कोलकाता से मुंबई तक इंडी गठबंधन जो कभी एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा था, वो पूरी तरह से टूट चुका है। केरल से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र से लेकर पश्चिम बंगाल तक गठबंधन के परखच्चे उड़ चुके हैं। पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने गठबंधन की उम्मीदों को धराशाई करते हुए सभी 42 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने ‘एकला चलो’ का नारा देते हुए लोकसभा चुनाव के लिए अपनी बिसात बिछा दी है। हालांकि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह राह आसान नहीं है।तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच पश्चिम बंगाल में गठबंधन नहीं हो पाने की कई वजह हैं, पर मुख्य वजह कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी की बयानबाजी है। अधीर रंजन 2023 से लगातार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमले कर रहे हैं। इंडी गठबंधन की पटना में हुई पहली बैठक में ममता बनर्जी ने आपस में बयानबाजी न करने का मुद्दा उठाया था, पर अधीर चुप नहीं हुए। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अधीर रंजन चौधरी तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तैयार नहीं थे। अधीर ने यह संकेत भी दिए थे कि पार्टी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ गठबंधन करती है, तो वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। शायद यही वजह है कि अधीर रंजन चौधरी को घेरने के लिए ममता बनर्जी ने बहरामपुर सीट से क्रिकेटर यूसुफ पठान को टिकट दिया है।

न्याय यात्रा का न्योता नहीं मिलने से भी नाराज थीं ममता

इसके साथ ममता बनर्जी सीट शेयरिंग को लेकर हो रही देरी और भारत जोड़ो न्याय यात्रा का न्योता नहीं मिलने से भी नाराज थीं। न्याय यात्रा के पश्चिम बंगाल में दाखिल होने से ठीक एक दिन पहले मुख्यमंत्री ने कहा था कि शिष्टाचार के नाते भी उन्हें यात्रा की जानकारी नहीं दी गई। हालांकि, कांग्रेस ने सफाई देते हुए कहा था कि पार्टी अध्यक्ष ने गठबंधन के सभी सहयोगियों को पत्र लिखा था। बहरहाल, सभी सीट पर प्रत्याशियों के ऐलान के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए हैं।

ममता के लिए आसान नहीं राह

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा को सीधे मुकाबले की चुनौती दी है, पर यह इतना आसान नहीं है। कांग्रेस रणनीतिकार मानते हैं कि एकला चलो के फैसले से ममता बनर्जी को राजनीतिक नुकसान हो सकता है। संदेश खाली के मुद्दे पर भाजपा पहले ही काफी आक्रामक है। ऐसे में अलग-अलग चुनाव लड़ने से भाजपा विरोधी वोट में बंटवारा होगा और इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। यही वजह है कि कांग्रेस अभी भी तृणमूल के खिलाफ नरम है।

वोट प्रतिशत में ज्यादा फर्क नहीं

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच वोट प्रतिशत में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है। तृणमूल को 43 फीसदी वोट के साथ 22 सीट मिली थी, जबकि भाजपा को 40 प्रतिशत वोट के साथ 18 सीट मिली थी। वहीं, 2014 में भाजपा ने सिर्फ 17 प्रतिशत वोट के साथ दो सीट हासिल की थी। वहीं, इन चुनावों में कांग्रेस ने करीब आठ फीसदी वोट बरकरार रखा है। ऐसे में इंडी गठबंधन की स्थिति में भाजपा की कई सीट मुश्किल में फंस सकती थी।

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क्‍या बोले जयराम रमेश ?

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सभी सीट पर उम्मीदवारों के ऐलान कर कहा कि कांग्रेस हमेशा तृणमूल के साथ सम्मानजनक सीट बंटवारा चाहती थी। हमारे दरवाजे बातचीत के लिए हमेशा खुले हैं, पर उम्मीदवारों का एकतरफा ऐलान नहीं होना चाहिए था। वह नहीं जानते कि तृणमूल पर क्या दबाव था। जहां तक कांग्रेस का ताल्लुक है, हम पश्चिम बंगाल में इंडी गठबंधन को मजबूत करना चाहते हैं। पार्टी अब अपनी रणनीति तय करेगी।(एएमएपी)