रासबिहारी पाण्डेय।
दुनिया भर के वक्ता रामकथा के लिए वाल्मीकि और तुलसीदास रचित रामायण को आधार बनाते हैं, मगर कुमार विश्वास ने एक उर्दू शायर की नज्म को आधार बनाकर यूट्यूब पर ‘किसके गुलाम हैं राम’ शीर्षक से एक वीडियो डाला है जिसका लिंक यहां प्रस्तुत है।
वीडियो के अनुसार भगवान राम अपनी एक जाँघ पर सीता को और दूसरी जाँघ पर शबरी को लिटाकर बेर खिला रहे हैं, तभी लक्ष्मण पानी लेकर पहुँचते हैं और यह देखकर उनकी त्यौरी चढ़ जाती है।
सीता हरण के बाद राम मिलते हैं शबरी से
शबरी से राम का मिलन सीता हरण के बाद होता है। किसी भी रामायण में शबरी और सीता को जाँघ पर सुलाने का प्रसंग नहीं है। उर्दू शायर रामकथा के आचार्य कबसे हो गए? क्या किसी हिंदी कवि में यह साहस है कि वह कुरआन में फेरबदल करके अपनी कविता का विषय बनाए… ‘सर तन से जुदा’ का फतवा जारी होने में एक दिन की भी देर नहीं लगेगी। कुमार विश्वास ने यह बहुत बड़ा दु:साहस किया है, उन्हें हिंदू समाज से माफी माँगते हुए तत्काल यह वीडियो हटा लेना चाहिए।
रामकथा के मंच पर बैकग्राउंड में राम दरबार या हनुमान जी का चित्र लगाने की परंपरा है किंतु कुमार ‘अपने अपने राम’ का बैनर बनाकर बैकग्राउंड में अपना ही चित्र लगाकर कथा कर रहे हैं। यह अत्यंत आपत्तिजनक है। उनकी कथा रामकथा कम किसी मोटिवेसनल स्पीकर की स्पीच अधिक लगती है।
आस्था का निरादर
वे जब तब भगवान राम के लिए इमामे हिंद शब्द का भी उपयोग करते हैं। इमाम का अर्थ मुस्लिम पुरोहित होता है। भगवान राम तो अनंतकोटि ब्रह्मांड नायक परम ब्रह्म हैं जिनसे करोड़ों हिंदुओं की आस्था जुड़ी है, उन्हें इमाम बता कर वे न सिर्फ अपनी अज्ञानता का परिचय दे रहे हैं बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था का भी निरादर कर रहे हैं।
आज ही कथा का स्वरूप बिगड़ा है, ऐसा नहीं है। आदिकाल से राक्षस/राक्षसियाँ अपने स्वार्थ बस साधु/साध्वी का वेष बनाते रहे हैं। रामचरितमानस में रावण और कालनेमि द्वारा भी कथा का जिक्र आता है, लेकिन यह भी कहा है कि- ‘उघरहिं अंत न होय निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू।।‘
उघरहिं अंत न होय निबाहू
एक न एक दिन इनका भाँडा फूट ही जाता है। बावजूद इसके कलिकाल में इनके समर्थकों को कोई फर्क नहीं पड़ता। आसाराम बापू अगर जेल से आज रिहा हो जायँ तो कल से पुन: इनके समर्थक जय जयकार करने में जुट जाएँगें। जिन लोगों ने किसी भी क्षेत्र में अपना नाम दाम बना लिया है, उनके समर्थक अपने लाभ के मद्देनजर आँख मूँदकर उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।
बहुतेरे कथावाचकों को सुनते हुए लगता है कि वे सिर्फ गपशप या जगत चर्चा में लगे हैं। कथा के बाद जब आरती होने लगती है तब राम कृष्ण का नाम सुनाई पड़ता है। मानव मन की ऐसी कौन सी उलझन है जिसको सूर, तुलसी, मीरा, कबीर या भक्तिकाल के अन्य कवियों ने स्वर नहीं दिया है। बावजूद इसके कथाओं में फिल्मी गीत/ग़ज़लों का सहारा लिया जा रहा है।
व्यासपीठ से इस्लाम की वकालत!
कथावाचकों के सहारे उनके अनुयायियों/संयोजकों को कमाई का भरपूर मौका मिलता है, इसलिए वे उनकी किसी भी बात का आँख मूँद कर समर्थन करते हैं। जैसे वोट बैंक के लिए नेता ‘अल्पसंख्यक हितों’ शब्द का सहारा लेते हैं, वैसे ही इनके समर्थक भी सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं। व्यासपीठ से इस्लाम की वकालत करने वालों को सही कैसे ठहराया जा सकता है? सबसे अधिक सहिष्णु या नास्तिक हिंदुओं में ही हैं। मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध और सिक्खों में यह कंफ्यूजन नहीं है। सुदर्शन न्यूज चैनल ने धर्म शुद्धि अभियान के तहत दावा किया था कि उसके पास प्रवचनकर्ताओं के इस्लाम प्रेम वाले 323 वीडियो हैं जिसमें 34 वीडियो सिर्फ मोरारी बापू के हैं। चैनल ने यह भी वादा किया था कि धर्म संसद आयोजित करेगा और सबसे माफी मँगवाएगा, हिंदुओं को कथा जेहाद करने वालों के खिलाफ जागृत करेगा। लेकिन संसाधनों की कमी का बहाना बनाते हुए उसने जल्द ही यह अभियान बंद कर दिया। खोजी पत्रकारों के लिए यह भी एक बड़ा मुद्दा है।
पिछले वर्ष मोरारी बापू और अन्य कई कथाकारों ने व्यास पीठ से अपने इस्लाम प्रेम वाले वक्तव्यों के लिए माफी माँगी।
चित्रकूट पीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य ने कथावाचकों को संदेश दिया कि प्रवचन के दौरान भारतीय वाड़मय से ही उद्धरण देना चाहिए न कि फिल्मी गाने और उर्दू शायरी का सत्र शुरू करना चाहिए। गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में कहा है- ‘जेहि महँ आदि मध्य अवसाना। प्रभु प्रतिपाद्य राम भगवाना।।‘ इस मुद्दे पर जो बिल्कुल चुप हैं, उनके लिए दिनकर की यह पंक्ति सादर समर्पित है- ‘जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा, उनका भी अपराध।’
(लेखक वरिष्ठ कवि एवं साहित्यिक पत्रिका अनुष्का के संपादक हैं)