आपका अखबार ब्यूरो।
विचारोत्तेजक संगोष्ठी, ओजपूर्ण आल्हा गायन और सरस लोकगीतों की प्रस्तुति के साथ इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) में आयोजित तीन दिवसीय ‘अयोध्या पर्व’ 13 अप्रैल को सम्पन्न हुआ। यह आयोजन आईजीएनसीए, श्री अयोध्या न्यास और प्रज्ञा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में हुआ। अंतिम दिन का आरम्भ एक साहित्यिक संगोष्ठी से हुआ, जिसका विषय था- ‘कुबेरनाथ राय के निबंधों में श्रीराम’। इस सत्र में सुप्रसिद्ध निबंधकार कुबेरनाथ राय के साहित्य में ‘श्रीराम’ की उपस्थिति पर गहन विमर्श हुआ। वक्ताओं ने श्रीराम के आदर्शों को भारतीय मानस की आधारशिला बताया और कुबेरनाथ राय की दृष्टि को समकालीन संदर्भों में अत्यंत प्रासंगिक बताया। संगोष्ठी में आईजीएनसीए के कला कोश प्रभाग के अध्यक्ष प्रो. सुधीर लाल, डॉ. मनोज कुमार राय, प्रो. देवराज, डॉ. अवनिजेश अवस्थी, श्री राकेश मिश्र और डॉ. रमाकांत राय जैसे हिन्दी विद्वान और साहित्यकार शामिल हुए। सभी वक्ताओं ने कुबेरनाथ राय के गद्य में श्रीराम की उपस्थिति को वैचारिक स्थिरता और सांस्कृतिक आत्मबोध का प्रतीक बताया।

इसके बाद, समापन समारोह में ‘इंटरनेशनल भजन सुखसेवा मिशन’ (आईबीएस मिशन) के संस्थापक स्वामी सर्वानंद सरस्वती, विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय सचिव श्री राजेन्द्र सिंह पंकज, आईजीएनसीए के कला निधि प्रभाग के प्रमुख एवं डीन, प्रशासन प्रो. रमेश चंद्र गौड़, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की रामलला की प्रतिमा का चित्र बनाने वाले कलाकार डॉ. सुनील विश्वकर्मा ने अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय की भी गरिमामय उपस्थिति रही। वक्ताओं ने अयोध्या की सांस्कृतिक चेतना, श्रीराम के सार्वकालिक आदर्श और भारतीयता की जड़ों पर प्रभावशाली विचार प्रस्तुत किए। अंत में, ‘अयोध्या पर्व’ के संयोजक फैजाबाद के पूर्व सांसद श्री लल्लू सिंह ने सभी अतिथियों को रामलला का फ्रेमजड़ित चित्र भेंट में दिया और धन्यवाद ज्ञापन किया। पूरे तीन दिन सभी सत्रों का सुश्री भारती ओझा ने विद्वतापूर्ण संचालन किया।

समापन सत्र में स्वामी सर्वानंद सरस्वती ने कहा कि राम केवल पुस्तकों में लिखा जाने वाला नाम नहीं हैं, राम चलते-फिरते जीवन का आदर्श हैं। राम केवल अयोध्या के वासी नहीं, जन-जन के वासी हैं, सर्वव्यापी हैं। राम केवल उपास्य देवता नहीं हैं, राम सकारात्मक शक्ति हैं। उन्होंने कहा कि अहंकार मनुष्य को नष्ट कर देता है। रावण के अहंकार ने उसका अंत कर दिया। वहीं राम सरलता और सहजता की प्रतिमूर्ति हैं। राम से झुकना सीखें, राम से मर्यादा सीखें। राजेन्द्र सिंह पंकज ने कहा कि भारत राजनैतिक दृष्टि से 1947 में ही स्वाधीन हो गया था, लेकिन सांस्कृतिक रूप से स्वतंत्र नहीं हुआ था। हमसे भगवान राम की जन्मभूमि का प्रमाण मांगा जा रहा था। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं।

डॉ. सुनील विश्वकर्मा ने उस क्षण के अनुभव को उपस्थित लोगों से साझा किया, जब उन्हें रामलला का चित्र बनाने का निमंत्रण दिया गया था। उन्होंने कहा, “मेरी क्षमता नहीं कि मैं रामलला का चित्र बना सकूं। मुझे ऐसा लगा, जैसे कोई मेरा हाथ पकड़कर चित्र बनवा रहा है। मात्र दो घंटे में चित्र बन गया।” उन्होंने कहा कि राम काल्पनिक नहीं हैं, राम सबके हृदय में हैं। प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने आईजीएनसीए में विभिन्न रामलीलाओं के डॉक्यूमेंटेशन की जानकारी दी। उन्होंने सभी प्रकार की रामलीलाओं का डॉक्यूमेंटेशन करके एक ऑनलाइन कोष (रिपॉजिटरी) बनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने इस रिपॉजिटरी में रामलीलाओं के साथ-साथ पांडुलिपियों, पुस्तकों, विभिन्न प्रकार की कला वस्तुओं और प्रदर्शन कलाओं को भी शामिल करने पर बल दिया, जिससे ये सबके लिए उपलब्ध हो सकें।

सत्र के प्रारम्भ में ‘अयोध्या पर्व’ आयोजन समिति के सचिव श्री राकेश सिंह ने स्वागत भाषण दिया। सांस्कृतिक संध्या में फौजदार सिंह एवं उनके दल द्वारा प्रस्तुत आल्हा गायन ने वातावरण को ओज से भर दिया। इसके बाद, लोकगायिका विजया भारती एवं उनके सहयोगी कलाकारों ने मधुर लोकगीतों की प्रस्तुति से श्रोताओं को झूमा दिया। मंच पर गूंजते सुरों ने उपस्थित दर्शकों को श्रीराम की नगरी अयोध्या की अलौकिक अनुभूति करा दी।

तीन दिवसीय इस आयोजन में विविध विषयों पर संगोष्ठियाँ, चित्र-प्रदर्शनियाँ, लोक-नृत्य, भजन, मृदंग और तबला वादन, कथक-भरतनाट्यम जैसी शास्त्रीय प्रस्तुतियाँ हुईं। अयोध्या पर्व न केवल श्रद्धा और परंपरा का उत्सव रहा, बल्कि यह संस्कृति, साहित्य और लोकसंवाद का जीवंत मंच भी बना।

ज्ञात हो कि तीन दिवसीय ‘अयोध्या पर्व’ का शुभारम्भ आईजीएनसीए परिसर में मर्यादा पुरुषोत्तम’ पर आधारित पद्मश्री वासुदेव कामत के चित्रों की प्रदर्शनी, वाल्मीकि रामायण पर आधारित पहाड़ी लघुचित्र प्रदर्शनी और चौरासी कोसी अयोध्या के तीर्थस्थल पर आधारित ‘बड़ी है अयोध्या’ प्रदर्शनी के उद्घाटन के साथ हुआ था। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने भी प्रदर्शनियों का अवलोकन किया और ‘अयोध्या पर्व’ के आयोजन के लिए आईजीएनसीए और अयोध्या न्यास को बधाई दी।

प्रदर्शनी का उद्घाटन अयोध्या के मणिरामदास छावनी के महंत पूज्य कमल नयन दास जी महाराज, गीता मनीषी महामंडलेश्वर पूज्य ज्ञानानंद जी महाराज, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा, आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय, आईजीएनसीए के ट्रस्टी श्री वासुदेव कामत ने किया। प्रदर्शनी के उद्घाटन के बाद, भगवान राम और अयोध्या की महिमा पर इन सभी ने अपने विचार साझा किए। उद्घाटन सत्र के दौरान गणमान्य अतिथियों ने तीन पुस्तकों का विमोचन भी किया।

उद्घाटन सत्र के बाद, सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की शृंखला में राजकुमार झा और उनके साथी कलाकार विनोद व्यास तथा श्री पंकज ने मृदंग वादन से समां बांध दिया। इसके बाद प्रज्ञा पाठक, विनोद व्यास, साकेत शरण मिश्र एवं उनके साथी कलाकारों ने अपने भजन गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

‘अयोध्या पर्व’ के दूसरे दिन ‘भारतीय समाज में मंदिर प्रबंधन’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में अपने मत व्यक्त करते हुए बड़ा भक्तमाल अयोध्या के महंत अवधेश दास जी ने कहा कि मंदिरों की देखरेख शास्त्र सम्मत ढंग से होनी चाहिए, सरकार सम्मत नहीं। इसी सत्र में इतिहास और संस्कृति के प्रसिद्ध विद्वान ‘पद्मश्री’ भरत गुप्त ने इस मत को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जिन संप्रदायों से मंदिर जुड़े हैं, उन्हीं संप्रदायों के लोग ही उनका प्रबंधन समुचित ढंग से कर सकते हैं।

महंत अवधेश दास जी ने कहा कि धर्म से राजनीति का निर्धारण हो सकता है, लेकिन राजनीति धर्म का मार्ग तय नहीं कर सकती। भरत गुप्त ने कहा कि यह संयोग है कि रामजन्म भूमि के लिए एक गैर-सरकारी प्रबंध समिति गठित की गयी है। इसके विपरीत प्रायः पूरे देश में प्रसिद्ध मंदिरों पर सरकार का ही नियंत्रण है। इस सत्र को भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजीव वर्मा, दिल्ली सरकार में उप महालेखा परीक्षक आशीष सिंह और इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के डीन (प्रशासन) डॉ. रमेश चंद्र गौड़ ने भी संबोधित किया। दूसरे दिन, शाम का सत्र ‘भारतीय संस्कृति के नवाचार में तुलसीदास जी का योगदान’ विषय पर केंद्रित था। इसे हनुमन्निवास अयोध्या के श्रीमहंत मिथिलेश नंदिनी शरण जी, दिल्ली विश्वविद्य़ाल के प्रो. चंदन चौबे, कला एवं रंगमंच समीक्षक ज्योतिष जोशी, साहित्यकार उमेश प्रसाद सिंह और इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के डीन (अकादमिक) प्रो. प्रतापानंद झा ने संबोधित किया। दोनों सत्रों का संचालन भारती ओझा ने किया। इस सत्र के बाद सुंदर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए।

गौरतलब है कि भारतीय संस्कृति, कला और आस्था के केन्द्र अयोध्या की गौरवगाथा को समर्पित ‘अयोध्या पर्व में’ कई संवाद सत्रों का आयोजन हुआ और मधुर सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुईं। इस तीन दिवसीय सांस्कृतिक महोत्सव श्रद्धा, शास्त्रीयता और संवाद का संगम हुआ, जिसमें देशभर के साधु-संतों, सांस्कृतिक मनीषियों, राजनेताओं, विद्वानों और कलाकारों ने हिस्सा लिया।