उत्तर प्रदेश शहर की प्राचीन इमारतें और धरोहरे आज भी अपनी कलात्मक शैली और खूबसूरती के लिए विश्व प्रसिद्ध है वहीं ऐतिहासिक घटनाओं की गवाही भी देती है । ये केवल घूमने -फिरने की जगह भर नहीं है बल्कि यहां बैठकर उस दौर को महसूस करने की भी जरूरत है।इसी में एक कोठी है फरहत बख्श । जब डालीगंज के लोहे वाले पुल से परिवर्तन चौक की तरफ आएंगे तो रास्ते में ही बांएं तरफ छतर मंजिल दिखेगी। पहले इसी परिसर में सीडीआरआई का ऑफिस था, जो अब शहर में ही जानकीपुरम् के पास चला गया है। अब यहां पर पुरातत्व विभाग का प्रशासनिक भवन भी हैं। इसी परिसर में आगे फरहत बख्श कोठी खड़ी हुई है। अब यह है तो बहुत पुरानी, लेकिन अपनी बनावट और खूबसूरती के लिए लोग आज भी देखने आते हैं।

वहां लगी शिला पट्टी के अनुसार फरहत बख्श कोठी का निर्माण फ्रांसीसी जनरल क्लाउड मार्टिन ने सान 1781 में अपने निवास के लिए करवाया था। इंडों-फ्रंस शैली में निर्मित इस मार्टिन विला को बाद में अवध के नवाब आसफुद्दौला ने खरीद लिया था। बाद में अपनी अस्वस्थता के चलते ब्रिटिश रेजीडेंड की सलाह पर नवाब सआदत अली खां इस कोठी में रहने लगे, जिससे उनके स्वास्थ्य को बहुत अधिक लाभ मिला।

इसके बाद नवाब ने इस कोठी का नाम फरहत बख्श नाम दिया। फरहत बख्श का का हिन्दी में अर्थ आनंददायक है। यह दो तलों में बनाई गई है। इस कोठी का तहखाना प्रचंड गर्मी से मुक्ति पाने के लिए इस प्रकार से निर्मित किया था कि गोमती नदी के पानी से गुजरने वाली हवाएं इसे ठंडा बनाए रखे।

इसकी छत को चित्रकारी से सुज्जित किया गया था। द्वितीय तल पर बालकानी बनाई गई थी, जिस पर से गोमती सहित शहर की खूबसूरती को देखा जा सकता था। बाद में नवाब सआदत अली खां ने साल 1798 से 1814 के बीच इस भवन में दांतेदार मेहराबों व अवधी प्रकार के दरवाजे व खिड़कियां लगवाई थी। कोठी के पास पहुंचकर आपको भी आनंद आएगा। (एएमएपी)