वाशिंगटन से समीर चन्द्रा ।
स्वर्ग के सुख की कामना किसे नहीं होती और इसी सुख के सन्दर्भ में वाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग का वर्णन है, जिसमें भगवान राम कहते हैं कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं। शायद इसी सुख के बारे में लगभग डेढ़ दशक पहले अमेरिका में रह रही एक वरिष्ठ महिला (जो मूलतः लखनऊ के नरही क्षेत्र की हैं और दुनिया के अनेक देशों का भ्रमण कर चुकी हैं), ने एक समारोह में अपने घुमक्कड़ी के अनुभवों के बारे में पूछने पर कहा- ‘कितनी भी अच्छी और सुन्दर जगहें घूम लो, वहां पर रह लो पर जो सुख और आराम अपने घर में वापस आकर मिलता है, उसकी बात ही कुछ और होती है।’
सुविधाएं बढ़ीं पर आबादी उससे ज्यादा…
अमेरिका में रहते लगभग दो दशक होने को आ रहे हैं और हर वर्ष भारत में अपने घर लखनऊ जाना होता है। भारत पहुँचकर जो प्रसन्नता मिलती है, वह निःसंदेह लखनऊ पहुँचकर और भी बढ़ जाती है। इन दो दशकों में लखनऊ में हो रहे क्रमिक परिवर्तनों को निकट से देखने का अवसर मिलता रहा है। सुविधाएं बढ़ी हैं परन्तु आबादी भी उससे ज्यादा अनुपात में बढ़ी है, जिसका आभास बढ़ती भीड़भाड़ और यातायात में लगने वाला समय करा देता है। ओला और उबर के आने से आना-जाना सुगम हुआ है और अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट कार्डों की बढ़ती स्वीकार्यता ने खरीदारी भी आसान बनायी है। वैसे कुछ जगहों, जैसे बाबा रामदेव के प्रतिष्ठानों में अभी भी सिर्फ स्वदेशी कार्ड ही स्वीकार किये जाते हैं।
लखनऊ मेट्रो: चाक-चौबंद व्यवस्था
इस बार लखनऊ प्रवास के दौरान मेट्रो से यात्रा का अवसर मिला। वाशिंगटन डीसी की मेट्रो और लन्दन की ट्यूब से यात्रा की तुलना में लखनऊ मेट्रो का अनुभव बीस था। मेट्रो संचालन, चाक-चौबंद व्यवस्था और चमकते साफ़ स्टेशन इसके विश्वस्तरीय होने का प्रमाण तो देते हैं और साथ ही साथ गर्वान्वित भी कराते हैं।
अब पहले जितनी नहीं लगती अमेरिका से लखनऊ की दूरी
लखनऊ से अमेरिका वापस आते समय खरीदारी के साथ साथ नई स्मृतियां भी साथ आती हैं जो विदेश में लखनऊ से जुड़ाव को ताज़ा रखती हैं। प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर 2018 से एयर इंडिया ने दिल्ली और वाशिंगटन डीसी के बीच से सीधी अबाध उड़ान (नॉन -स्टॉप) शुरू की है। निःसंदेह इससे वाशिंगटन डीसी और इससे जुड़े हुए वर्जिनिया, मेरिलैंड में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों को (जो भारी संख्या में हैं) को बहुत सुविधा हो गई है। यहां से बहुतायत में लोग दिल्ली जाते हैं परन्तु इसके राजस्व का अधिकतर हिस्सा मध्य पूर्व, यूरोप और अमेरिका की एयरलाइंस ले जाती हैं। जिसका श्रेय उनके अतिपेशेवर रवैये और आक्रामक मार्केटिंग को दिया जा सकता है। आवश्यक पेशेवर रवैये की कमी, पुराने हवाईजहाज और कमतर सुविधाओं के चलते एयर इंडिया इस अति लाभदायक रूट का अपेक्षित लाभ नहीं उठा पा रही है। वैसे एयर इंडिया की इस सीधी फ्लाइट के चलते और दिल्ली-लखनऊ के अच्छे संपर्क (ट्रेन, फ्लाइट) की वजह से अमेरिका से लखनऊ की दूरी अब उतनी नहीं लगती, जितनी पहले लगती थी।
वाशिंगटन में यूपी और लखनऊ का जलवा
अमेरिका में तेलुगु भाषी दक्षिण भारतीय समुदाय अच्छी संख्या में हैं। उत्तर प्रदेश के भी काफी लोग हैं। कभी-कभी उनमें लखनऊ के भी निकल आते हैं। सोशल मीडिया और भारतीय समुदाय की बढ़ती सांस्कृतिक गतिविधियों का एक प्रभाव अमेरिका में अन्य प्रदेशों की भांति उत्तर प्रदेश के लोगों के भी साथ-साथ आने के रूप में हुआ है। वाशिंगटन डीसी में एक उत्तर प्रदेश समूह है जो हर सांस्कृतिक पर्व को साथ-साथ मनाता है। इस समूह में भी बहुमत लखनऊ के लोगों का है। अभी हाल ही में एक समारोह मनाया गया था, जिसमें अधिकतर सांस्कृतिक कार्यक्रम लखनऊ की प्रवासी प्रतिभाओं द्वारा प्रस्तुत किये गए थे।
यूपी के विकास में काम आ सकते हैं प्रवासी
उत्तर प्रदेश के लोग विदेश में काफी अच्छी जगहों पर प्रतिष्ठित हैं। उत्तर प्रदेश के प्रवासी भारतीयों की विशेषज्ञता और कौशल का उपयोग प्रदेश के विकास के लिए किया जा सकता है। इसकी शुरुआत एक विचार समूह बनाकर की जा सकती है, जो प्रदेश के विकास से सम्बंधित किसी भी प्रश्न या समस्या पर अपने अनुभव के आधार पर विचार रख सकता है। उदाहरण के तौर पर, नागरिक प्रशासन में किसी समस्या का समाधान विदेशों में कैसे होता है, इसके बारे में विचार जाने जा सकते हैं, जो उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में स्थानीय समाधान खोजने में मदद कर सकते हैं। विदेशी विशेषज्ञों को मोटी रकम देकर बुलाने का एक विकल्प विदेश में रह रहे अपने प्रदेश के प्रवासी विशेषज्ञों को प्रदेश के विकास में शामिल करना हो सकता है।
(लखनऊ के मूल निवासी लेखक सस्टेनेबल डेवलपमेंट में शोधकर्ता हैं। वह अमेरिका के वाशिंगटन डीसी क्षेत्र में लगभग दो दशकों से रह रहे हैं। सौजन्य : लखनऊ फोकस)