने वाली है। अब उनको झटका किसी जांच एजेंसी, किसी अदालत, किसी राजनीतिक दल की ओर से नहीं बल्कि अपनी पार्टी के अपने करीबी सदस्यों की ओर से लगने वाला है। एक मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है। कई विधायक और मंत्री, खास तौर से 10 राज्यसभा सदस्यों में से सात किसी तरह के धरना प्रदर्शन या विरोध के कार्यक्रम में शामिल नहीं होना चाहते। दो राज्यसभा सदस्य विदेश में हैं।
कुल मिलाकर इन सात राज्यसभा सदस्यों की अरविंद केजरीवाल के प्रति अनदेखी यह कहानी कह रही है कि आम आदमी पार्टी के अंदर कुछ बड़ा पक रहा है। और जो पक रहा है वह अरविंद केजरीवाल के लिए अच्छी खबर नहीं है। कब तक वो पककर पूरा तैयार होगा यह तो अभी पता नहीं, लेकिन इतना निश्चित है कि अरविंद केजरीवाल के लिए अपनी पार्टी और अपने करीबी लोगों की ओर से बड़ा खतरा आने वाला है। पत्नी को राजनीतिक विरासत सौंपने का उनका सपना कम से कम फिलहाल कामयाब होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। राजनीति के बारे में निश्चित तौर पर आप कुछ नहीं कह सकते। जब तक अरविंद केजरीवाल इस्तीफा नहीं देते, उनके इस्तीफा देने की नौबत नहीं आती, तब तक उनके राजनीतिक विरासत के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहना मुश्किल है। इतना तय है कि संजय सिंह अगर जेल में रहते तो स्थितियां दूसरी होतीं। संजय सिंह के बेल पर बाहर आने का मतलब है स्थितियां बदल गईं। यह बदली हुई स्थितियां अरविंद केजरीवाल के पक्ष में तो नहीं ही हैं। सुप्रीम कोर्ट कोई फौरी राहत देगा- नहीं देगा, इन सारे सवालों का जवाब 29 अप्रैल को मिलेगा। लेकिन जितना पुख्ता केस ईडी ने बनाया है उसमें मुझे यह संभावना बहुत कम नजर आती है कि सुप्रीम कोर्ट अरविंद केजरीवाल को कोई राहत देगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)