रमेश शर्मा।

भारतीय स्वाधीनता संघर्ष की सफलता में उस भावना की भूमिका महत्वपूर्ण है जिसने समाज में स्वत्व का वोध कराया। यदि हम केवल आधुनिक संघर्ष का ही स्मरण करें तो हम पायेंगे कि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती से लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा केशव हेडगेवार तक ऐसे असंख्य हुतात्माएं हुईं हैं जिन्होंने दोहरा संघर्ष किया। एक तो स्वयं सीधा संघर्ष किया और संघर्ष के लिये स्वाधीनता सेनानी भी तैयार किये और दूसरा समाज में स्वत्व और सांस्कृतिक जागरण का अभियान चलाया। जिससे जाग्रत होकर समाज संघर्ष के लिये सामने आया। लक्ष्मी बाई केलकर (6 जुलाई 1905 – 27 नवम्बर 1978) ऐसी ही एक महाविभूति थीं जिनका पूरा जीवन भारत राष्ट्र, समाज और सांस्कृतिक जागरण के लिये समर्पित रहा।

लक्ष्मी बाई केलकर का जन्म को नागपुर में हुआ था। उनके पिता दातेजी लोक मान्य तिलक जी के अनुयायी थे इस नाते परिवार में राष्ट्र और सांस्कृतिक जागरण का वातावरण था, लक्ष्मीबाई इसी के बीच बड़ी हुईं। उनके बचपन का नाम कमल दाते था लेकिन विवाह के बाद वे लक्ष्मी बाई केलकर बनीं और वर्धा आ गईं। उनका विवाह चौदह वर्ष की आयु में विदर्भ के सुप्रसिद्ध अधिवक्ता पुरुषोत्तम राव केलकर से हुआ था। पुरुषोत्तम जी विधुर थे यह उनका दूसरा विवाह था। दोनों की आयु में अंतर भी था, लक्ष्मी बाई की आयु भले अभी कम थी पर वे मानसिक और बौद्धिक रूप से परिपक्व हो रहीं थीं। विवाह के बाद उन्होंने अपनी शिक्षा भी जारी रखी और पति के साथ समाजसेवा के कार्यो में भी सहभागी बनीं। यह वह काल-खंड था जब स्वाधीनता के लिये अहिसंक आँदोलन पूरे देश में प्रभावी हो रहा था। यह संयोग ही था कि लक्ष्मी बाई के मायके का दाते परिवार और ससुराल का केलकर परिवार दोनों इन गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे।

Aman Sharma on X: "Salute, On the birth anniversary of Lakshmibai Kelkar  "Mausiji", who set up an organization called 'Rashtra Sevika Samiti', for  the women empowerment and the creation of pride and

पूरा विदर्भ मानों इन अभियानों का हिस्सा था यही कारण था कि 1923 के झंडा सत्याग्रह का सर्वाधिक प्रभाव पुणे से लेकर विदर्भ तक रहा था। यह इस आँदोलन की व्यापकता का ही प्रभाव था कि आगे चलकर गाँधी जी ने नागपुर के समीप वर्धा को अपना एक प्रमुख केन्द्र बनाया। अधिवक्ता पुरुषोत्तम राव केलकर अपनी पत्नि लक्ष्मी बाई के साथ इन सभी गतिविधियों में हिस्सा लेते। गाँधी जी और तत्कालीन आंदोलनों का कितना प्रभाव इस परिवार पर था इसका अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि लक्ष्मी बाई ने अपने घर में एक चरखा केन्द्र स्थापित कर लिया था। वे सामाजिक जागरण के लिये तीन काम करतीं थीं। एक तो महिलाओं में चरखे के माध्यम से स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा देतीं, दूसरा भारतीय वाड्मय के उदाहरणों से सामाजिक समरसता का वातावरण बनातींथीं। इसके लिये उन्होंने अपने घर में अनुसूचित समाज के बंधुओ को सहयोगी के रूप जोड़ा हुआ था। और तीसरा राम चरित मानस के प्रवचन से साँस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों की स्थापना। वे मानतीं थीं कि राष्ट्र की स्वायत्तता ही सर्वोपरि है। एक बार जब गाँधी जी ने एक सभा में दान की आव्हान किया तो उसी क्षण लक्ष्मीबाई ने अपने गले से सोने की चैन उतारकर गाँधी जी को समर्पित कर दी थी।

उनका वैवाहिक जीवन अधिक न चल सका। वे अभी मात्र 27 वर्ष की थीं कि 1932 मे पति का देहान्त हो गया। उनके पास दोहरा दायित्व आ गया। परिवार में एक विधवा नंद भी रहतीं थीं। लक्ष्मी बाई ने अपने बच्चों के साथ उन्हें भी सहेजा। लक्ष्मीबाई ने अपनी आवश्यकताएं सीमित कीं पर न बच्चों का शिक्षण रोका न अपनी सामाजिक गतिविधियाँ कम कीं। उन्होंने अपने घर का कुछ हिस्सा किराये पर उठाया इससे भी कुछ लाभ हुआ। अपनी सामाजिक सक्रियता के चलते वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा केशव हेडगेवार के संपर्क में आयीं। उन्होंने नमक सत्याग्रह में भी भाग हिस्सा लिया किंतु डा हेडगेवार की सलाह पर जेल नहीं गईं और बाहर रहकर सामाजिक जागरण एवं स्वतंत्रता आँदोलन के लिये टोली तैयार करने का काम जारी रखा जो पति की मृत्यु के बाद और तेज हुआ। उनके द्वारा तैयार टोलियों ने विदर्भ में चलने वाले हर आँदोलन में लिया। महिलाएं कीर्तन करते हुये प्रभात फेरी निकालती चरखा और खादी का संदेश देतीं थीं। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ संस्थापक डा हेडगेवार की सलाह पर वर्धा में 1936 में स्त्रियों के लिए “राष्ट्र सेविका समिति” नामक संगठन की नींव रखी। इसके लिये भारत भर की यात्रा की और संगठन के कार्य को विस्तार दिया।

Lakshmibai Kelkar Jayanti: 'Mausi Ji', the Nari Shakti behind Rashtra Sevika Samiti

1945 में राष्ट्र सेविका समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। यह वह समय था जब देश के विभाजन वादी शक्तियां प्रबल हो रहीं थीं। अंग्रेजी सरकार का उन्हें संरक्षण था इस नाते उनकी हिंसक गतिविधियाँ बढ़ गईं थीं। विशेषकर बंगाल पंजाब और सिंध में हिन्दु समाज की महिलाओं में एक भय का वातावरण बनने लगा था। लक्ष्मी बाई केलकर ने अपने संगठन के माध्यम में महिलाओं में संगठित रहने और आत्म विश्वास जगाने का अभियान चलाया देश की स्वतन्त्रता एवं विभाजन से समय वे सिंध में थीं। उन्होंने हिन्दू परिवारों को भारतीय सीमा में सुरक्षित पहुँचने के प्रबन्ध किये।

उन्होंने महिलाओं में जाग्रति के लिये बाल मन्दिर, भजन मण्डली, योगाभ्यास केन्द्र, बालिका छात्रावास आदि अनेक प्रकल्प प्रारम्भ किये। वे राम चरित्र मानस पर बहुत सुन्दर प्रवचन देतीं थीं। जिनमें संतान के निर्माण, परिवार के निर्माण, समाज के निर्माण और सामाजिक एकत्व का संदेश होता था। वे आजीवन राष्ट्र और समाज की सेवा में लगीं रहीं। वे शरीर से भले 27 नवम्बर 1978 को नश्वर शरीर छोड़कर संसार से विदा हुईं पर उनकी आभा आज भी समाज में प्रतिबिंबित हो रही है।

उनके द्वारा गठित राष्ट्र सेविका समिति राष्ट्र निर्माण में नारी शक्ति जागरण का प्रतीक बन गयी। जो समाज में संस्कार और पारिवारिक विमर्श का वातावरण बना रही है। उनका संकल्प आज बृहद और वैश्विक रूप ले रहा है। उनका संकल्प और विचार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं।

यह भारत के इतिहास में स्त्रीशक्ति जागरण और सशक्तिकरण की बड़ी घटना थी। लक्ष्मी बाई केलकर ने महिलाओं को अनुशासित सेविका बनाने के लिए प्रशिक्षण अभियान आरंभ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सिद्धांत, विचार एवं उद्देश्य के आधार पर नारी शाखा आरंभ की थी। वर्तमान में भारतवर्ष में राष्ट्र सेवा समिति की लगभग पाँच हजार से अधिक शाखाएं संचालित हो रहीं हैं।

समिति का कार्य अपने ध्येय-सूत्र के साथ अल्प समय में ही प्रभावशाली उपलब्धियां अर्जित करने लगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भाँति राष्ट्र सेविका समिति के भी प्रतिवर्ष मई-जून में सामान्यतः पंद्रह दिनों के प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष के प्रशिक्षण शिविर आयोकित किए जाते हैं। इन शिविरों में बौद्धिक, शारीरिक और आत्म-रक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह शिविर नागपुर तथा अन्य स्थानों पर आयोजित किये जाते हैं।

लक्ष्मीबाई केलकर - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर

जिस प्रकार संघ का अपना गणवेश है, उसी प्रकार समिति का भी अपना एक गणवेश है। जैसे संघ में प्रचारक होते हैं, वैसे ही समिति में भी प्रचारिकाएं होती हैं। वर्तमान में अड़तालीस प्रचारिकाएं भारतवर्ष के विभिन्न भागों में सेवा प्रदान कर रही हैं।

समिति में एक प्रावधान लघु अवधि की पूर्णकालिक कार्यकर्ता का भी है, जिन्हें विस्तारिका कहा जाता है। यह दो वर्ष की समयावधि के लिए होता है. जिसमे स्वयंसेविका अपना पूरा समय समिति के कार्य के लिए समर्पित करती हैं।

लक्ष्मी बाई केलकर ने अपने व्याख्यान में कई अवसर पर कहा है कि महिला, परिवार और राष्ट्र के लिए प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती है। जब तक शक्ति को जागृत नहीं किया जाता तब तक परिवार समाज और राष्ट्र जाग्रत नहीं होगा।उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग और आव्हान आज भी अनुकरणीय हैं। अब समिति द्वारा बहुमुखी कार्य भी किए जा रहे हैं। समिति के अनेक सेवा प्रकल्प प्रारंभ किये हैं, जिनमें छात्रावास, चिकित्सालय, उद्योग, भजन मंडल आदि

राष्ट्र सेविका समिति का कार्य केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों में फैला हुआ है। ब्रिटेन, अमरीका, मलयेशिया, डर्बन, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका में भी समिति की स्वयंसेविकाएं सक्रिय हैं। लक्ष्मी बाई केलकर का व्यक्तित्व और कृतित्व भारत में प्रत्येक परिवार और विशेष कर नारी शक्ति की क्षमता मेधा और प्रज्ञा शक्ति का एक अनुकरणीय उदाहरण है। जो सदैव स्मरणीय और वंदनीय है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)