उल्का पिंड के टकराने से बनी इस झील का पानी पीता था अकबर।
पुराणों, वेदों और दंत कथाओं में भी इस झील है उल्लेख।
शोध करने वाले अब भी आते हैं यहां
झील के वातावरण का शोध करने वाले वैज्ञानिक बताते रहे हैं कि पृथ्वी से प्रतिवर्ष 30 हजार से अधिक उल्का पिंड टकराती रहती है और इसी प्रकार के किसी वजनदार उल्का के यहां विशाल चट्टानों पर टकराने से धमाकेदार गड्ढा बना है। हालांकि कई अन्य जानकार अब भी अलग-अलग राय रखते हैं।
पौराणिक कथाओं में भी है झील का जिक्र
इस लोनार झील के बारे में ऋग्वेद और स्कंद पुराण में भी मिल चर्चा की गई है। पद्म पुराण और आईन-ए-अकबरी में भी इसका जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि अकबर इस झील का पानी सूप में डालकर पिया करता था। वैसे इस झील को मान्यता तब मिली, जब 1823 में ब्रिटिश अधिकारी जेई अलेक्जेंडर इस जगह पर आए थे।
रोमांचक स्थल है बुलढाणा की यह झील
इस अनूठी झील एवं इसके आसपास के हरे-भरे मनोरम वातावरण वाले जंगल में तोते, मोर, दर्जिन चिड़िया, लार्क, सुनहरे आरिओल, उल्लू, हुपोस, बेयबीवर्स, ब्लूजेज, रेड वाटल्ड लेप्विंग्स,शेलडक, काले पंखों वाले स्टील्ट्स जैसे जीवों के अलावा लंगूर, चमगादड़, नेवले, मार्किंग हिरण चिंकारा आदि बहुतायत में है। यह वातावरण सैलानियों को भारी संख्या में आमंत्रित करता है। यह झील जैव विविधता की अनूठी मिसाल है। प्रवासी पक्षियों की बाहरों महीने यहां प्रवास रहता है। पास ही राम गया मंदिर, कमलजा देवी मंदिर, जलमग्न शंकर गणेश मंदिर के अलावा इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण मंदिर लोनार भी यही स्थित है। इसे सूडान मंदिर से भी पहचाना जाता है। मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, मान्यता के अनुसार राक्षस लोनासूर का यही विनाश किया गया। (एएमएपी)