अनूप भटनागर । 

दिल्ली की सीमाओं पर पड़ोसी राज्यों के किसानों की घेराबंदी से उत्पन्न स्थिति के परिप्रेक्ष्य में तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों पर अमल स्थगित करके इनके आपत्तिजनक बिन्दुओं पर विचार के लिये उच्चस्तरीय समिति गठित करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नजर नहीं आता है। इस समिति की अध्यक्षता देश के किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश को सौंपे जाने का न्यायालय ने संकेत दिया है। साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि इस समय वह इन कानूनों की खत्म करने के बारे में बात नहीं कर रहा है। न्यायालय इस मामले पर मंगलवार, 12 जनवरी को अपना आदेश सुनाएगा। 


 

समिति बनने पर घर लौट जाएं किसान

न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के दौरान उचित दूरी बनाये रखने जैसे नियमों का पालन नहीं होने और कुछ किसानों की मृत्यु होने पर चिंता व्यक्त की और कहा वह चाहता है कि समिति गठित होने की स्थिति में किसान अपने घर लौट जायें।

न्यायालय ने इस विवाद का अभी तक समाधान नहीं होने पर गहरी निराशा व्यक्त की और कहा, ‘‘हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि केन्द्र इस समस्या और किसान आन्दोलन को नहीं सुलझा पाया।’’

Supreme Court 'disappointed' with govt's handling of farmer protests, says hold farm laws or we will - India News

उच्चतम न्यायालय ने 17 दिसंबर को भी कहा था कि वह इस सारे विवाद के समाधान के लिये एक स्वतंत्र समिति गठित करने पर विचार कर रहा है और इस दौरान सरकार से भी आग्रह करेगा कि वह इन कानूनों पर अमल स्थगित रखे। हालांकि, केन्द्र ने इस सुझाव पर रजामंदी नहीं दी थी।

वैसे तो इस प्रकरण पर सुनवाई की पिछली तारीख से अभी तक स्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ। हां, केन्द्र और किसान यूनियनों के नेताओं के बीच हुई बातचीत की प्रगति और प्रक्रिया पर न्यायालय ने जरूर निराशा व्यक्त की।

तो फिर हम ऐसा करेंगे

Dushyant Dave: Latest News, Videos and Photos on Dushyant Dave - DNA Newsइस मामले में कुछ किसान यूनियनों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और अधिवक्ता प्रशांत भूषण सरीखे अधिवक्ता जरूर पेश हुए थे और उन्होंने भी समिति के गठन के विचार से सहमति व्यक्त की। लेकिन न्यायाधीशों ने जानना चाहा कि क्या वे आन्दोलन कर रहे किसानों को अपनी मांगे समिति के समक्ष रखने के लिये तैयार कर सकेंगे।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने आज बेहद स्पष्ट शब्दों में कहा कि ‘‘अगर सरकार इन कानूनों पर अमल स्थगित नहीं करने के लिये तैयार नहीं है तो फिर हम ऐसा करेंगे।’’

समिति की अध्यक्षता के लिये पूर्व प्रधान न्यायाधीशों के नाम मांगे

अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इन कानूनों पर अमल स्थगित करने के प्रति अनिच्छा व्यक्त करते हुए न्यायालय से कहा कि अगर पहली नजर में उसे लगता है कि इन कानूनों से मौलिक अधिकारों और संविधान के प्रावधानों का हनन हो रहा है तो वह इन पर रोक लगा सकता है।

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने संबंधित पक्षकारों से इस समिति की अध्यक्षता के लिये पूर्व प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढ़ा सहित दो तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों के नाम मांगे हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘अगर समिति की सलाह होगी तो वह इन कानूनों के अमल पर रोक लगा देगा। पीठ ने कहा कि किसान इन कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और वे अपनी आपत्तियां समिति के समक्ष रख सकते हैं।

आन्दोलन जारी रख सकते हैं किसान

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने हालांकि, यह इच्छा जरूर की कि वह चाहता है कि किसान अपने घर लौट जायें। लेकिन साथ ही यह टिप्पणी भी की कि इन कानूनों के अमल पर रोक लगाये जाने के बाद आन्दोलनकारी किसान अपना आन्दोलन जारी रख सकते हैं क्योंकि न्यायालय किसी को यह कहने का मौका नहीं देना चाहता कि उसने विरोध की आवाज दबा दी।

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न्यायालय महसूस करता है कि किसानों के साथ बातचीत टूटने की वजह या इसमें गतिरोध बने रहने का कारण यही है कि केन्द्र इन कानूनों के प्रत्येक प्रावधान पर चर्चा करने पर जोर दे रहा है जबकि आन्दोलनकारी किसान चाहते हैं कि इन्हें खत्म किया जाये।

किसानों के आन्दोलन को कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों का समर्थन प्राप्त है। पंजाब, केरल और दिल्ली विधानसभा इन कानूनों को वापस लेने के प्रस्ताव पारित कर चुकी हैं।

केन्द्र से सवाल

न्यायालय ने भी केन्द्र से सवाल किया है कि आपने ऐसा कानून क्यों बनाया जिसका राज्य ही विरोध कर रहे हैं। हमारे सामने एक भी ऐसी याचिका नहीं है जिसमे इन कानूनों को लाभकारी बताया जा रहा हो।

केन्द्र ने पिछले साल सितंबर में जो तीन नये कानून बनाये उनमें कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार, कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून शामिल हैं।

इन कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कई याचिकायें दायर की गयी थीं। इन याचिकाओं पर न्यायालय ने पिछले साल 12 अक्टूबर को केन्द्र को नोटिस भी जारी किये थे।

अब देखना यह है कि शीर्ष अदालत के किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित होने के बाद क्या आन्दोलनकारी किसान दिल्ली की सीमाओं की घेराबंदी खत्म करते हैं या वे ‘कानूनी वापसी’ पर ही ’घर वापसी’ पर अड़े रहते हैं।


 

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