#satyadevtripathiसत्यदेव त्रिपाठी।
आजकल चल रही चैंपियंस ट्रॉफी में 23 फ़रवरी को कोहली ने कई विराट काम कर दिये… एकदिनी मैचों में 14000 का आँकड़ा पार करने वाले सबसे तेज बल्लेबाज़ बन गये हैं और सबसे कम मैचों में। इसके पहले क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन के यह करने का रेकोर्ड 359 मैचों की 350 पारियों का रहा है, जबकि कोहली ने 299 मैचों की 287 पारियों में ही यह रेकोर्ड बना दिया। ज़ाहिर है कि यह बहुत बड़े अंतर का मामला है…, जो क्रिकेट-कौशल से बावस्ता है। माना कि सचिन के तब का समय दूसरा था, लेकिन इससे विराट की रन बनाने की गति का अंदाज़ा तो सहज ही लगाया जा सकता है। 300 से कम मैचों में यह उपलब्धि हासिल करने वाले विराट दुनिया में इकले हैं।

इसी के साथ अंतरराष्ट्रीय मुक़ाबलों में विराट कोहली अब सचिन (34357) व संगकारा (28016) के बाद सबसे ज्यादा रन (27500) बनाने वाले तीसरे बल्लेबाज़ बन गये हैं। यह कोहली के क्रिकेट जीवन का 82वां और एकदिवसीय क्रिकेट का 51वां शतक है। और दूसरी बड़ी उपलब्धि यह कि अपने खेल जीवन का 157वां कैच लपककर कोहली ने अज़हरूद्दीन का विश्व रेकोर्ड तोड़ दिया – उनसे आगे निकल गये…। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ आइसीसी एक दिनी प्रतियोगिता में विराट के सबसे अधिक रन भी हो चुके हैं। 443 रन बनाकर भारत के मौजूदा कपटन रोहित शर्मा (373) को पीछे छोड़ दिया है…। बहरहाल,

भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का मैच कोई भी हो, वह खेल नहीं, संग्राम होता है। पाकिस्तान-भारत का आमने-सामने खेलना क्रिकेट नहीं, क्रिकेट-खेल की शव-परीक्षा होती है। और कहना होगा कि ऐसे मैचों में आज की भारतीय टीम के सबसे सीनियर व सबसे सधे-मँज़े विश्वसनीय खिलाड़ी कोहली का वह विराट रूप पाकिस्तान के विरुद्ध ख़ास तौर पर प्रायः नुमायाँ होता है – गोया पाकिस्तान के सामने आते ही उसकी छठीं इंद्रिय अपनी बाक़ी सभी इंद्रियों को जगा देती है, उन्हें सावधान कर देती है – कि हर हाल में अपना सर्वोत्तम देना है…। अब तक इसके कई-कई रूप देखे गये हैं, जो स्थिति के अनुसार बनते-बिगड़ते हैं। लेकिन हर हाल में विराट का अपना खेल-गणित बना रहता है। वह किसी स्थिति-प्रेरणा-प्रतियोगिता-अहम…आदि से डिगता तो क्या, प्रभावित तक नहीं होता…।

इस मैच के आईने की जानिब से कहें, तो पाकिस्तान के साथ मैच में विराट के खेल के कई रूप देखे जा सकते है। कभी विस्फोटक होकर वह चौके-छक्के पर उतरता हुआ दिखता है… तो कभी इतना शांत-सजग हो जाता है कि ऐसे में उसके इरादे-ओ-अंदाज को समझना मुश्किल हो जाता है। चैंपियंस ट्रॉफी मुक़ाबले की इस पूरी पारी में पचास या सौ बनाने की कोई गरज एक बार भी दिखी नहीं विराट में…! बस, सारा ध्यान बल्लेबाज़ी पर रहा…। उधर लक्ष्य इतना नज़दीक आ रहा था कि एक मुक़ाम पर तो शंका यह भी होने लगी थी कि कहीं खेल पूरा हो जाये – भारत जीत जाये और कोहली का शतक एक-दो रन से रह न जाये…। ऐसा कम ही होता है कि श्रेयस अय्यर के तेज खेल और हार्दिक के चौके को लेकर हमें ख़ुशी नहीं हो रही थी। और उधर अक्षर द्वारा दो रन के बदले एक रन लेकर बल्लेबाज़ी विराट को देने की नेकनीयती पर विराट ही उस पर बिगड़ रहे थे कि रन क्यों छोड़ दिया।

दूसरी तरफ़ पूरी पाकिस्तान टीम अपनी हार को तो रोक नहीं सकती थी, तो वह विराट का शतक ही रोकना चाह रही थी। गेंदबाज़ शाहिद अफ़रीदी का तीन-तीन गेंद वाइड फेंकना और स्लिप में खड़े फ़ील्डर का उसे रोकने का प्रयत्न न करना सबको दिख रहा था। उनके इरादे सफल हो जाते, तो हतक सबको होती…। ऐसे क्षणों में सभी सोचते हैं अपने शतक की भी…। इस मैच के पहले वाले में ही देख लें…शुभमन ने मौक़ा निकाल कर चौका-छक्का मार के शतक आरक्षित कर लिया था…। लेकिन यहाँ विराट महाशय थे कि अपने शतक के बदले जीत के लक्ष्य के अत्यधिक नज़दीक पहुँचने की कोशिश छोड़ न रहे थे…। यहाँ तक कि जब विराट 94 रन पर था, वहाँ से रोहित बार-बार इशारा कर रहा था कि छक्का मार और शतक पूरा कर…। लेकिन विराट उसकी अनदेखी करके एक-एक रन चुराने का खेल खेले जा रहा था…और इस तरह 96 पर आ गया…। तो फिर जाके अपना स्टाइलिश चौका मारा… और फिर जीत-शतक – सब कुछ साथ पूरा हुआ…।

क्या यह कोहली का सुनियोजित प्रयत्न था? या खेल की रौ में ऐसा हो गया…? जो भी हो, हर तरह से अद्भुत लगा। यह इरादा और यह योजना तथा यह अचानक लिया गया निर्णय कोहली के देशहित एवं उसकी क्रिकेट संहिता का प्रमाण है…और यही उसे विराट बनाता है…।

साथ में अपने खेल के प्रति यह विश्वास भी, जिसमें जितने विश्वास के साथ वह चौका मारता है, उतनी आसानी से छक्का नहीं। मैं तो उसे चौकों का मास्टर खिलाड़ी कहता ही हूँ। और अभी पिछले दिनों जब स्कवेयर ड्राइव पर कई बार आउट होने के बावजूद वह वही चौका मारना छोड़ नहीं रहा था, तो किसी क्रिकेट-समीक्षक के पूछने पर उसने कहा भी था – इसी से तो मैंने इतने रन बनाए हैं, तो इसे छोड़ क्यों दूँ – नित नवीन रूप से साधूं क्यों नहीं? और इस मैच में वह सधा…। गरज ये कि अनुपम है उसका यह विश्वास, यह प्रतिबद्धता, यह लगन-समर्पण और यह अटूट आस्था…।

चैंपियंस ट्रॉफ़ी यानी छोटा विश्वकप

इसी सबके बल विराट अब तक 21 बार प्लेयर ओफ द सीरीज़ बन चुके हैं – सचिन 20 बार बनकर दूसरे नंबर पर हैं…। कप्तान के रूप में टेस्ट मैचों में 6 बार दोहरा शतक मारने वाले विराट दूसरे नंबर पर हैं – पहले पर ब्रायन लारा हैं। रनों का पीछा करते हुए विराट ने सर्वाधिक 26 शतक लगाये हैं – यहाँ ब्रायन लारा दूसरे नंबर पर हैं। इसी से कोहली को सबसे अच्छा ‘रन चेजर’ कहा जाता है।

इतनी सारी नायाब उपलब्धियों से भरपूर कोहली के विराट रूप का क्रिकेट-जगत में कोई सानी नहीं! और इसके लिए हम उसे सलाम करते हैं और दिल से कामना करते हैं कि इसी तरह अपने निजी व निराले अंदाज में एक से एक विराट उपलब्धियों को हासिल करता रहे…आमीन!