डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
भारत ने अगले दस वर्षों के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह को संचालित करने का अपने लिए अधिकार सुरक्षित कर लिया। इस संबंध में जैसे ही दोनों देशों के बीच अनुबंध पर अंतिम हस्ताक्षर हुए दुनिया के कई देशों को मिर्ची लग गई।
ऐसा नहीं है कि भारत में दूसरे देशों के एजेंट नहीं हैं। इस प्रकार के अनेक लोग इसे एक समान्य बात कहकर इसके प्रभाव को नष्ट करने में लग गए। लेकिन सभी को समझना होगा कि ‘चाबहार’ भारत के लिए आनेवाले समय में अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण में एक बड़ा कदम है। ओमान की खाड़ी पर दक्षिणपूर्वी ईरान में स्थित यह बंदरगाह भारत के लिए अत्यधिक महत्व इसलिए भी रखता है, क्योंकि यह अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार प्रदान करता है।
कहना होगा कि मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में वह कर दिखाया है जिसकी प्रतीक्षा भारत पिछले 21 सालों से कर रहा था। फिर इस एक बंदरगाह को लेकर जो वैश्विक कूटनीतिक चाल भारत ने चली है, उससे दुनिया के सभी बड़े देश आश्चर्य में हैं। विरोधी दुखी हैं और चीन जैसे विस्तारवादी देश को नहीं सूझ रहा है कि भारत के इस कदम का जवाब कैसे दिया जाए। दूसरी ओर इस कदम की सफलता तब सामने आई है, जब मध्य पूर्व और पश्चिम एशिया में प्रमुख व्यापार मार्ग क्षेत्रीय संघर्षों के कारण बाधित हो गए हैं, जिससे कि नए सिरे से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया जाना आवश्यक हो गया है।
वस्तुत: वैश्विक स्तर पर इसका भारत को मिलनेवाला जो सबसे बड़ा लाभ आज दिखता है, वह है मध्य पूर्वी देशों से रिश्तों मे गर्माहट का आना और उसके माध्यम से भारत की व्यापारिक गतिविधि का इन देशों में बढ़ जाना। स्वाभाविक है कि इससे सबसे ज्यादा लाभ भारत के उन तमाम लोगों को होगा जो कि रोजगार के लिए प्रयासरत हैं। सिर्फ ‘चाबहार’ से ही अकेले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाखों लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है। क्योंकि इससे कई देशों के साथ भारत की व्यापारिक सुगमता बढ़ेगी, उससे पूर्व की तुलना में एक तो माल ढुलाई की लागत में कमी आने जा रही है तो दूसरी ओर देश में अनेक कंपनियां जो विविध सामान (उपभोक्ता सामग्री) तैयार कर रही है, उसके लिए जल्दी-जल्दी बाजार उपलब्ध होना सुगम हो जाएगा।
वास्तविकता तो यह भी है कि इसके महत्व को 2003 में अटल सरकार ने पहचान लिया था। इस बंदरगाह को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार की ओर से प्रयास भी शुरू कर दिए गए थे। लेकिन तभी अटल सरकार बदल गई और इसी के साथ जैसे इस समझौते को भी ग्रहण लग गया था। केंद्र में कांग्रेस की सत्ता रहते दस वर्षों तक इस पर कोई काम नहीं हुआ। यह भी हो सकता है कि कांग्रेस पाकिस्तान को लगातार लाभ पहुंचाना चाहती हो या वह चीन एवं अमेरिका जैसे देशों को नाराज करना नहीं चाहती हो, किंतु दोनों ही स्थिति में इतने सालों तक नुकसान भारत का ही हुआ है।
कोई पूछ सकता है कि कांग्रेस की तत्कालीन मनमोहन-सोनिया सरकार पाकिस्तान को कैसे लाभ पहुंचाना चाहती थी। इसका जवाब यह है कि पहले भारत को मध्य एशिया के देशों से व्यापार करने के लिए पाकिस्तान के रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ता था। यहां तक की अफगानिस्तान तक भी कोई सामान भेजने के लिए भारत को पाकिस्तान से होकर जाने वाले रास्ते का ही इस्तेमाल करता था। स्वाभाविक है कि इससे पाकिस्तान को अत्यधिक आर्थिक लाभ मिलता था, पर अब सब कुछ बदल रहा है। भारत और ईरान के बीच ‘चाबहार’ को लेकर समझौता होने के बाद की स्थिति में अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया से बिजनेस के लिए भारत को नया रूट मिल गया है। अब इन देशों तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान से होकर नहीं, जाना होगा।
वास्तव में मोदी सरकार ने यह एक बड़ा काम किया कि 2014 में भाजपा के सत्ता में आते ही ‘चाबहार’ पर नए सिरे से चर्चाएं शुरू कर दीं, जिसका सुखद परिणाम यह आया कि इस बंदरगाह समझौते की एक नई शुरुआत 2016 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान फिर से हो सकी। फिर 2018 में मोदी सरकार ने ईरान के साथ मिलकर बंदरगाह में भारत की भूमिका का विस्तार करते हुए समझौते को औपचारिक रूप दिया। जिसमें कि भारत और ईरान ने चाबहार के शाहिद बेहश्ती बंदरगाह के टर्मिनल के संचालन के लिए दोनों देशों के बीच एक अनुबंध अगले 10 साल के लिए किया गया है। इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और ईरान के पोर्ट्स एंड मेरिटाइम ऑर्गनाइजेशन ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके साथ ही भारत विदेश में मौजूद किसी बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में लेने की पहली शुरूआत भी कर देता है।
कूटनीतिक स्तर पर भारत का यह कदम चीनी सहायता से विकसित पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के विकल्प के रूप में भी काम करता है। चाबहार और ग्वादर के बीच समुद्र से केवल 72 किलोमीटर की दूरी है। चाबहार बंदरगाह रणनीतिक रूप से अधिक अहम है, क्योंकि यह मध्य एशियाई क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के भारत के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। साथ ही वर्तमान में चाबहार बंदरगाह को आप भारत की महत्वाकांक्षी अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) परियोजना यानी कि इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के एक प्रमुख घटक के रूप में भी देख सकते हैं।
यह कॉरिडोर हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के ज़रिये कैस्पियन सागर को जोड़ता है और फिर रूस से होते हुए उत्तरी यूरोप तक पहुँच बनाता है । इसके तहत ईरान, अज़रबैजान, आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिज़ गणराज्य, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान, सीरिया, बुल्गारिया और रूस के सड़क एवं रेल मार्ग भी जुड़ जाएंगे। इस कॉरिडोर के शुरू होने से रूस, ईरान, मध्य एशिया, भारत और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और वस्तुओं की आवाज़ाही में समय और लागत की बचत होगी। जिससे भारत का व्यापार कई हजार करोड़ रुपए तक बढ़ जाएगा ।
इस एक डील के होने पर ही अमेरिका से लेकर चीन और चीन से लेकर पाकिस्तान तक कई देश परेशान दिख रहे हैं। अमेरिका डील के बाद भारत पर प्रतिबंध लगाने तक की धमकी देता हुआ दिखता है। इस एक निर्णय को आप चीन के बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के लिए भारत के जवाब के तौर पर भी देख सकते हैं। इस बंदरगाह का इस्तेमाल करने की वजह से मध्य एशिया के दूसरे कई देशों में पाकिस्तान की महत्ता भी कम होती दिखती है।
इसके साथ ही एक अच्छी खबर यह है कि मोदी सरकार के रहते भारत चाबहार बंदरगाह समझौते के अलावा, बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के सिटवे बंदरगाह का नियंत्रण लेने के लिए इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल के एक प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है, जिससे इस क्षेत्र में अपनी समुद्री उपस्थिति और व्यापार नेटवर्क का और अधिक विस्तार करना भारत के लिए संभव होगा। स्वाभाविक है कि चारो ओर से आ रहीं भारत के लिए इन अच्छी खबरों ने आज दुनिया के कई देशों की नींद उड़ाकर रख दी है।
(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)