ममता और तृणमूल के करीबी कहे जाने वाले कलाकार शुभप्रसन्ना ने कहा कि यह निर्णय कोई राजनीतिक लाभ नहीं देगा। बल्कि इस पर बैन लगाकर फिल्म को ही अहमियत दी गई है। अच्छे-बुरे का निर्णय करने की जिम्मेदारी लोगों पर छोड़ देनी चाहिए। जब सेंसर बोर्ड ने रियायतें दे दी हैं तो प्रदर्शन में बाधा कहां है? मुझे नहीं पता कि इस फैसले के पीछे कोई राजनीतिक मंशा है या नहीं। हालांकि, मुझे लगता है कि कोई फायदा नहीं होगा।
नाटककार और निर्देशक देवेश ने भी यही बात कही। उनके मुताबिक अगर ऐसा लगता है कि किसी फिल्म या नाटक में गलत बात कही गई है, तो बदले में कुछ नया करना पड़ता है। उस पर प्रतिबंध का कोई मतलब नहीं है। मैंने जो सुना, फिल्म ज्यादा नहीं चली। लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया लेकिन अब प्रतिबंध से उत्सुकता बढ़ेगी। बहुत लोग देखेंगे।
रंगमंच की हस्ती सुमन ने कहा कि मुझे नहीं पता कि यह फिल्म कैसी है। लेकिन मैं किसी भी प्रतिबंध के खिलाफ हूं। कवि सुबोध ने कहा कि फिल्म देखे बिना कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। हालांकि, मीडिया में छपी तमाम खबरों को पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि यह आग है। जो लोग आग लगाना चाहते हैं उनकी जलती हुई चिंगारी पर पानी नहीं डाला गया तो खतरा अवश्यंभावी है। उस पानी को डालने का काम राज्य सरकार ने किया।
अभिनेता कौशिक ने बंगाल की मौजूदा स्थिति को याद करते हुए कहा कि राज्य सरकार का बैन लगाने का फैसला स्वागत योग्य है। इस समय मुझे पश्चिम बंगाल के संदर्भ में यह दुखद नहीं लगा। जब हम इतिहास की बात करते हैं तो हमें यह याद रखना होता है कि हमारा परिवेश कितना बदल गया है। जो मैं पहले नहीं समझता था या विश्वास करता था लेकिन अब मैं समझता हूं कि सांप्रदायिकता हममें से कई लोगों के दिमाग में गहराई तक बसी हुई है। कौशिक ने कहा कि जब हम कला की आजादी की बात करते हैं, तो हमें बदलता परिवेश याद नहीं रहता।(एएमएपी)