आपका अख़बार ब्यूरो
मथुरा और वाराणसी में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थीं। ऐसे में मथुरा और वाराणसी की मस्जिदें हिंदुओं को सौप देना चाहिए। यदि यह हो गया तो हिन्‍दू नरम पड़ेंगे ओर देश अफगानिस्तान एवं सीरिया की तरह गृह युद्ध से बच जाएगा अन्‍यथा देश गृह युद्ध की आग में फंस जाएगा। अपनी बेबाक शैली में यह कहना रहा पुरातत्वविद् के.के. मोहम्मद का।

दरअसल, वे विक्रमोत्सव-2025 अंतर्गत सोमवार से तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय इतिहास समागम का शुभारंभ अवसर पर इतिहास एवं पुरातत्‍व विषय पर सारस्‍वत उद्बोधन देने उज्‍जैन आए हुए थे। उल्‍लेखनीय है कि अयोध्या में पुरातात्विक खुदाई में स्पष्ट रूप से मस्जिद के नीचे मंदिर की उपस्थिति के प्रमाण भारत के सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत करनेवाले भारतीय पुरातत्वविद् श्री मोहम्मद सोमवार को पं.सूर्यनारायण व्यास संकुल, कालिदास संस्कृत अकादेमी परिसर में मीडिया से संवाद कर रहे थे।

उन्‍होंने कहा, अयोध्या में बाबरी मस्जिद के नीचे जो पिलर थे, उनमें कलश रूपी आकृतियां बनी हुई थीं। यही एक प्रमाण हमें हिंदू मंदिर होने के लिए संकेत कर रहा था। 1976-77 में पद्मश्री प्रो. बीबी लाल के अंडर में हमारी टीम ने राम मंदिर प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था। उस समय मस्जिद के ऊपरी और भीतरी तह तक का परीक्षण किया गया। हमने देखा कि मस्जिद के जितने पिलर थे, उनकी बनावट देखकर ही समझ में आ गया कि ये मंदिर के हैं, मस्जिद के नहीं। 12वीं शताब्दी में निर्मित श्रीराम मंदिर के अनेकों पिल्लर्स मस्जिद के नीचे पाए जाने के बाद अयोध्या का मामला सबूत के साथ न्यायालय में रखा गया तो न्यायालय ने हिन्‍दू भावना के हक में फैसला दिया और मस्जिद के लिए पांच गुना जमीन दूसरी जगह दे दी गई।

श्री मोहम्‍मद ने कहा, इसी प्रकार मुस्लिमों को समझ लेना चाहिए कि मथुरा और वाराणसी में जो मस्जिद हैं, वे हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं। उसके सबूत भी एकत्रित हो गए हैं। मैंने स्वयं पुरातत्वविद् के नाते अंदर जाकर देखा है। ऐसे में मुस्लिमों को चाहिए कि वे ये दोनों मस्जिद हिंदुओं को सौप दें। हिंदू बस इतना ध्यान रखें कि इन दोनों मस्जिदों को लेने के बाद और मांग करना बंद कर दें। मुस्लिम यह मान लें कि जो गलतियां हो गई थीं, उसका अहसास है और बदले में मथुरा तथा वाराणसी की दो मस्जिदें हिंदुओं को सौप दी गई हैं। यदि यह हो गया तो ठीक, वरना देश में गृह युद्ध होने से कोई नहीं रोक सकेगा।

इसके साथ ही के.के. मोहम्मद ने कहा कि मैं अकेला मुस्लिम हूं, जिसने मस्‍जिदों के नीचे जाकर हिंदू मंदिरों के अवशेष देखे। औरंगजेब के समय लिखी गई पुस्तक में भी स्पष्ट लिखा हुआ है कि मंदिरों को तोड़ा गया और उसी सामग्री से मस्जिदों का निर्माण किया गया। मुस्लिमों में भी ऐसे लोग हैं जो यह मानते हैं कि उस समय गलतियां हुईं। लेकिन इन गलतियों को सुधारने के लिए जब समय आया है तो सभी मुस्लिमों को एकमत होना होगा। उन्‍होंने कहा कि इस देश में सदियों से हिंदू और मुसलमान साथ में रहते आ रहे हैं। यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो भारत कभी का अफगानिस्तान या सीरिया बन गया होता। मुस्लिम होने के नाते यह मेरा व्यक्तिगत बयान है कि हमें भविष्य में गृह युद्ध की ओर नहीं जाना चाहिए।

Kashi, Mathura Are Not About The Past; They Symbolise An Iconoclasm That  Continues Even Today

श्री मोहम्‍मद का कहना रहा कि अब यह सब संभव नहीं है कि आप मुस्लिमों को देश से निकाल दें। इसके अलावा प्रतिबंधित पीएफआई की बात करते हुए उन्होंने कहा कि जब वे अयोध्या के राम मंदिर की बात कर रहे थे, बावरी मस्जिद को मंदिर तोड़कर बनाया गया है, यह बात रख रहे थे, तब उन पर केरल में प्रतिबंधित पीएफआई के लोगों ने बहुत दबाव बनाया। मैं उस वक्त पहरे में रहता था। जब से पीएफआई पर प्रतिबंध लगा है, मैं रातों को सुकून से सो रहा हूं।

देश के प्रसिद्ध पुरातत्वविद् के.के. मोहम्मद ने यह भी कहा है कि धार्मिक संघर्षों से देश को नुकसान होता है, जैसे कि सीरिया और अफगानिस्तान में हुआ। वहां धार्मिक और सांप्रदायिक हिंसा ने सामाजिक ताने-बाने को नष्ट कर दिया है।

इस दौरान इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. बालमुकुंद पांडे का कहना था कि भारत की परंपराएं ही इतिहास की प्रमुख जड़ हैं, जिसमें मौखिक-वाचक परंपराओं में इतिहास को जीवित रखा है। क्योंकि पुरातत्व संपूर्ण समाज का नहीं हो सकता, वह किसी काल विशेष की सीमित घटनाओं का ही उल्लेख कर सकता है। किंतु समाजिक परंपराओं में हजारों वर्षों के इतिहास को आज भी जीवितता प्रदान करती है। आपने भृर्तहरि की कथा में सम्राट विक्रमादित्य संबंधी विविध प्रमाण बताएं।

इस दौरान सारस्वत अतिथि पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित, विक्रम विवि के कुलगुरु डॉ. अर्पण भारद्वाज, कार्य परिषद के वरिष्ठ सदस्य राजेशसिंह कुशवाह, इतिहास संकलन समिति मालवा प्रांत के अध्यक्ष डॉ. तेजसिंह सेंधव, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जबलपुर सर्कल के अधीक्षण अधिकारी डॉ. शिवाकांत वाजपेयी एवं हैदराबाद की डॉ. स्मिथा एस. कुमार, वरिष्ठ पुराविद डॉ. रमण सोलंकी, डॉ. प्रशांत पुराणिक उपस्‍थ‍ित थे।