प्रमोद जोशी।
जम्मू-कश्मीर में हाल में हुई नागरिकों की हत्याओं से कुछ सवाल खड़े होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में आतंकवादियों के ज्यादातर हमले सुरक्षाबलों पर होते थे। इन हमलों के दौरान वे मारे भी जाते थे, क्योंकि सुरक्षाबल उन्हें जवाब देते थे, पर अब वे वृद्धों, स्त्रियों और गरीब कारोबारियों की हत्याएं कर रहे हैं, जो आत्मरक्षा नहीं कर सकते। इसका एक अर्थ है कि आतंकवादी परास्त हो रहे हैं और अब वे अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए सॉफ्ट टार्गेट को निशाना बना रहे हैं, जिसमें जोखिम कम है और दहशत फैलाने की सम्भावनाएं ज्यादा हैं। इसके अलावा यह भी समझ में आता है कि पाकिस्तान से इनके लिए कुछ नए संदेश प्राप्त हो रहे हैं।
पाकिस्तान की मंशा
यह रणनीति क्या है और इसके पीछे उद्देश्य क्या हैं, इसे समझने की जरूरत है। अलबत्ता पाक-परस्त द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने इन हत्याओं की जिम्मेदारी ली है। जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों का मानना है कि टीआरएफ लश्कर-ए-तैयबा का ही एक फ्रंट है जिसे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को स्थानीय कश्मीरियों का मूवमेंट बताकर प्रोजेक्ट करने के लिए खड़ा किया है। ऐसे में पाकिस्तान की मंशा साफ समझी जा सकती है। इस साल सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने दो दर्जन लोगों की हत्याएं की हैं।
पाँच दिन में सात नागरिकों की हत्या
टीआरएफ ने गत 2 अक्तूबर को हुई माजिद अहमद गोजरी और मोहम्मद शफी डार की हत्याओं की जिम्मेदारी भी ली थी। इस तरह पाँच दिन में सात नागरिकों की हत्याएं हुई हैं। बिंदरू की हत्या के बाद जारी बयान में टीआरएफ ने कहा कि बिंदरू दवाइयों के धंधे की आड़ में काम कर रहा था और दूसरी तरफ आरएसएस की सहायता से सीक्रेट सेमिनारों को चलाता था। उसने यह सब बन्द करने से इनकार कर दिया था।
शिक्षकों की हत्या
मंगलवार को आतंकवादियों ने तीन अलग-अलग वारदातों में तीन लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद गुरुवार को श्रीनगर के ईदगाह इलाके में आतंकवादियों ने एक सरकारी विद्यालय के दो शिक्षकों की गोली मार कर हत्या कर दी। इनमें एक महिला विद्यालय की प्रधानाचार्य थी। मृतकों में स्कूल की प्रिंसिपल सुपिन्दर कौर और कश्मीरी पंडित शिक्षक दीपक चंद शामिल हैं।
हिन्दू-सिख समुदायों में भय का माहौल
इन हत्याओं के बाद कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दू और सिख समुदायों के बीच भय का माहौल है। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह ने कहा कि इन हत्याओं के पीछे के लोगों का जल्द ही परदाफाश किया जाएगा। कायरता के यह कृत्य कश्मीर घाटी में सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे को नुकसान पहुंचाने का एक प्रयास है।
माखनलाल बिंदरू
इसके पहले मंगलवार को आतंकियों ने करीब साढ़े सात बजे इकबाल पार्क क्षेत्र में श्रीनगर की प्रसिद्ध फार्मेसी के मालिक माखनलाल बिंदरू की उनके व्यावसायिक परिसर में गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि हमलावरों ने बिंदरू (68) को उस समय नजदीक से गोली मार दी जब वे अपनी फार्मेसी में थे। कश्मीरी पंडित समुदाय से बिंदरू उन कुछ लोगों में शामिल थे जिन्होंने 1990 के दशक में जम्मू कश्मीर में आतंकवाद शुरू होने के बाद पलायन नहीं किया। वे अपनी पत्नी के साथ यहीं रहे और लगातार अपनी फार्मेसी ‘बिंदरू मेडिकेट’ को चलाते रहे। श्रीनगर के निवासियों के बीच वे बहुत लोकप्रिय थे। कहा जा रहा है कि 1992 में प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता एचएन वानछू की हत्या के बाद यह पहला मौका था, जब समूची घाटी से लोग किसी की मौत का मातम मनाने के लिए जुटे।
वीरेंद्र पासवान और मोहम्मद शफी
इसके बाद करीब साढ़े आठ बजे आतंकियों ने लाल बाजार इलाके में गोलगप्पे बेचने वाले वीरेंद्र पासवान की हत्या कर दी। वीरेंद्र पासवान बिहार के भागलपुर के रहने वाले हैं। इसके बाद करीब आठ बजकर 45 मिनट पर आतंकियों ने बांदीपुरा के शाहगुंड इलाके में एक नागरिक मोहम्मद शफी लोन की हत्या कर दी।
टीआरएफ का हाथ
जिन मुसलमानों की हत्याएं की गईं, टीआरएफ ने उन्हें मुखबिर बताया। मोहम्मद शफी के परिवार का कहना है कि हत्या के कारण कुछ और थे। गोली लगने के बाद उनके पिता उन्हें कार से अस्पताल ले जा रहे थे, जहाँ रास्ते में उसने गोली मारने वालों के नाम भी उन्हें बताए थे। वे सब सुमो टैक्सी ड्राइवर हैं। शफी कुछ समय पहले टैक्सी यूनियन का अध्यक्ष चुना गया था। इसका मतलब है कि आतंकवाद की आड़ में अपराधी भी अपना काम कर रहे हैं, पर बिंदरू और सुपिन्दर कौर की हत्याएं साफ-साफ सामाजिक माहौल बिगाड़ने के इरादे से की गई हैं। इसके पीछे की रणनीति को समझने की जरूरत है।
सॉफ्ट टार्गेट
5 अगस्त 2019 को कश्मीर से अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने की घोषणा के बाद अक्तूबर में पश्चिम बंगाल से आए पाँच मुस्लिम मजदूरों की हत्या दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में कर दी गई थी। इसके बाद दिसम्बर 2020 में श्रीनगर के एक आभूषण विक्रेता सतपाल निश्चल की हत्या की। इस घटना के कुछ महीने पहले ही सतपाल को जम्मू-कश्मीर के निवासी होने का प्रमाणपत्र मिला था। वे मूलतः पंजाब के निवासी थे और पिछले चालीस साल से श्रीनगर में दुकान चला रहे थे। इस साल फरवरी में आतंकवादियों ने आकाश मेहरा की हत्या की, जिनके पिता का श्रीनगर में एक लोकप्रिय रेस्त्रां है। उनका परिवार मूलतः जम्मू से है, पर वे श्रीनगर में दशकों से रह रहे थे। इसी तरह 2 जून को दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में बीजेपी के नेता राकेश पंडिता की हत्या की।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख ‘जिज्ञासा’ से)