प्रदीप सिंह।
यह खबर तमिलनाडु के चेन्नई से है। 26 अप्रैल को एक याचिका पर सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग पर बेहद तल्ख टिप्पणियां कीं।
चुनाव आयोग सबसे गैर जिम्मेदार संस्था
हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग सबसे गैर जिम्मेदार संस्था है।
दूसरी बात कही- कि कोरोना संक्रमण की आज जो स्थिति है उसके लिए यह और केवल यही संस्था ( चुनाव आयोग) जिम्मेदार है।
तीसरी बात कही- कि इस संस्था पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए।
चौथी बात कही- कि जब कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा था तो आप कहां थे, किस ग्रह पर थे।
पांचवी बात कही- कि लगातार अदालतें और हाईकोर्ट कह रहे थे कि कोविड प्रोटोकॉल का पालन करो लेकिन आपको सुनाई नहीं दे रहा था।
और छठी बात कही- कि अब यह अदालत और यह राज्य (तमिलनाडु) आपका पागलपन बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। अगर मतगणना के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं हुआ और उसका ब्लूप्रिंट अदालत को 2 मई से पहले नहीं मिला तो हम मतगणना रोक सकते हैं।
सनसनीखेज टिप्पणी
यह अपने आप में एक सनसनीखेज टिप्पणी है। याद नहीं पड़ता कि पहले किसी संवैधानिक संस्था ने किसी दूसरी संवैधानिक संस्था के बारे में इस प्रकार की टिप्पणी की हो।
यह सही है कि हाईकोर्ट की संवेदनशीलता कोरोना के बढ़ते मामलों और उससे संक्रमित लोगों की परेशानी के कारण थी। हाई कोर्ट का मानना है कि चुनाव के कारण यह संक्रमण और बढ़ा है। इस बात से कोई सहमत हो सकता है तो कोई असहमत हो सकता है।
सवाल ये भी हैं
अगर हाईकोर्ट का यह मानना है तो कई और सवाल भी उठते हैं। सवाल यह है कि जब तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हो रहा था, पचास हजार, साठ हजार और एक लाख लोगों की रैलियां हो रही थीं, और हाईकोर्ट के ही मुताबिक अगर चुनाव आयोग कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहा था… तो हाईकोर्ट ने क्या किया? उनकी क्या जिम्मेदारी थी, उस समय क्यों नहीं बोले। उस समय न्यायाधीश लोग किस ग्रह पर थे? क्या इस बात का इंतजार कर रहे थे कि जब कोरोना की दूसरी लहर अत्यंत विस्फोटक बन जाएगी तब हम एक संस्था को चुनेंगे और उसे लटका देंगे।
यानी केवल चुनाव आयोग ही कोरोना के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार है- बाकी कोई संस्था जिम्मेदार नहीं है! क्या राजनीतिक दलों की कोई जिम्मेदारी नहीं है, सरकारों की कोई जिम्मेदारी नहीं है, जो आम लोग रैलियों में बिना मास्क व बिना सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किए जा रहे थे उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है? ये सवाल भी हाईकोर्ट को पूछने चाहिए थे।
आयोग का बयान
चुनाव आयोग ने एक बयान में कहा है कि उसने बिहार चुनाव के लिए कोविड प्रोटोकॉल का जो टेम्पलेट बनाया था उसी का पालन किया और यह सुनिश्चित किया कि जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां उसी कोविड प्रोटोकॉल का पालन हो। फिर जैसे-जैसे कोरोना संक्रमण की स्थिति बदलती गई वैसे वैसे चुनाव आयोग अपने फैसले भी बदलता गया।
चुनाव आयोग ने क्या किया, जो किया वो सही किया या गलत किया, जितना अपेक्षित था उतना किया या नहीं किया- यह एक अलग मसला है। इस पर अलग से चर्चा और बहस हो सकती है।
क्या यह उंगली सुप्रीम कोर्ट की तरफ भी है
हाईकोर्ट की चुनाव आयोग पर टिप्पणी कई बातों, सवालों और शंकाओं को सतह पर लाती है। चुनाव आयोग अगर इतना बड़ा अपराध कर रहा था तो देश के बाकी हाईकोर्ट (खासतौर से उन पांच राज्यों के जहां चुनाव चल रहा था) कहां थे?
सुप्रीम कोर्ट कहां था? क्या मद्रास हाईकोर्ट का इशारा सुप्रीम कोर्ट की तरफ भी है! सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में कोई दखल नहीं दिया, कोई चेतावनी नहीं दी।
मद्रास हाईकोर्ट अगर चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को ही जिम्मेदार ठहराता है तो उत्तर प्रदेश के बारे में आप क्या कहेंगे? उत्तर प्रदेश सरकार पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट गई और फिर सुप्रीम कोर्ट गई। पहले वह उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के डीलिमिटेशन को लेकर गई थी। बाद में कोरोना की स्थिति को लेकर गई कि पंचायत चुनाव स्थगित कर दीजिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश था कि उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हर हालत में होंगे। आज 29 अप्रैल को भी वहां मतदान हो रहा है। जब उत्तर प्रदेश में कोविड की स्थिति महाराष्ट्र के बाद सबसे खराब है तब भी वहां चुनाव चल रहे हैं। इसके लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार है- सरकार जिम्मेदार है- या राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं?
अविवेकपूर्ण टिप्पणी के निहितार्थ
हाईकोर्ट की इस प्रकार की अविवेकपूर्ण टिप्पणी कि चुनाव कराने तथा संक्रमण के इस स्थिति के लिए केवल एक संस्था जिम्मेदार है और उसके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलना चाहिए… यह सोचने को मजबूर करती है कि संवैधानिक संस्थाओं के बीच आपसी समझ और तालमेल को क्या हो गया है? संवैधानिक संस्थाओं के इस प्रकार एक दूसरे पर वार प्रतिवार का आम लोगों पर क्या असर होगा? इसका असर राजनीतिक दलों और सरकारों पर क्या होगा?
आपने चुनाव आयोग को लटका दिया तो इसका मतलब यही हुआ कि सारी सरकारें, सारे राजनीतिक दल, सारे नेता और उन रैलियों में शामिल हुए लोग- दोषमुक्त हो गए।
‘तुम’ इतने दिन कहां रहे
मान भी लें कि संक्रमण की मौजूदा स्थिति के लिए केवल चुनाव आयोग जिम्मेदार है क्योंकि उसने कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं करवाया। लेकिन जब चुनाव आयोग कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं करवा रहा था और आप हुजूर लोग देख रहे थे- तो आप क्या कर रहे थे? तमिलनाडु में छह अप्रैल को मतदान हो चुका, आप अभी नींद से क्यों जागे। ये वे सवाल हैं जो पूछे जाने चाहिए। ये सवाल इसलिए नहीं पूछे जाने चाहिए कि मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग पर टिप्पणी की है बल्कि इसलिए पूछे जाने चाहिए कि आखिर इस तरह की टिप्पणियों से हासिल क्या होगा? हाईकोर्ट की इस टिप्पणी का उद्देश्य क्या है?
क्या था मामला
मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायाधीश सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने करूर विधानसभा क्षेत्र से एक उम्मीदवार की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणियां की हैं। याचिकाकर्ता का कहना था कि करूर विधानसभा क्षेत्र में 77 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई है। ऐसे में उनके एजेंटों को मतगणना कक्ष में जगह देना काफी मुश्किल होगा। कोरोना प्रोटोकॉल नियमों के पालन पर इसका असर पड़ सकता है। याचिका में कहा गया कि न्यायालय अधिकारियों को मतगणना के दौरान कोविड प्रोटोकॉल के नियमों का पालन करने और निष्पक्ष मतगणना सुनिश्चित करने का निर्देश दे।
किस दिशा में जा रहे
ऐसे में न्यायालय चुनाव आयोग के प्रतिनिधि को बुलाकर निर्देश दे सकता था कि मतगणना के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल के नियमों का पालन होना चाहिए और अगर नियमों का पालन नहीं हुआ तो हम मतगणना रोक देंगे। यहां तक तो बात ठीक है। लेकिन, चुनाव आयोग पर हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए… इस प्रकार की टिप्पणी भारतीय न्याय व्यवस्था और भारतीय संविधान में अलग-अलग संस्थाओं के लिए अधिकारों के बंटवारे की दृष्टि से चिंता की बात है। हमें सोचना होगा कि आखिर हम किस दिशा में जा रहे हैं। अगर संवैधानिक संस्थाओं के बीच इसी प्रकार का टकराव चलता रहा तो सोचिए कि आगे कैसे कैसे मंजर देखने पड़ सकते हैं।