भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के आरोपों की जांच कर रही संसदीय आचार समिति (एथिक्स कमेटी) को भेजे लिखित जवाब में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा है कि वह 4 नवंबर तक अपने निर्वाचन क्षेत्र में काम करने में व्यस्त हैं, इसलिए उनका आग्रह है कि समिति उनके पेश होने की तारीख में बदलाव कर इसे 5 नवंबर के बाद का रखे। रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने यह सवाल भी किया है कि समिति ने उन्हें उपस्थित होने का मौका दिए जाने से पहले शिकायतकर्ताओं को क्यों सुना। इससे पहले कमेटी ने मोइत्रा को 31 अक्टूबर को पेश होने के लिए कहा था- क्योंकि वह उनके खिलाफ आरोप लगाने वाले दो लोगों- सांसद दुबे और वकील जय देहाद्राई को पहले ही बुलाकर उनकी बात सुन चुकी थी।

मोइत्रा अपने पत्र में कहा है, ‘समिति, प्राकृतिक न्याय के तरीके के विरुद्ध जाते हुए, मुझे यानी कथित आरोपी को सुनवाई का मौका देने से पहले 26/10/2023 को शिकायतकर्ताओं श्री दुबे और श्री देहाद्राई को बुलाकर उनका पक्ष सुन चुकी है … मैं आपके द्वारा दी जाने वाली अगली तारीख पर मेरे खिलाफ लगाए गए निंदनीय आरोपों के खिलाफ खुद मौजूद रहकर अपना बचाव पेश करना चाहती हूं.’

अतिरिक्त समय दिए जाने का आग्रह करते हुए महुआ ने भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी का उदाहरण दिया है, जिन्होंने संसद में बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली के खिलाफ सांप्रदायिक अपशब्दों का इस्तेमाल किया था. बिधूड़ी को इस मामले के संबंध में हुई शिकायतों को लेकर संसद की विशेषाधिकार समिति के सामने पेश होना था, हालांकि उन्होंने अनुपस्थित रहने की अनुमति चाहते हुए समिति को बताया था कि वह निर्धारित तिथि पर पेश नहीं हो पाएंगे क्योंकि उनकी पहले से राजस्थान में प्रतिबद्धताएं थीं, जहां उन्हें टोंक जिले में भाजपा का चुनाव प्रभारी बनाया गया है।

इसके अलावा मोइत्रा ने बिजनेसमैन दर्शन हीरानंदानी का भी जिक्र किया है, जिन्होंने इस मामले पर विवादित हलफनामा दायर किया है।

हीरानंदानी ने टाइम्स नाउ से कहा है कि वह कमेटी के सामने पेश होने के इच्छुक हैं. मोइत्रा ने आरोप लगाया है कि हीरानंदानी, जिन पर दुबे और देहाद्राई ने अडानी समूह के बारे में सवाल पूछने के लिए टीएमसी सांसद को रिश्वत देने का आरोप लगाया है, ने दबाव में यह हलफनामा दायर किया है। मोइत्रा का कहना है कि परिस्थितियों को देखते हुए उचित यह होगा है कि उन्हें हीरानंदानी से जिरह करने का मौका दिया जाए और कथित तौर पर उनके द्वारा दी गई रिश्वत की भी पूरी सूची भी दी जाए।

महुआ ने लिखा है, ‘सार्वजनिक डोमेन में उनके हलफनामे का विस्तृत विवरण नहीं है और उन्होंने कथित तौर पर मुझे जो कुछ दिया है उसकी कोई असल सूची भी नहीं दी गई है. आरोपों की गंभीरता को देखते हुए और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है कि मुझे श्री हीरानंदानी से जिरह करने के अपने अधिकार के इस्तेमाल की इजाज़त दी जाए. यह भी जरूरी है कि वे समिति के सामने पेश हों और उन सब कथित तोहफों और एहसानों की विस्तृत सत्यापित सूची दें, जो उन्होंने कथित तौर पर मुझे दिए हैं।

उल्लेखनीय है कि द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया है कि संसद की एथिक्स कमेटी में शामिल विपक्ष और सत्तारूढ़ पार्टी के सांसदों के बीच इस बात पर मतभेद हुआ था कि मोइत्रा को उनके सामने पेश होने के लिए कब बुलाया जाए. आख़िरकार, संख्या बल के आधार पर भाजपा की बात मानी गई. कई सांसदों का कहना था कि मोइत्रा को शिकायतकर्ताओं से पहले बुलाया जाना चाहिए था. उन्होंने शिकायतकर्ताओं को पहले समय दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए सामान्य प्रक्रिया का हवाला दिया था।

‘पुख्ता सबूत मिलने पर शिकायत की’

सूत्र ने बताया उन्होंने (दुबे) शिकायत (मोइत्रा के खिलाफ) पेश करने से पहले कई स्तरों पर जांच की थी. सूत्र बताते हैं कि निशिकांत दुबे ने पैनल को बताया कि जब हमारे पास सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहाद्राई की शिकायत आई तो उन्होंने भी आरोपों को पहले पूरी तरह से जांच की थी. पुख्ता सबूत मिलने के बाद ही स्पीकर के सामने मामले को रखा था।

‘गृह और आईटी मंत्रालय की मदद ले सकती है जांच कमेटी’

वहीं, एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष विनोद कुमार सोनकर ने कहा, कमेटी आरोपों की जांच में गृह मंत्रालय और आईटी मंत्रालय से भी मदद मांगेगी. सूत्रों ने बताया कि पैनल गृह मंत्रालय से मोइत्रा की विदेश यात्राओं के बारे में जानकारी मांगेगा और उनकी संसदीय आईडी में लॉग-इन की लोकेशन को क्रॉस चेक करेगा. जांच के बाद ही एथिक्स कमेटी अगले महीने सदन में अपनी सिफारिशें भेजेगा।

‘पहले सुनवाई को लेकर वोटिंग के जरिए फैसला’

बैठक की शुरुआत चेयरपर्सन विनोद कुमार सोनकर को छोड़कर उपस्थित 10 सदस्यों के बीच तीखे मतभेदों के साथ हुई. सबसे पहले सवाल उठा कि कमेटी को पहले किसकी बात सुननी चाहिए – शिकायतकर्ता या आरोपी? मामले को सुलझाने के लिए वोटिंग हुई. कमेटी में शामिल पैनल के अलग-अलग मत थे. पैनल में पांच बीजेपी और पांच विपक्ष के सदस्य मौजूद थे. मतदान बराबरी पर समाप्त हुआ. अंत में चेयरपर्सन ने दुबे को पहले सुनने के पक्ष में अपना निर्णायक वोट दिया. बैठक में समिति के 15 सदस्यों में से 11 ने हिस्सा लिया।

’31 अक्टूबर को एथिक्स कमेटी के सामने पेश होंगी महुआ?’

विपक्षी सदस्यों ने बसपा सांसद दानिश अली और बीजेपी के रमेश बिधूड़ी से जुड़े हालिया मामले का हवाला दिया. विपक्ष का कहना था कि एक अन्य संसदीय पैनल ने संसद में अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोपी बिधूड़ी को पहले तलब किया था, जबकि एथिक्स कमेटी शिकायतकर्ता दुबे का पहले बयान दर्ज कर रही है. हालांकि, कमेटी ने आरोपों के संबंध में महुआ को 31 अक्टूबर को पेश होने के लिए कहा है. बैठक के बाद बीजेपी सांसद सोनकर ने कहा, महुआ मोइत्रा को कमेटी के सामने पेश होने के लिए कहा है।

‘दुबे बोले- यह संसद की गरिमा से जुड़ा मामला’

दुबे और वकील जय अनंत देहाद्राई ने पैनल के सामने सिलसिलेवार महुआ के खिलाफ मौखिक साक्ष्य दिए. सूत्रों ने बताया कि दुबे ने महुआ को संसद से अयोग्य ठहराने की वकालत की और कहा, यह मामला संसद की गरिमा से जुड़ा है. राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है. उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह खुला मामला है. यहां तक कि कारोबारी दर्शन हीरानंदानी ने भी कथित तौर पर रिश्वत दिए जाने के आरोप को स्वीकार कर लिया है।

‘विपक्ष ने महुआ पर नरमी बरतने की वकालत की’

सूत्रों ने कहा, पैनल में शामिल बसपा के दानिश अली और जदयू के गिरिधारी यादव समेत विपक्षी दलों के कुछ सदस्यों ने इस मामले में नरमी बरतने जाने की अपील की. विपक्षी सदस्यों का कहना था कि वो (महुआ) पहली बार सांसद बनी हैं. इस पर दुबे ने ऐतराज जताया और जोर देकर कहा, इस मामले में एक नजीर के तौर पर कार्रवाई होनी चाहिए. ताकि यह अन्य सांसदों के लिए एक सबक बने।

‘दुबे ने 2005 की कार्रवाई का दिया हवाला’

दुबे ने 2005 में 11 सांसदों के निष्कासन का हवाला दिया. तब एक स्टिंग ऑपरेशन में ये सांसद पार्लियामेंट में सवाल पूछने के नाम पर रिश्वत लेते पकड़े गए थे. बैठक में कुछ देर तक गहमा-गहमी भी देखने को मिली. कांग्रेस सांसद एन उत्तम कुमार रेड्डी ने निशिकांत दुबे की कथित फर्जी डिग्री का मुद्दा उठाया. दरअसल, इस मामले को अक्सर मोइत्रा द्वारा उठाया जाता है. हालांकि, दुबे ने इसका जोरदार तरीके से खंडन किया और कहा, इस मामले को चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक निकायों ने भी देखा है।

‘फर्जी डिग्री के मुद्दे पर बिफर रह गए दुबे’

दुबे का कहना था कि फर्जी डिग्री मामले में एक एफआईआर को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा था. चुनाव आयोग भी उनके तर्क से सहमत था. उन्होंने दावा किया, ऐसा लगता है कि कुछ लोग सोचते हैं कि वे शीर्ष अदालत से ऊपर हैं. ये लोग भ्रष्टाचार में शामिल हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे हैं।

‘दिवाली से पहले होगी महुआ की पेशी?’

विपक्षी सांसदों ने जय अनंत देहाद्राई और दुबे से पूछा, क्या वे एक-दूसरे को पहले से जानते हैं. इस पर दोनों ने इंकार किया. कुछ सांसदों ने अगली बैठक दिवाली के बाद करने की मांग रखी. लेकिन, इसकी तारीख पहले 31 अक्टूबर तय किए जाने पर सहमति बनी।

‘महुआ ने पेशी के लिए मांगा 4 दिन का समय’

वहीं, महुआ मोइत्रा ने पेशी के लिए 4 दिन का समय मांगा है. महुआ ने कहा, मैं अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत निर्वाचन क्षेत्र के कार्यक्रमों में रहूंगी. वहां दुर्गा पूजा समेत अन्य बड़े प्रोग्राम में 4 नवंबर तक हिस्सा लेना है. ऐसे में 31 दिसंबर को दिल्ली आना संभव नहीं है. उसके तुरंत बाद किसी भी दिन कमेटी के सामने पेश होना चाहती हूं और अपना जवाब दाखिल करना चाहती हूं. महुआ ने नई तारीख निर्धारित करने का आग्रह किया है।

‘दुबे ने बताई हलफनामे की एविडेंस वैल्यू’

सूत्रों ने बताया कि बैठक में कुछ सदस्यों ने मोइत्रा के खिलाफ वकील देहाद्राई के कुत्ते को चुराने के आरोप में पुलिस शिकायत का भी जिक्र किया. लेकिन देहाद्राई ने कहा, इसका उनके रिश्वत के आरोपों से कोई लेना-देना नहीं है. वहीं, बीजेपी सदस्यों ने कुत्ते के मुद्दे को उठाने पर आपत्ति जताई. बीजेपी सांसद दुबे ने कमेटी के समक्ष दावा किया कि हलफनामे का एविडेंस वैल्यू सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किए गए बयान के समान है. एथिक्स कमेटी के समक्ष सबसे पहले देहाद्राई ने बयान दर्ज कराए, उसके बाद दुबे पहुंचे. जब दुबे से पूछा गया कि मोइत्रा ने अपने खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया है तो उन्होंने कहा, दस्तावेज झूठ नहीं बोलते हैं।

‘विदेश मंत्रालय से भी जवाब मांग सकती जांच कमेटी’

माना जा रहा है कि एथिक्स कमेटी प्रोटोकॉल के तहत विदेश मंत्रालय से भी जवाब मांग सकती है. मोइत्रा को रिश्वत देने के आरोपी हीरानंदानी ने दुबई में भारतीय वाणिज्य दूतावास के सामने आरोपों को स्वीकार करते हुए एक हलफनामा दायर किया है. इससे पहले 15 अक्टूबर को दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक पत्र लिखा था. इसमें दुबे ने कहा, मोइत्रा के करीबी वकील देहाद्राई ने अडानी ग्रुप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के लिए उनके (महुआ) और कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के बीच ‘रिश्वत के लेन-देन के मजबूत सबूत’ शेयर किए हैं. बिरला ने इस मामले को एथिक्स कमेटी के पास भेज दिया था।

‘महुआ ने आरोपों को किया सिरे से खारिज’

हालांकि, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था और अडानी ग्रुप पर साजिश करने का आरोप लगाया था. महुआ का कहना था कि वो अडानी ग्रुप के खिलाफ सदन में लगातार सवाल उठा रही हैं, इसलिए मुझे निशाना बनाकर के लिए गलत आरोप लगाए जा रहे हैं।

निशिकांत दुबे ने स्पीकर को लिखे पत्र में क्या आरोप लगाए?

– निशिकांत दुबे ने कहा था कि मोइत्रा मोइत्रा ने संसद में जो 61 सवाल पूछे थे, उनमें से 50 अडानी ग्रुप पर फोकस थे. महुआ ने कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के व्यापारिक हितों को ध्यान में रखकर संसदीय सवाल पूछकर एक आपराधिक साजिश रची है. यह पूरा प्रकरण 12 दिसंबर 2005 के ‘कैश फॉर क्वेरी’ की याद दिलाता है।
– दुबे ने कहा, सांसद जब भारत में थी तो उनकी लोकसभा का लॉगिन दुबई से हुआ था. उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘कुछ पैसे के लिए एक सांसद ने देश की सुरक्षा को गिरवी रखा. दुबई से संसद के आईडी खोले गए. उस वक्त सांसद कथित भारत में ही थे. इस NIC पर पूरी भारत सरकार है. देश के प्रधानमंत्री जी, वित्त विभाग, केन्द्रीय एजेंसी. क्या अब भी तृणमूल कांग्रेस और विपक्षियों को राजनीति करना है. निर्णय जनता का, NIC ने यह जानकारी जॉंच एजेंसी को दी है।
– हालांकि महुआ मोइत्रा ने आरोपों का खंडन किया और निशिकांत दुबे और जय अनंत देहाद्राई को कानूनी नोटिस भेजा. उन्होंने कहा कि लोकसभा के सदस्य के रूप में मैंने अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए किसी भी तरह का लाभ नहीं लिया है. इस तरह के आरोप पूरी तरह अपमानजनक, झूठे, आधारहीन हैं. इस बात के कोई सबूत नहीं हैं।भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के आरोपों की जांच कर रही संसदीय आचार समिति (एथिक्स कमेटी) को भेजे लिखित जवाब में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा है कि वह 4 नवंबर तक अपने निर्वाचन क्षेत्र में काम करने में व्यस्त हैं, इसलिए उनका आग्रह है कि समिति उनके पेश होने की तारीख में बदलाव कर इसे 5 नवंबर के बाद का रखे। रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने यह सवाल भी किया है कि समिति ने उन्हें उपस्थित होने का मौका दिए जाने से पहले शिकायतकर्ताओं को क्यों सुना। इससे पहले कमेटी ने मोइत्रा को 31 अक्टूबर को पेश होने के लिए कहा था- क्योंकि वह उनके खिलाफ आरोप लगाने वाले दो लोगों- सांसद दुबे और वकील जय देहाद्राई को पहले ही बुलाकर उनकी बात सुन चुकी थी।

मोइत्रा अपने पत्र में कहा है, ‘समिति, प्राकृतिक न्याय के तरीके के विरुद्ध जाते हुए, मुझे यानी कथित आरोपी को सुनवाई का मौका देने से पहले 26/10/2023 को शिकायतकर्ताओं श्री दुबे और श्री देहाद्राई को बुलाकर उनका पक्ष सुन चुकी है … मैं आपके द्वारा दी जाने वाली अगली तारीख पर मेरे खिलाफ लगाए गए निंदनीय आरोपों के खिलाफ खुद मौजूद रहकर अपना बचाव पेश करना चाहती हूं.’

बुरी तरह फंसी सांसद महुआ मोइत्रा ,  दुबई से किया जा रहा था लॉगइन पासवर्ड का  इस्तेमाल 

अतिरिक्त समय दिए जाने का आग्रह करते हुए महुआ ने भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी का उदाहरण दिया है, जिन्होंने संसद में बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली के खिलाफ सांप्रदायिक अपशब्दों का इस्तेमाल किया था. बिधूड़ी को इस मामले के संबंध में हुई शिकायतों को लेकर संसद की विशेषाधिकार समिति के सामने पेश होना था, हालांकि उन्होंने अनुपस्थित रहने की अनुमति चाहते हुए समिति को बताया था कि वह निर्धारित तिथि पर पेश नहीं हो पाएंगे क्योंकि उनकी पहले से राजस्थान में प्रतिबद्धताएं थीं, जहां उन्हें टोंक जिले में भाजपा का चुनाव प्रभारी बनाया गया है।

इसके अलावा मोइत्रा ने बिजनेसमैन दर्शन हीरानंदानी का भी जिक्र किया है, जिन्होंने इस मामले पर विवादित हलफनामा दायर किया है।

हीरानंदानी ने टाइम्स नाउ से कहा है कि वह कमेटी के सामने पेश होने के इच्छुक हैं. मोइत्रा ने आरोप लगाया है कि हीरानंदानी, जिन पर दुबे और देहाद्राई ने अडानी समूह के बारे में सवाल पूछने के लिए टीएमसी सांसद को रिश्वत देने का आरोप लगाया है, ने दबाव में यह हलफनामा दायर किया है। मोइत्रा का कहना है कि परिस्थितियों को देखते हुए उचित यह होगा है कि उन्हें हीरानंदानी से जिरह करने का मौका दिया जाए और कथित तौर पर उनके द्वारा दी गई रिश्वत की भी पूरी सूची भी दी जाए।

महुआ ने लिखा है, ‘सार्वजनिक डोमेन में उनके हलफनामे का विस्तृत विवरण नहीं है और उन्होंने कथित तौर पर मुझे जो कुछ दिया है उसकी कोई असल सूची भी नहीं दी गई है. आरोपों की गंभीरता को देखते हुए और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है कि मुझे श्री हीरानंदानी से जिरह करने के अपने अधिकार के इस्तेमाल की इजाज़त दी जाए. यह भी जरूरी है कि वे समिति के सामने पेश हों और उन सब कथित तोहफों और एहसानों की विस्तृत सत्यापित सूची दें, जो उन्होंने कथित तौर पर मुझे दिए हैं।

उल्लेखनीय है कि द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया है कि संसद की एथिक्स कमेटी में शामिल विपक्ष और सत्तारूढ़ पार्टी के सांसदों के बीच इस बात पर मतभेद हुआ था कि मोइत्रा को उनके सामने पेश होने के लिए कब बुलाया जाए. आख़िरकार, संख्या बल के आधार पर भाजपा की बात मानी गई. कई सांसदों का कहना था कि मोइत्रा को शिकायतकर्ताओं से पहले बुलाया जाना चाहिए था. उन्होंने शिकायतकर्ताओं को पहले समय दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए सामान्य प्रक्रिया का हवाला दिया था।

‘पुख्ता सबूत मिलने पर शिकायत की’

सूत्र ने बताया उन्होंने (दुबे) शिकायत (मोइत्रा के खिलाफ) पेश करने से पहले कई स्तरों पर जांच की थी. सूत्र बताते हैं कि निशिकांत दुबे ने पैनल को बताया कि जब हमारे पास सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहाद्राई की शिकायत आई तो उन्होंने भी आरोपों को पहले पूरी तरह से जांच की थी. पुख्ता सबूत मिलने के बाद ही स्पीकर के सामने मामले को रखा था।

‘गृह और आईटी मंत्रालय की मदद ले सकती है जांच कमेटी’

वहीं, एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष विनोद कुमार सोनकर ने कहा, कमेटी आरोपों की जांच में गृह मंत्रालय और आईटी मंत्रालय से भी मदद मांगेगी. सूत्रों ने बताया कि पैनल गृह मंत्रालय से मोइत्रा की विदेश यात्राओं के बारे में जानकारी मांगेगा और उनकी संसदीय आईडी में लॉग-इन की लोकेशन को क्रॉस चेक करेगा. जांच के बाद ही एथिक्स कमेटी अगले महीने सदन में अपनी सिफारिशें भेजेगा।

‘पहले सुनवाई को लेकर वोटिंग के जरिए फैसला’

बैठक की शुरुआत चेयरपर्सन विनोद कुमार सोनकर को छोड़कर उपस्थित 10 सदस्यों के बीच तीखे मतभेदों के साथ हुई. सबसे पहले सवाल उठा कि कमेटी को पहले किसकी बात सुननी चाहिए – शिकायतकर्ता या आरोपी? मामले को सुलझाने के लिए वोटिंग हुई. कमेटी में शामिल पैनल के अलग-अलग मत थे. पैनल में पांच बीजेपी और पांच विपक्ष के सदस्य मौजूद थे. मतदान बराबरी पर समाप्त हुआ. अंत में चेयरपर्सन ने दुबे को पहले सुनने के पक्ष में अपना निर्णायक वोट दिया. बैठक में समिति के 15 सदस्यों में से 11 ने हिस्सा लिया।

’31 अक्टूबर को एथिक्स कमेटी के सामने पेश होंगी महुआ?’

विपक्षी सदस्यों ने बसपा सांसद दानिश अली और बीजेपी के रमेश बिधूड़ी से जुड़े हालिया मामले का हवाला दिया. विपक्ष का कहना था कि एक अन्य संसदीय पैनल ने संसद में अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोपी बिधूड़ी को पहले तलब किया था, जबकि एथिक्स कमेटी शिकायतकर्ता दुबे का पहले बयान दर्ज कर रही है. हालांकि, कमेटी ने आरोपों के संबंध में महुआ को 31 अक्टूबर को पेश होने के लिए कहा है. बैठक के बाद बीजेपी सांसद सोनकर ने कहा, महुआ मोइत्रा को कमेटी के सामने पेश होने के लिए कहा है।

‘दुबे बोले- यह संसद की गरिमा से जुड़ा मामला’

दुबे और वकील जय अनंत देहाद्राई ने पैनल के सामने सिलसिलेवार महुआ के खिलाफ मौखिक साक्ष्य दिए. सूत्रों ने बताया कि दुबे ने महुआ को संसद से अयोग्य ठहराने की वकालत की और कहा, यह मामला संसद की गरिमा से जुड़ा है. राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है. उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह खुला मामला है. यहां तक कि कारोबारी दर्शन हीरानंदानी ने भी कथित तौर पर रिश्वत दिए जाने के आरोप को स्वीकार कर लिया है।

‘विपक्ष ने महुआ पर नरमी बरतने की वकालत की’

सूत्रों ने कहा, पैनल में शामिल बसपा के दानिश अली और जदयू के गिरिधारी यादव समेत विपक्षी दलों के कुछ सदस्यों ने इस मामले में नरमी बरतने जाने की अपील की. विपक्षी सदस्यों का कहना था कि वो (महुआ) पहली बार सांसद बनी हैं. इस पर दुबे ने ऐतराज जताया और जोर देकर कहा, इस मामले में एक नजीर के तौर पर कार्रवाई होनी चाहिए. ताकि यह अन्य सांसदों के लिए एक सबक बने।

‘दुबे ने 2005 की कार्रवाई का दिया हवाला’

दुबे ने 2005 में 11 सांसदों के निष्कासन का हवाला दिया. तब एक स्टिंग ऑपरेशन में ये सांसद पार्लियामेंट में सवाल पूछने के नाम पर रिश्वत लेते पकड़े गए थे. बैठक में कुछ देर तक गहमा-गहमी भी देखने को मिली. कांग्रेस सांसद एन उत्तम कुमार रेड्डी ने निशिकांत दुबे की कथित फर्जी डिग्री का मुद्दा उठाया. दरअसल, इस मामले को अक्सर मोइत्रा द्वारा उठाया जाता है. हालांकि, दुबे ने इसका जोरदार तरीके से खंडन किया और कहा, इस मामले को चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक निकायों ने भी देखा है।

‘फर्जी डिग्री के मुद्दे पर बिफर रह गए दुबे’

दुबे का कहना था कि फर्जी डिग्री मामले में एक एफआईआर को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा था. चुनाव आयोग भी उनके तर्क से सहमत था. उन्होंने दावा किया, ऐसा लगता है कि कुछ लोग सोचते हैं कि वे शीर्ष अदालत से ऊपर हैं. ये लोग भ्रष्टाचार में शामिल हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे हैं।

‘दिवाली से पहले होगी महुआ की पेशी?’

विपक्षी सांसदों ने जय अनंत देहाद्राई और दुबे से पूछा, क्या वे एक-दूसरे को पहले से जानते हैं. इस पर दोनों ने इंकार किया. कुछ सांसदों ने अगली बैठक दिवाली के बाद करने की मांग रखी. लेकिन, इसकी तारीख पहले 31 अक्टूबर तय किए जाने पर सहमति बनी।

‘महुआ ने पेशी के लिए मांगा 4 दिन का समय’

वहीं, महुआ मोइत्रा ने पेशी के लिए 4 दिन का समय मांगा है. महुआ ने कहा, मैं अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत निर्वाचन क्षेत्र के कार्यक्रमों में रहूंगी. वहां दुर्गा पूजा समेत अन्य बड़े प्रोग्राम में 4 नवंबर तक हिस्सा लेना है. ऐसे में 31 दिसंबर को दिल्ली आना संभव नहीं है. उसके तुरंत बाद किसी भी दिन कमेटी के सामने पेश होना चाहती हूं और अपना जवाब दाखिल करना चाहती हूं. महुआ ने नई तारीख निर्धारित करने का आग्रह किया है।
https://apkaakhbar.in/mp-mahua-moitra-badly-trapped-login-password-was-being-used-from-dubai/

‘दुबे ने बताई हलफनामे की एविडेंस वैल्यू’

सूत्रों ने बताया कि बैठक में कुछ सदस्यों ने मोइत्रा के खिलाफ वकील देहाद्राई के कुत्ते को चुराने के आरोप में पुलिस शिकायत का भी जिक्र किया. लेकिन देहाद्राई ने कहा, इसका उनके रिश्वत के आरोपों से कोई लेना-देना नहीं है. वहीं, बीजेपी सदस्यों ने कुत्ते के मुद्दे को उठाने पर आपत्ति जताई. बीजेपी सांसद दुबे ने कमेटी के समक्ष दावा किया कि हलफनामे का एविडेंस वैल्यू सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किए गए बयान के समान है. एथिक्स कमेटी के समक्ष सबसे पहले देहाद्राई ने बयान दर्ज कराए, उसके बाद दुबे पहुंचे. जब दुबे से पूछा गया कि मोइत्रा ने अपने खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया है तो उन्होंने कहा, दस्तावेज झूठ नहीं बोलते हैं।

‘विदेश मंत्रालय से भी जवाब मांग सकती जांच कमेटी’

माना जा रहा है कि एथिक्स कमेटी प्रोटोकॉल के तहत विदेश मंत्रालय से भी जवाब मांग सकती है. मोइत्रा को रिश्वत देने के आरोपी हीरानंदानी ने दुबई में भारतीय वाणिज्य दूतावास के सामने आरोपों को स्वीकार करते हुए एक हलफनामा दायर किया है. इससे पहले 15 अक्टूबर को दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक पत्र लिखा था. इसमें दुबे ने कहा, मोइत्रा के करीबी वकील देहाद्राई ने अडानी ग्रुप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के लिए उनके (महुआ) और कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के बीच ‘रिश्वत के लेन-देन के मजबूत सबूत’ शेयर किए हैं. बिरला ने इस मामले को एथिक्स कमेटी के पास भेज दिया था।

‘महुआ ने आरोपों को किया सिरे से खारिज’

हालांकि, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था और अडानी ग्रुप पर साजिश करने का आरोप लगाया था. महुआ का कहना था कि वो अडानी ग्रुप के खिलाफ सदन में लगातार सवाल उठा रही हैं, इसलिए मुझे निशाना बनाकर के लिए गलत आरोप लगाए जा रहे हैं।

निशिकांत दुबे ने स्पीकर को लिखे पत्र में क्या आरोप लगाए?

निशिकांत दुबे ने कहा था कि मोइत्रा मोइत्रा ने संसद में जो 61 सवाल पूछे थे, उनमें से 50 अडानी ग्रुप पर फोकस थे. महुआ ने कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के व्यापारिक हितों को ध्यान में रखकर संसदीय सवाल पूछकर एक आपराधिक साजिश रची है. यह पूरा प्रकरण 12 दिसंबर 2005 के ‘कैश फॉर क्वेरी’ की याद दिलाता है।

दुबे ने कहा, सांसद जब भारत में थी तो उनकी लोकसभा का लॉगिन दुबई से हुआ था. उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘कुछ पैसे के लिए एक सांसद ने देश की सुरक्षा को गिरवी रखा. दुबई से संसद के आईडी खोले गए. उस वक्त सांसद कथित भारत में ही थे. इस NIC पर पूरी भारत सरकार है. देश के प्रधानमंत्री जी, वित्त विभाग, केन्द्रीय एजेंसी. क्या अब भी तृणमूल कांग्रेस और विपक्षियों को राजनीति करना है. निर्णय जनता का, NIC ने यह जानकारी जॉंच एजेंसी को दी है।
हालांकि महुआ मोइत्रा ने आरोपों का खंडन किया और निशिकांत दुबे और जय अनंत देहाद्राई को कानूनी नोटिस भेजा. उन्होंने कहा कि लोकसभा के सदस्य के रूप में मैंने अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए किसी भी तरह का लाभ नहीं लिया है. इस तरह के आरोप पूरी तरह अपमानजनक, झूठे, आधारहीन हैं. इस बात के कोई सबूत नहीं हैं। (एएमएपी)