कर्ज पर नहीं, भारतीय सैनिकों पर है फोकस
आर्थिक चुनौतियों और विदेशी कर्ज को चुकाने के बीच, नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अपने देश से भारत की सैन्य उपस्थिति खत्म करने पर तुले हैं। मुइज्जू का चुनावी अभियान “भारत को बाहर करो” था। अब इसे पूरा करने के उनके दृढ़ संकल्प ने राजनयिक चिंताओं को बढ़ा दिया है। चुनाव जीतने के बाद से ही मुइज्जू ने बार-बार मालदीव से भारतीय सेना को हटाने की इच्छा जताई है। उन्होंने कहा, “मालदीव से भारतीय सैनिकों को जल्द से जल्द वापस भेजने की डिटेल पर काम करूंगा। इसके लिए मैं भारत के साथ स्पष्ट और विस्तृत राजनयिक परामर्श करूंगा। मसला यहां सैन्य कर्मियों की वास्तविक संख्या पर नहीं है, बल्कि मालदीव में बिल्कुल भी नहीं होने पर है। हम भारत सरकार से चर्चा कर इसके लिए आगे का रास्ता निकालेंगे।”
चीन के करीबी माने जाने वाले मुइज्जू भारत विरोधी बयानबाजी तो कर रहे हैं लेकिन अपने देश के आर्थिक हालात पर शायद ही उतना फोकस कर रहे हैं। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट कहती है कि मालदीव को 2022 से 2024 तक विदेशी ऋण चुकाने के लिए प्रति वर्ष औसतन 300 मिलियन डॉलर खर्च करने होंगे। इसने मालदीव के बारे में मौजूदा चिंताओं को बढ़ा दिया है। भारी बोझ रणनीतिक रूप से स्थित मालदीव को उन एशियाई देशों की कतार में खड़ा कर रहा है जिनके हालात पहले से ही बहुत खराब हैं। इनमें पाकिस्तान और श्रीलंका ऐसे देश हैं जो बाहरी कर्ज के चुंगल में फंसे हैं। सबसे खराब स्थिति हाल ही में पास के श्रीलंका में देखी गई, जहां यह देश पिछले साल डिफॉल्टर हो गया था
श्रीलंका से ज्यादा मिल रहे मालदीव के हालात
श्रीलंका के हालात मालदीव से ज्यादा मिलते हैं। संसद के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने संसदीय परिसर में एक इंटरव्यू के दौरान कहा, “हम जानते हैं कि श्रीलंका में क्या हुआ, यह सिर्फ अखबारों की सुर्खियों के माध्यम से नहीं, बल्कि इसलिए कि हमारे बीच घनिष्ठ संबंध हैं और हम जानते थे कि आर्थिक पतन ने हमारे करीबी श्रीलंकाई मित्रों को कैसे प्रभावित किया। हमने श्रीलंका से बहुत कुछ सीखा है और हमें सावधान रहना चाहिए।”
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विश्व बैंक की चेतावनी के एक सप्ताह बाद, फिच रेटिंग्स ने भी मालदीव के “भारी और बढ़ते सरकारी ऋण बोझ, कम विदेशी मुद्रा भंडार” के चलते इसकी रेटिंग घटा दी थी। वैश्विक रेटिंग एजेंसी ने कहा कि 2025 में देश को 363 मिलियन डॉलर का विदेशी कर्ज चुकाना होगा। मुइज्जू को एक ऐसी अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है जिसमें विदेशी भंडार घट रहा है। देश के केंद्रीय बैंक, मालदीव मौद्रिक प्राधिकरण के अनुसार, मध्य वर्ष का आंकड़ा 702.2 मिलियन डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था, जो 2023 की शुरुआत में 790 मिलियन डॉलर से कम है। एमएमए के आंकड़ों से पता चलता है कि उसमें से इस्तेमाल योग्य भंडार केवल 168.1 मिलियन डॉलर का अनुमान लगाया गया था, जो भारी आयात पर निर्भर देश में केवल ढाई महीने के आयात के लिए पर्याप्त था।
मालदीव में क्या कर रहे भारतीय सैनिक
पर ऐसा क्यों चाहते हैं मुइज्जू?
चुनाव जीतने के बाद पहली रैली में मुइज्जू ने कहा था, ‘मालदीव की संप्रभुता और स्वतंत्रता सबसे ज्यादा मायने रखती है. लोग नहीं चाहते कि भारतीय सैनिक मालदीव में रहें. वो हमारी भावनाओं और इच्छा के खिलाफ यहां नहीं रह सकते.’
मुइज्जू का कहना है कि हम विदेशी सैनिकों को मालदीव के कानून के मुताबिक वापस भेजेंगे. उन्होंने रैली में कहा था कि मालदीव के लोगों ने उन्हें वापस भेजने का फैसला लिया है। मुइज्जू को चीन का समर्थक माना जाता है. हालांकि, वो खुद को किसी देश का समर्थक बताते नहीं हैं. ‘चीन समर्थक’ सवाल पर मुइज्जू ने कहा था, ‘मेरी सबसे पहली प्राथमिकता मालदीव और उसकी स्थिति है. हम मालदीव समर्थक हैं. कोई भी देश जो हमारी प्रो-मालदीव नीति का सम्मान करता है और उसका पालन करता है, वो मालदीव का करीबी दोस्त माना जा सकता है.’वहीं, इससे पहले तक मालदीव में भारत समर्थित सरकार थी. इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की सरकार में मालदीव और भारत के रिश्ते मजबूत हुए। चुनाव प्रचार के दौरान मुइज्जू की पार्टी ने सोलिह पर गुपचुप तरीके से भारत से डील करने का आरोप लगाया था, जिस कारण मालदीव में भारतीय सैनिक तैनात हैं।
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वहां कर क्या रही है भारतीय सेना?
भारत और चीन के लिए क्यों जरूरी मालदीव?
मुइज्जू का राष्ट्रपति चुनाव जीतना भारत के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. मुइज्जू को चीन का समर्थक और भारत का विरोधी माना जाता है। दरअसल, मालदीव हिंद महासागर में है और इस वजह से वो भारत और चीन, दोनों के ही लिए इसकी स्ट्रैटजिक अहमियत है. मालदीव में 1100 से ज्यादा छोटे-बड़े द्वीप हैं, जो हिंद महासागर में दक्षिण से पश्चिम तक फैले हुए हैं. इनमें से 16 द्वीप को चीन लीज पर ले चुका है। मुइज्जू असल में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यामीन के प्रतिनिधि थे. यामीन भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद हैं और इस कारण वो चुनाव नहीं लड़ सकते थे।
यामीन 2013 से 2018 तक मालदीव के राष्ट्रपति रहे हैं. उनकी सरकार में मालदीव, चीन के करीब चला गया था. उन्हीं की सरकार में मालदीव, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से जुड़ा था. इतना ही नहीं, मालदीव में ब्रिज और एयरपोर्ट बनाने के लिए चीन ने अरबों डॉलर का कर्जा भी दिया था। 2018 में चुनाव प्रचार के दौरान यामीन ने भारतीय सैनिकों का वीजा रद्द करने और हेलिकॉप्टर-विमान वापस भेजने की धमकी दी थी।
2018 में जब इब्राहिम सोलिह सत्ता में आए तो भारत से करीबियां बढ़ीं. चीन का दबदबा कम करने के लिए पिछले साल भारत ने मालदीव को 500 मिलियन डॉलर देने का वादा किया था. हालांकि, बताया जाता है कि अब तक इसमें से सिर्फ 17 मिलियन डॉलर ही मिले हैं। हालांकि, अब जब वहां मुइज्जू राष्ट्रपति बन गए हैं, तो ऐसे में मालदीव और भारत के रिश्ते एक बार फिर तल्ख हो सकते हैं. वहीं, चीन से उसकी करीबी बढ़ सकती है।