अजय गोस्‍वामी, वरिष्‍ठ पत्रकार।

देश की राजनीति के स्‍तर को अब नेताओं ने किसी मापदंड पर कसने लायक ही नहीं छोड़ा है। नैतिकता नेताओं में खोजने का विषय हो गई है। भले ही ये चंद नेताओं की मानसिकता हो, लेकिन उंगलियां तो सबकी तरफ उठेंगी। और उठना भी चाहिए क्‍योंकि यदि वो खामोश रहते हैं तो इस मामले में उनका मौन समर्थन ही समझा जा सकता है। दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री केजरीवाल की शराब नीति घोटाले मामले में गिरफ्तारी के बाद राजनीति एक नए रास्‍ते पर चल पड़ी है।देश में पहली बार पद पर रहते हुए कोई मुख्‍यमंत्री गिरफ्तार हुआ और पहली ही बार जेल से सरकार चलाई जा रही है। साफ दिखाई दे रहा है कि यह वो रास्‍ता है जो देश को तबाही की तरफ ले जाएगा। यानी अब कोई भी दल की सरकार केंद्र या राज्‍य में होगी, उसका मंत्री कथित घोटाले के आरोप में गिरफ्तार होता है तो वो भी केजरीवाल के बनाए इस रास्‍ते पर चलना चाहेगा। यही नहीं यह रास्‍ता अन्‍य क्षेत्रों के लोगों को भी चलने के लिए उकसावे का काम कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो देश में अराजकता का माहौल होगा। नेता अपनी मनमानी करने वाले होंगे। जनता की सुनने वाला कोई नहीं होगा। वैसे भी आजादी के बाद से अब तक जनता बेचारी है, पर केजरीवाल ने उसे लाचार बना दिया है। इस पर उनके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए।

केजरीवाल को 21 मार्च को उनके आवास से गिरफ्तार किया गया था। वे 28 मार्च तक ईडी की हिरासत में हैं। हिरासत खत्‍म होगी या नहीं यह तो समय ही बताएगा। पर केजरीवाल हिरासत से सरकार चला रहे हैं। मंगलवार 26 मार्च को उन्होंने दूसरा सरकारी आदेश जारी किया। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय को मोहल्ला क्लिनिक को लेकर निर्देश दिए । इसके पहले केजरीवाल ने 24 मार्च को जल मंत्रालय के नाम पहला सरकारी आदेश जारी किया था। उन्होंने जल मंत्री आतिशी को निर्देश दिया था । उन्होंने कोर्ट में पेशी के समय कहा था कि वे इस्तीफा नहीं देंगे, जरूरत पड़ी तो जेल से सरकार चलाएंगे। और वे ऐसा कर भी रहे हैं। वो मनमानी कर रहे हैं, क्‍योंकि उनकी पार्टी के सर्वेसर्वा तो वही हैं तो उन पर इस्‍तीफा देने के लिए दबाव बनाएगा भी कौन। पार्टी के अधिकांश नेता उनकी ही भाषा बोल रहे हैं। लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी नेता केजरीवाल को गलत ठहराने की बजाय ईडी की कार्रवाई पर सवाल उठा रहे हैं।

कई मुख्यमंत्रियों ने आरोप लगते ही दे दिया था इस्तीफा

केजरीवाल से पहले कई मुख्यमंत्रियों पर आरोप लग चुके हैं और उन्होंने मर्यादा का ख्याल रखते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इनमें तमिलनाडु में मुख्यमंत्री रहीं जयललिता, बिहार में मुख्यमंत्री रहे लालू यादव और अभी हाल में गिरफ्तार किए गए झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन के नाम शामिल हैं। मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रही उमा भारती ने तो कोर्ट के वारंट पर ही इस्तीफा दे दिया था। कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने लोकयुक्त की रिपोर्ट पर इस्तीफा दे दिया था। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने तो आरोप लगते ही लोकसभा से इस्तीफा देकर राजनीतिक शुचिता का उदाहरण पेश किया था। लेकिन केजरीवाल बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए कह रहे हैं वे इस्तीफा नहीं देंगे। वे जेल से ही सरकार चलाएंगे।

हेमंत सोरेन ने गिरफ्तार होने से पहले सौंपा इस्तीफा

झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन को 31 जनवरी  को झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के तुरंत बाद प्रवर्तन निदेशालय ने भूमि घोटाले मामले में गिरफ्तार कर लिया था। यह इस्तीफा ईडी के अधिकारियों द्वारा रांची में उनके आधिकारिक आवास पर 7 घंटे से अधिक समय तक पूछताछ के बाद दिया था। सोरेन ने नैतिकता का पालन करते हुए तब तक अपने गिरफ्तारी ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया जब तक कि उन्होंने झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना इस्तीफा नहीं सौंप दिया।

जे. जयललिता ने दोषी होने के बाद दे दिया इस्तीफा

भ्रष्टाचार के मामले में 1996 में जयललिता को गिरफ्तार किया गया था। आय से अधिक संपत्ति के मामले में उन्हें 2014 में जेल की सजा हुई। सीएम पद पर रहते हुए दोषी करार दिए जाने वाली जयललिता देश की पहली मुख्यमंत्री थीं। उन्हें इस मामले में चार साल की सजा हुई। जेल जाने की वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता को भी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद जयललिता ने ओ पन्नीरसेल्वम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।

लालू यादव को छोड़नी पड़ी थी मुख्यमंत्री कुर्सी

मई 1997 में चारा घोटाले के एक मामले में सीबीआई ने लालू यादव पर शिकंजा कसा था। उस वक्त लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे। उनकी पार्टी केंद्र में भी सत्ता में थी, लेकिन सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल कर दी थी। चार्जशीट दाखिल होने के बाद लालू यादव को गिरफ्तारी का डर सताने लगा था। उन्होंने तुरंत अपने उत्तराधिकारी की तलाश शुरू की। लालू यादव ने इस्‍तीफा दिया और पत्‍नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया।

कोर्ट वारंट पर उमा भारती ने दिया इस्तीफा

2003 में दिग्विजय सिंह को सत्ता से बेदखल करने के बाद भाजपा ने उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन कर्नाटक कोर्ट के एक वारंट ने उमा भारती की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। भाजपा आलाकमान ने गिरफ्तारी से पहले उमा को इस्तीफा देने का आदेश दिया। उसके बाद बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाया गया।

लोकायुक्त रिपोर्ट पर येदियुरप्पा को छोड़नी पड़ी कुर्सी

2011 में लोकायुक्त की एक रिपोर्ट के बाद कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की कुर्सी छिन गई थी। भाजपा आलाकमान ने येदियुरप्पा को इस्तीफा देने को कहा इसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सीएम कुर्सी छोड़ने के कुछ दिन बाद येदियुरप्पा को गिरफ्तार कर लिया गया था। डीवी सदानंद गौड़ा को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया गया था।

आरोप लगते ही लालकृष्ण आडवाणी ने दिया इस्तीफा

1996 के लोकसभा चुनाव से पहले आडवाणी ने भ्रष्टाचार के आरोप के चलते लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। आडवाणी पर यह आरोप 1993 से लगने शुरू हो गए। उस समय नरसिम्हाराव सरकार में सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि उनके पास सबूत हैं कि आडवाणी ने हवाला कारोबारी एसके जैन से दो करोड़ रुपये लिए। 16 जनवरी 1996 को जब चार्जशीट में उनका नाम आया तो उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा तो दिया ही 1996 का चुनाव भी नहीं लड़ा।(एएमएपी)