भारत के वैज्ञानिक कार्यों के कई अनजान पहलू आए सामने।

भारत के औपनिवेशिक उच्च शिक्षण संस्थानों में से एक कोलकाता के विश्व प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय परिसर में अत्याधुनिक डिजिटल लाइब्रेरी की शुरुआत हुई है। यह शिक्षण प्रतिष्ठान कई मामलों में बेहद खास है। यहां बहुत ही सामान्य प्रबंधन वाली एक छोटी-सी प्रयोगशाला है, जहां बैठकर आचार्य जगदीश चंद्र बोस ने कॉस्मिक वेब डिटेक्टर का आविष्कार किया था।वर्ष 1920 में विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलसचिव (रजिस्ट्रार) रहते हुए उन्होंने यहां पहला पुस्तकालय भी तैयार किया था। इसके तमाम दस्तावेज, जमीनों की दलीलें, चिट्ठियां, कई गोपनीय रिपोर्ट, सरकारी निर्देशों की प्रतियां, समाचार पत्रों को संजोकर अब यहां अत्याधुनिक डिजिटल लाइब्रेरी की शुरुआत की गई है। सोमवार को इसका उद्घाटन हुआ है। माना जा रहा है कि अब इस विश्वविद्यालय के शानदार इतिहास और दस्तावेजों से दुनिया भर के लोग परिचित हो सकेंगे।

विश्वविद्यालय के सोशल साइंस के प्रोफेसर उप्पल चक्रवर्ती, सुकन्या सर्वाधिकारी और प्रेसिडेंसी के पूर्व छात्र तथा शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रोचना मजूमदार ने ही डिजिटल लाइब्रेरी का काम मिलजुल कर पूरा करवाया है। हालांकि इसकी शुरुआत दिवंगत प्रोफेसर स्वप्न चक्रवर्ती ने की थी।

उपल चक्रवर्ती ने बताया कि लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी और शिकागो विश्वविद्यालय के अनुदान से डिजिटल लाइब्रेरी की शुरुआत की गई है। इसके लिए एक डेडीकेटेड वेबसाइट बनी है जिस पर वे सारे तथ्य उपलब्ध कराए गए हैं जो दुनिया को बहुत कुछ नई जानकारी देंगे। सबसे बड़ी बात है कि दुनिया के महानतम वैज्ञानिकों में शामिल भारत के वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के शोध से संबंधित कई महत्वपूर्ण दस्तावेज भी डिजिटल लाइब्रेरी में समाहित किए गए हैं।

डिजिटल लाइब्रेरी में है बेहद खास दस्तावेजों का संग्रह

प्रेसिडेंसी के अंग्रेजी विभाग के स्नातकोत्तर छात्र सौरभ चटर्जी ने बताया कि आजादी के समय जब दो समुदायों के बीच दंगे हुए तो कॉलेज (उस समय प्रेसिडेंसी कॉलेज था) को अक्षुण्य रखने के लिए तत्कालीन दरवान राम इकबाल सिंह ने अपनी कुर्बानी दे दी थी। उस समय के सारे दस्तावेज डिजिटाइज किए गए हैं। उस समय दंगे से छात्रों को बचाने के लिए तत्कालीन प्रोफ़ेसर और वैज्ञानिक प्रशांत चंद्र महालनोविस ने जो लेख लिखे थे वह भी डिजिटाइज किए गए हैं। प्रफुल्ल चंद्र रॉय ने भी जो वैज्ञानिक काम किए थे उसके दस्तावेज डिजिटाइज कर सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध किए गए हैं। इसके अलावा नोबेल विजेता अमर्त्य सेन से लेकर अभिजीत विनायक बनर्जी द्वारा किए गए शोध कार्य और उनके लिखे हुए लेख को भी डिजिटल लाइब्रेरी में संग्रहित किया गया है। इसके अलावा अंग्रेजी हुकूमत के समय डीएल रिचर्डसन, हेनरी रॉसर जेम्स, किशोरी चंद मित्र, प्रशांत चंद्र महालानविस, भूपति मोहन सेन जैसे महान शिक्षाविदों के लेख भी इसमें संग्रहित हैं। इसके अलावा नक्सल आंदोलन के बाद जब्त किए गए प्रेसिडेंसी की प्रतिबंधित पत्रिका की कॉपी भी इसमें शामिल की गई है।

पराधीन मुल्क में देश की वैज्ञानिक सोच को दुनियाभर में लोहा मनवाने के लिए जो महत्वपूर्ण शोध कार्य हुए थे, उसके तमाम दस्तावेज इसमें संग्रहीत किए गए हैं। यह निश्चिततौर पर डिजिटल लाइब्रेरी की दुनिया में एक महत्वपूर्ण कदम है। (एएमएपी)