आपका अखबार ब्यूरो।
क्या मुख्य मंत्री नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस से हाथ मिला सकते हैं। ऐसे आसार तो दिखते नहीं पर राजनीति में कुछ भी हो सकता है। कब दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त बन जायं कहना कठिन है। इस बारे में न तो नीतीश कुमार ने कोई संकेत दिया है और न ही कांग्रेस ने। यह बात निकल रही है राष्ट्रीय जनता दल के खेमे से। लालू प्रसाद यादव जेल में हैं लेकिन उनकी नजर चुनाव पर है। उन्हें शक है कि त्रिशंकु विधानसभा आई तो नीतीश और कांग्रेस हाथ मिला सकते हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है लेकिन राजनीतिक दलों का तालमेल अभी पटरी पर नहीं आ पाया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में लोकजनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान ने पेंच फंसा रखा है तो यूपीए में कांग्रेस ने। दोनों की मांग ज्यादा सीटों की है। लोकसभा चुनाव में पासवान के कंधे पर रखकर भाजपा पर बंदूक चलाने वाले नीतीश कुमार ने इस बार पासवान से पल्ला झाड़ लिया है। उनके मुताबिक पासवान से भाजपा निपटे।
जब देश का किसान सड़क पर उतरने की तैयारी करने लगे तो समझो संसद में बैठी सरकार सही नहीं है।https://t.co/Xs59bE0sM3
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) September 22, 2020
भाजपा लोजपा को ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं है। उसका 2015 का अनुभव बहुत खऱाब रहा। 2015 में भाजपा ने लोजपा सहित दूसरे छोटे दलों को पचासी सीटें दी थीं। ये सब मिलकर केवल पांच सीट जीत पाए। इतना ही नहीं इन छोटे दलों के नेता अपना वोट भी ट्रांसफर नहीं करा पाए। इससे भाजपा की स्थिति और खराब हो गई। लोकसभा चुनाव में लोजपा को छह टिकट मिले और वह सब पर विजयी रही। इसी आधार पर चिराग पासवान विधानसभा की ज्यादा सीटें मांग रहे हैं। लेकिन लोकसभा की जीत सिर्फ मोदी की जीत थी। इस बात को लोजपा के दूसरे नेता जानते भी हैं और मानते भी हैं।
उधर यूपीए में कांग्रेस राजद पर ज्यादा सीटों के लिए दबाव बना रही है। पर लालू को लग रहा है कि कांग्रेस ज्यादा सीटें जीत गई और त्रिशंकु विधानसभा आई तो नीतीश कुमार और कांग्रेस मिल सकते हैं। कांग्रेस के साथ जाने पर नीतीश कुमार के लिए राष्ट्रीय राजनीति का दरवाजा एक बार फिर खुल जाएगा। कांग्रेस को भी लालू से छुटकारा मिल जाएगा। लालू जानते हैं कि उनका यादव-मुसलिम वोट बैंक मजबूत है। इसलिए वे कांग्रेस के आगे ज्यादा झुकने को तैयार नहीं हैं।
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