आपका अखबार ब्यूरो।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में कला का जश्न मनाया गया। आईजीएनजीए के सभागार “समवेत” में रात को लिथुआनिया की सांस्कृतिक मंडली “कुलगृंडा” ने अपने संगीत का जादू बिखेरा। साथ ही, “विविधता का संरक्षणः लिथुआनिया का अनुभव” विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन भी हुआ। इसका आयोजन “जी 20” के आयोजनों की कड़ी में संस्कार भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (आईसीसीएस) और आईजीएनसीए के संयुक्त तत्त्वाधान में हुआ। इस संगीत समारोह की खासियत यह थी कि लिथुआनियाई कलाकारों ने अपनी संस्कृति से जुड़े गीत तो सुनाए ही, “कुलगृंडा” की मुख्य गायिका वेत्रा ने भारत के राष्ट्रगीत “वंदे मातरम्” और “हर हर महादेव शम्भो” भजन सुनाकर श्रोताओं को आनंदित कर दिया।

लिथुआनिया की सांस्कृतिक मंडली “कुलगृंडा” द्वारा प्रस्तुत संगीत कंसर्ट में भारत में लिथुआनियाई दूतावास में मिशन उप-प्रमुख ज़िमांटास मोजुराइटिस, प्रसिद्ध इंडोलॉजिस्ट और आईसीसीएस की अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) शशि बाला, लिथुआनिया के प्रसिद्ध कलाकार, गुरु और दार्शनिक डॉ. इग्नास सदॉस्कस, प्रसिद्ध बांसुरी वादक पं चेतन जोशी और वनवासी कल्याण आश्रम के श्री अतुल जोग उपस्थित थे।

वहीं दिन में पद्मभूषण से सम्मानित मूर्ति शिल्पकार अमरनाथ सहगल जी के जन्मशती पर भी एक संगोष्ठी “द एसेंबली ऑफ अ क्रिएटिव प्रोसेस- अमरनाथ सहगल” का आयोजन हुआ। इसका आयोजन आईजीएनसीए के कला दर्शन विभाग ने अमरनाथ सहगल प्राइवेट कलेक्शन के साथ मिलकर किया। इस सेमिनार में प्रख्यात कला समालोचक श्री प्रयाग शुक्ला और आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी उपस्थित थे। इस अवसर पर पधारे प्रमुख वक्ताओं और अतिथियों में ललित कला अकादमी के सचिव श्री रामकृष्ण वेदाला, इग्नु के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मण प्रसाद, कॉलेज ऑफ आर्ट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुमार जिगेषु, आईजीएनसीए के कलादर्शन प्रभाग की विभागध्यक्ष प्रो. (डॉ.) ऋचा कंबोज और अमर नाथ सहगल प्राइवेट कलेक्शन की रेजिडेंट क्यूरेटर सुश्री मंदिरा शामिल थे।

“विविधता का संरक्षणः लिथुआनिया का अनुभव” पर बोलते हुए आईसीसीएस की अध्यक्ष प्रो. शशिबाला ने उहाहरणों के साथ बताया कि भाषाई व मनोवैज्ञानिक रूप से भारत और लिथुआनिया दोनों में बहुत समानता है। उन्होंने आगे कहा, यदि हम इसकी गहराई में झांकें तो हमें पता चलेगा कि भारत के वेदों में वर्णित प्रकृति पूजा का दर्शन लिथुआनिया में संरक्षित है। भारत में लिथुआनियाई दूतावास में मिशन उप-प्रमुख ज़िमांटास मोजुराइटिस ने कहा कि लिथुआनियाई लोक एक व्यापक अवधारणा है। “कुलगृंडा” के प्रमुख कलाकार, गुरु और दार्शनिक डॉ. इग्नास ने कहा कि लिथुआनियाई संस्कृति जीवित परम्पराओं की संस्कृति है और यह संस्कृति “डायना” (मौखिक परम्परा) के माध्यम से आगे बढ़ी है। उन्होंने यह भी कहा कि लिथुआनियाई संस्कृति ‘दूसरों’ की आवाज़ को सुनने और उससे कुछ आगे समझने के बारे में है। उन्होंने भारत के अपने अनुभव साझा किए और भारतीय आतिथ्य की काफी प्रशंसा की। उन्होंने सभी आगंतुकों का अभिवादन ‘नमस्ते’ कहकर किया।

इस अवसर पर प्रख्यात बांसुरी वादक पं. चेतन जोशी ने भारत में लिथुआनियाई संगीत को लाने के लिए संस्कार भारती के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि जब कोई अकेला गाता है तो वह साधना होती है और जब हम साथ मिलकर गाते हैं, तो वह प्रार्थना होती है। गौरतलब है कि लिथुआनियाई संगीत मंडली “कुलगृंडा” ने भारत के छह शहरों में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए और लिथुआनियाई संगीत से भारतीयों को परिचित कराया।

“द एसेंबली ऑफ अ क्रिएटिव प्रोसेस- अमरनाथ सहगल” संगोष्ठी में मुख्य वक्ता वरिष्ठ कला समीक्षक श्री प्रयाग शुक्ला ने अमरनाथ सहगल के जीवन को ‘कला का ध्यान’ की संज्ञा दी और यह भी बताया कि उनके रेखाचित्र कितने गहरे थे। श्री शुक्ल ने यह भी कहा, “कोई कला बुरी कला नहीं है” और कुछ कलाकारों ने अपने काम में कुछ बड़े पहलुओं को संचित किया है और इसलिए कलाकर्म को इसके संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि अमर नाथ सहगल की रचनाएं प्रेरणादायी हैं और यह कला के मानवतावादी पहलुओं को सामने लाती हैं। उन्होंने कहा कि अमर नाथ सहगल की रचनाएं जनता की निगाह में हैं और यह एक बड़ी बात है। इस अवसर पर श्री रामकृष्ण वेदाला ने कहा कि कलाकारों की स्मृति में यदि व्याख्यानों की शृंखला हो तो कलाकारों का शिल्प लंबे समय तक जीवित रहता है। डॉ. लक्ष्मण प्रसाद ने इस बात पर बल दिया कि सौन्दर्य की अवधारणा व्यक्ति की चेतना पर निर्भर करती है। उन्होंने युवा कलाकारों को कुछ सुझाव दिए, जैसेकि उन्हें बाहर जाना चाहिए, क्योंकि इस अभ्यास से उनकी कला में गहराई आएगी और अवलोकन से रेखाचित्रों के कौशल में वृद्धि होगी। डॉ. कुमार जिगेषु ने कला में ‘देखने’ के विचार और सौन्दर्य की अवधारणा पर बल दिया। उन्होंने आगे कहा कि ‘देखना’ परिप्रेक्ष्य है और कला में केवल सकारात्मकता होती है। डॉ. ऋचा कंबोज ने कला के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया और कहा कि अमर नाथ सहगल बहुमुखी कलाकार थे। मंदिरा रो ने अमर नाथ सहगल के बारे में कुछ कम ज्ञात तथ्यों को सबको सामने रखा। अमर नाथ सहगल और दिल्ली के साथ उनके संबंधों पर केंद्रित एक शॉर्ट फिल्म “द दिल्ली स्टोरी” के प्रदर्शन के साथ साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।