आपका अखबार ब्यूरो ।
केरल में पिनाराई विजयन जिस तरह सरकार चला रहे हैं उसमें ताज्जुब जैसा कुछ भी नहीं है। वरिष्ठ नेता शैलजा को किनारे लगाना और अपने दामाद को राजनीति और मंत्रिमंडल में खास तवज्जो देना- यह मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के दो ऐसे काम हैं जिन्हें देखकर कुछ लोगों को लग रहा है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार में ऐसा कैसे हो सकता है। लेकिन यह तो ट्रेलर भर है पिक्चर अभी बाकी है। ‘आपका अखबार’ में चुनाव नतीजे आने से पहले ही स्पष्ट घोषणा कर दी गई थी कि केरल में पिनाराई विजयन अपने मन मुताबिक पार्टी और सरकार को चलाएंगे। अब वहां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का, उसके सिद्धांतों का- कोई मतलब नहीं रह गया है।

केरल में सीपीएम अब एक व्यक्ति की पार्टी

विधानसभा चुनाव परिणाम 2 मई को आने थे। जबकि 1 मई को केरल में टूटेगी परम्परा‘ शीर्षक चुनाव परिणामों के अपने आकलन में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने साफ कह दिया था:  ‘केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) जीत रही है। लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सीपीएम राष्ट्रीय पार्टी से क्षेत्रीय पार्टी होते हुए अब एक व्यक्ति की पार्टी होने जा रही है। केरल में सीपीएम पिनराई विजयन की पार्टी होने जा रही है। अब पार्टी में उन्हीं की चलेगी। सेंट्रल कमेटी या पोलित ब्यूरो की अब पार्टी में नहीं चलने वाली है।’
6 मई को ‘केरल में टूटी चार दशकों की परंपरा’ शीर्षक से प्रदीप सिंह ने फिर लिखा: ‘पिनराई विजयन और मजबूत होकर उभरे हैं। अब केरल में सीपीएम का मतलब पिनराई विजयन है, इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए।’
केरल में आज जो कुछ भी हो रहा है वह इसी बात की पुष्टि है।

नारी की चुनौती

नारी की चुनौती नयी माकपा सरकार को‘ शीर्षक से वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव ने सोशल मीडिया पर एक लंबा आलेख लिखा है जिसमें पिनराई विजयन की कार्यशैली को रेखांकित किया गया है। विक्रम राव कहते हैं:
नारी-अस्मिता को अतीव महत्व देने के लिये गुजरात के बाद केरल ही मशहूर है। इस बार वहां प्रथम महिला मुख्यमंत्री की संभावना अत्यधिक थी। पर लैंगिक भेदभाव करने में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट भी अंतत: वही भारतीय समाज में जमी पौरुष ग्रंथि से मुक्त नहीं हो पाये। कांग्रेसी जैसी ही। इसीलिए दोबारा केरल के मुख्यमंत्री बनते ही पिनरायी विजयन ने सत्ता में अपनी जड़ जमाने हेतु अपने प्रतिस्पर्धी रही के.के शैलजा को काबीना तक में नहीं रखा। बस विधायक दल का सचेतक नामित कर दिया। कुर्सी से काफी दूर।

सट ही गये कुटुम्ब से

Pinarayi Vijayan's son-in-law Mohammed Riyaz sent to judicial custody in violence case

लेकिन दूसरी कमजोरी, परिवारवादवाली, से भी विजयन अलग नहीं रह पाये। सट ही गये कुटुम्ब से। उनकी पुत्री वीणा टी. का दूसरा पति अर्थात विजयन का दूसरा दामाद पी.ए. मोहम्मद रियाज लो​कनिर्माण जैसे कमाऊ विभाग का मंत्री नामित हुआ। चौवालीस वर्षीय वकील रियाज, जिनके पिता अब्दुल कादिर पुलिस अफसर हैं, की पहली बीवी डा. समीहा से दो बेटे है, दस और तेरह वर्ष के। छह वर्ष पूर्व तलाक हो गया था। डा. वीणा विजयन के पहले पति रवि पिल्लई एक अमीर उद्योगपति हैं। उनका एक पुत्र भी है। वीणा एम.डी. है। दोनों ने कहा कि विवाह दो प्राणियों (उनका और रियाज) का निजी मामला है, अपनी पसंद है।

सीपीएम के झंडे तले ससुर-दामाद की सियासत

मगर मीडिया ने मीमांसा की। योग्यतम महिला शैलजा को निकालकर कर विजयन ने मंत्री बनाया दामाद को ? क्या यह मार्क्सवादी सिद्धांत की दृष्टि से उचित है? नैतिकता पर एकाधिकार बघेरने वाली  माकपा अब ससुर-दामाद वाली सियासत करे तो फर्क क्या रहा? ऐसा तो सोनिया—कांग्रेस में होता रहता है।
यह बात तीखी इसलिये भी हो जाती है क्योंकि प्रगतिशील राज्य केरल में पहली बार महिला मुख्यमंत्री बनते-बनते चूक गयी। पिछड़े यूपी, असम, बिहार, कश्मीर, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और पड़ोसी तमिलनाडु की तुलना में केरल भी महिला मुख्यमंत्री का चयन करके नारी गौरव को कई चांद लगा सकता था। इन सभी राज्यों में स्त्री शीर्ष पर रह चुकी है। यूं भी मलयाली महिलाओं ने नर्स के पदों को विश्वभर में चमकाया है।

शैलजा का मौन

KK Shailaja out, son-in-law in: What's the fuss about Pinarayi Vijayan's new cabinet? - India News

शैलजा को हटाना बड़ी खबर बनती किन्तु स्वयं इस जुझारु महिला ने नीतिपरस्त मार्क्सवादी होने के नाते कह दिया कि ”काबीना का गठन मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है।” वही पुराना घिसा-पिटा बचाव। हालांकि इस मौन से शैलजा जन-आकलन में काफी ऊंची उठी हैं। विजयन जरुर पुरुष-सहज द्वेष और भय के कारण निचले पायदान पर आ पड़े हैं। दुबई से सोने की तस्करी के कारण उनका अवमूल्यन तो हो ही गया था। जो शेष था वह जामाता को मंत्रिपद दहेज में देकर जाता रहा। उधर पूरब में ममता का भतीजावाद (सांसद अभिषेक बनर्जी) तो इधर सुदूर दक्षिण में विजयन के जवांईराज अब विपक्ष की राजनीति का अभिन्न अंग हो गये।
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शैलजा की ख्याति फैली थी जब उन्होंने निपाह और कोविड—19 की महामारी का मर्दन किया था। इस वामपंथी को संयुक्त राष्ट्र संघ में ”कीटाणु नाशक” हेतु सम्मानित किया गया था। एक साधारण कस्बायी अध्यापिका से वे उठी थीं। खूब संघर्ष किया। काबीना मंत्री बनीं। मगर अंतिम राउण्ड में अवरुद्ध हो गयीं। वे दूसरी वीएस अच्युतानंदन नहीं हो पायीं। इस सत्तानवे वर्षीय माकपा धुरंधर का तो विजयन ने टिकट ही काट दिया था। माकपा के विरुद्ध तक जनविद्रोह हो गया था। विजयन को टिकट देना पड़ा और अच्युतानंदन मुख्यमंत्री (18 मई 2006) बने।

वीणा जार्ज

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मगर गत माह विजयन ने एक चालाकी की। शैलजा को हटाने से आलोचना तो काफी हुई पर मीडिया में उन्हें कमजोर करने के लक्ष्य से मुख्यमंत्री ने केरल की स्वास्थ्य मंत्री एक महिला ही को बनाया। टीवी पत्रकार वीणा जार्ज को स्वास्थ्य विभाग मिला है। पैंतालीस वर्षीया यह महिला समाचार संपादक और टीवी न्यू की संपादिका थी। महाबली कांग्रेसी प्रतिस्पर्धी तथा विधिवेत्ता के. शिवदासन नायर को बीस हजार वोटों से अरनमुला विधानसभा क्षेत्र से हरा कर वीणा विधायक बनी है। अब उनके समक्ष यह प्राथमिकता के तौर पर चुनौती यह है कि एक योग्य पूर्व मंत्री की तुलना में उन्हें अपने कीर्तिमान रचाने होंगे।

जनयुद्ध अभी जारी

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किन्तु पिनराई विजयन की व्यथा कथा अभी खत्म नहीं हुयी है। उनकी चुनावी हरीफ दलित मजदूर विधवा वी. भाग्यवती ने अपना सत्याग्रह फिर चालू कर दिया है। उनकी दो नाबालिग पुत्रियों का माकपा के गुण्डों ने बलात्कार किया। न्याय की खोज में भाग्यवती ने सर मुडवा कर संघर्ष शुरु किया था। चालाक विजयन को उनके धर्मदम विधानसभा क्षेत्र (कन्नूर) में इस दलित ने पुरजोर चुनौती दी थी। ”विजयन के विरुद्ध” अपना विजय संकल्प पूरा करने हेतु उसने सिर मुंडवा लिया था।  पिनरायी विजयन व्यग्र रहे। दलित मजदूर भाग्यवती द्वारा चुनावी उम्मीदवारी का कारण था कि उसकी दो नाबालिग बेटियों को न्याय मिले। बलात्कार के समय बड़ी पुत्री तेरह की और दूसरी केवल नौ वर्ष की थी। पुलिस की रपट के अनुसार इन दोनों ने आत्महत्या की थी, जबकि दोनों की लाशें टंगी मिलीं थीं। विधवा मां तीन वर्षों से दर-दर भटकती रही, न्याय की गुहार लगाती रही। जनपदीय न्यायालय में पांचों हत्यारे बरी कर दिये गये थे। अदालत ने पाया कि पुलिस तथा अभियोजन पक्ष हत्या सिद्ध नहीं कर पाया। पर्याप्त सबूत नहीं उपलब्ध करा पाये थे। इस निर्णय के बाद मलयालयम मीडिया ने राज्यव्यापी अभियान चलाया था। मीडिया के कारण जगह-जगह माकपा कार्यालयों के सामने धरना प्रदर्शन हुए। जनसंघर्ष का नतीजा था कि केरल हाई कोर्ट ने मुकदमे की दुबारा सुनवाई का आदेश दिया। फिर से जिला अदालत हत्या के आरोप पर सुनवाई कर रही है।  मगर माकपा शीर्ष नेतृत्व है कि अभी तक टस से मस भी नहीं हुआ। अत: जनयुद्ध अभी जारी है।