भारत के लिए बांग्लादेश की स्थिति एक सबक।

कैलाश नाथ मिश्रा।
किवदंती है कि जब मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गजनी में अपने कारागार में डाल दिया, तो चौहान के दरबारी एवं मित्र कवि चंद्रवरदाई उनकी खोज़ खबर लेने गजनी पहुँचे। चंद्रवरदाई दरबार मे मुहम्मद गोरी के सामने पेश किए गए। पूछताछ के दौरान उन्होंने कहा कि पृथ्वीराज चौहान सिर्फ आवाज़ सुनकर निशाना लगा सकते हैं।

सुल्तान को विश्वास नही हुआ। उसने परीक्षा लेने की ठानी। एक बहुत ऊँचा मंच बनाया गया और उसके ऊपर सुल्तान बैठा। उसके नीचे एक के ऊपर एक सात लोहे के तवे लगाए गए। सामने चंद्रबरदाई के साथ अंधे पृथ्वीराज चौहान, (उनकी आँखें बंदी बनाने के बाद निकाल दी गईं थी), को धनुषबाण देकर खड़ा कर दिया गया। अब सुल्तान के इशारे पर नीचे से एक तवे पर हथौड़ा मार कर आवाज़ पैदा की जाती और पृथ्वीराज उस आवाज़ पर निशाना लगाते। जब दो-तीन तवों पर निशाना लग गया, चंदबरदाई जोर से बोला- “चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चुक्कै चौहान ”। पृथ्वीराज चौहान ने तुरंत धनुष का रुख सुल्तान की ओर किया और तीर सुल्तान के सीने को चीरता हुआ निकल गया। तीर चलते ही चंद्रबरदाई ने एक कटार निकाली और पृथ्वीराज चौहान के सीने मे घोंप दिया और दूसरी कटार निकाल कर अपने सीने में। इस प्रकार दोनों मित्र एक क्षण मे छुटकारा पा गए।

पाकिस्तान के मुस्लिमों ने नहीं चाहा था बंटवारा

कहते हैं “लम्हों ने  खता की थी, सदियों ने सजा पाई ”। इसका उल्टा भी सच है कि कुछ लम्हों मे उठाया गया एक सही कदम सदियों तक आपको सुकून दे सकता है। विभाजन के समय दो प्रमुख नेताओं सरदार पटेल और बाबा साहब आम्बेडकर ने कहा था कि यदि धर्म के आधार पर ही विभाजन करना है तब आबादी का भी स्थानान्तरण होना चाहिए। वास्तविकता यह है कि विभाजन के लिए वोट केवल बंगाल और आज के भारत के मुस्लिमों ने दिया था- पाकिस्तान के मुस्लिमों ने नहीं। पंजाब में युनिअनिस्ट पार्टी को बहुमत मिला था, सिन्ध मे जिये सिन्ध के जनक जी एम सैयद को, सीमाप्रांत मे कांग्रेस की सरकार थी, जबकि बलूचिस्तान (कलात) एक स्वतंत्र राष्ट्र था। परंतु गांधीजी और नेहरू धर्म के आधार पर आबादी के स्थानांतरण के लिए तैयार नहीं हुए।

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मुस्लिमों का ‘भाईचारा’

डॉ. आंबेडकर ने अपनी आत्मकथा मे लिखा है, “मुस्लिमों का भाईचारा केवल मुस्लिमों के लिए है, किसी और धर्म के मानने वाले के लिए नहीं। दूसरे धर्मवालों को तो वे हिकारत की नज़र से देखते हैं। हाँ “तकइप्या” के सिद्धांत के अनुसार (कुरान सूरा 3) वे दोस्ती का दिखावा कर सकते हैं परंतु काफ़िरों को दोस्त नहीं बना सकते। इसकी कुरान मे सख्त मनाही है। इसी का नतीजा है कि जहाँ विभाजन के समय पाकिस्तान में 24 प्रतिशत और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में  30 प्रतिशत हिन्दू थे, आज वहां मुश्किल से 2 प्रतिशत और 7 प्रतिशत हिन्दू बचे हैं। और यह नगण्य संख्या भी मुस्लिम समाज को बर्दाश्त नहीं। लगातार धर्म परिवर्तन और लड़कियों के अपहरण की खबरें आती रहती हैं। वहीं भारत मे 1947 में मुस्लिम पूरी आबादी के केवल 9 प्रतिशत थे, आज 17-18 प्रतिशत हो गये हैं। लेकिन नेरेटिव यह चलाया जाता रहा है कि भारत में माइनारिटी का उत्पीड़न होता है। यह माइनारिटी का शगूफा भी अजब है। माइनारिटी का मतलब होता है जनसंख्या के कम संख्या वाला। कायदे से इसमे पारसी, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाइयों की बात होनी चाहिये लेकिन बात मुस्लिमों और सिर्फ मुस्लिमों की होती है। फिर हम सीधे मुस्लिम क्यों नहीं बोलते। उसे माइनारिटी कह कर छुपाते क्यों हैं। मुस्लिम भी मुस्लिम न कहकर अपने को माइनारिटी शब्द के पीछे छुपाते हैं। आखिर अपनी बात मुस्लिम के तौर पर कहने में शर्म क्यों?

समस्या यह है कि हम इस्लाम के बारे में कुछ नहीं जानते। इस्लाम उनके धर्मगंथों कुरान, हदीस और सीरत (पैगम्बर की जीवनी) में है। दरअसल जिनको हम आतंकवादी या जिहादी कहते हैं, वास्तव में एक वर्ग के लिए वे सच्चे मुसलमान हैं। इस्लाम की व्याख्या ही सल्लैलाहु वसैलम हजरत मुहम्मद साहब से होती है। हजरत मुहमद ने जीवन में जो कुछ भी कहा (कुरान भी हमने उन्ही के मुँह से सुनी) या किया- वह सब इस्लाम है और उसके बाहर कुछ भी इस्लाम नहीं।

ये सब धर्मसम्मत ही नहीं, धार्मिक कर्तव्य

इस नजरिये से देखें तो विभाजन के समय पाकिस्तान में हिन्दू, सिखो का खुल्लेआम क़त्ल, स्त्रियों बच्चों को कब्जे मे लेना, जबरदस्ती धर्म परिवर्तन और उनकी नसलकुशी- ये सब धर्मसम्मत ही नहीं, उनका धार्मिक कर्तव्य है। इसी की पुनरावृत्ति हमें 1989 के कश्मीर मे हुए पंडितों के विस्थापन, बंगाल चुनाव के बाद हुए दंगो और आज बांग्लादेश में हो रहे हिन्दू मंदिरों, सम्पत्तियों, स्त्रियों पर होने वाले हमलो से मिलती है। यह सब इस्लाम सम्मत है क्योंकि हजरत मुहम्मद साहब ने भी अपने समय मे काफिरों के साथ यही सब किया था। कुरान मे ऐसी 91 आयतें हैं जो कहती हैं कि मुहम्मद पूरी सृष्टि में हमेशा के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं, उनका अनुसरण करो।

हम मुगालते मे रहना चाहें तो उनका क्या दोष

सच्ची बात यह है कि इस्लाम मे कुछ भी छुपाया नहीं गया। यह सब कुरान में लिखा हुआ है। लेकिन हम कुरान पढ़ते ही नहीं। और कोई बताए तो मानते ही नहीं। हमारा सोचना होता है कि ऐसा तो सभी पुराने ग्रंथो में होता है, आज कोई थोड़े ही ऐसा करता है। जबकि वे बार बार कहकर ही नहीं करके भी बताते हैं। पाकिस्तान, गाजा, कश्मीर, बांग्लादेश सभी आज के ज्वंलत उदाहरण हैं, लेकिन हम फिर भी मुगालते मे रहना चाहते हैं तो इसमें उनका क्या दोष।

इस्लाम के जनक सल्लैलाहु वसैलम हजरत मुहम्मद एक असाधारण युगांतरकारी पुरुष थे। उन्होंने मानव इतिहास की धारा ही बदल दी। यदि मुहम्मद साहब न हुए होते, तो आज हमारी दुनिया बिल्कुल अलग दिखती। अपने विश्वास के लिए जान कौन दे देता है। लेकिन उनके हजारों अनुयायी 1400 सालों के बाद आज भी अपने शरीर पर बम बांधकर खुद ही फट जाते हैं। कोई व्यक्ति यदि 1400 सालों बाद भी हजारों लोगों को इस तरह प्रभावित कर सके तो उसकी महानता से इनकार नहीं किया जा सकता।

जिहाद कब तक करते रहना है…

आज बांग्लादेश के बाद भारत इस्लामिक जिहादियों के निशाने पर है। एक विभाजन 1947 में हुआ। अब दूसरे विभाजन की तैयारी चल रही है। भारत के देवबंदी, बरेलवी, शिया, अहले हदीस, दुख्तरे मिल्लत, पी.एफ.आई. आदि सभी इस्लामिक संगठन इसके लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। यह सिलसिला कभी रुकने वाला नहीं है। इस्लाम के अनुसार जिहाद तब तक करते रहना है, जब तक विश्व का आखिरी व्यक्ति भी इस्लाम कबूल न कर ले। इस्लाम के अनुसार केवल तालिबान सच्चे मुस्लिम हैं। उनका लक्ष्य पूरे विश्व को अफगानिस्तान जैसा बना देना है। ऐसा मत सोचिए कि अगर हम सब इस्लाम कबूल कर लें तो शांति हो जाएगी। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक आदि में लगभग 95 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम ही हैं परंतु वहां तो स्थिति और ख़राब है। अकेले पाकिस्तान में पिछले 10 वर्षो से हर साल धार्मिक कारणों से 1500 से 2000 लोग मारे जा रहे हैं। पिछले 20 सालों मे यह संख्या 80,000 से ऊपर पहुँच गई है। जब काफ़िर न हों तो देवबंदी के लिए बरेलवी काफ़िर है, बरेलवी के लिए देवबंदी। अहले हदीस वालों के लिए दोनों काफ़िर। फिर तीनों मिलकर शिया को काफ़िर क़रार कर देते हैं और चारों ने अहमदियों को तो काफ़िर कहकर इस्लाम से ही बाहर कर दिया है। यह सिलसिला अंतहीन है।

आजकल सोशल मीडिया में कुछ ऐसे वीडियो चल रहे हैं जिसमें मुस्लिम, बांग्लादेश में हिन्दू मंदिरों की रक्षा करते दिखाई देते हैं। वे नादान हैं। कुरान के अनसार वे मुशरिक हैं। कुरान में एक पूरा अध्याय, सूरा 3 मुशरिकों के बारे में है। मुशरिको की एक ही सजा है, “सर तन से जुदा ”|

बंटोगे तो कटोगे

हमें यदि बचना है तो जाति-पांति भूलकर एक होना पड़ेगा, अन्यथा न जाति रहेगी न धर्म। यदि हम चाहें तो इस विपत्ति को अवसर में बदल सकते हैं। इसके लिए हमें अपना नजरिया बदलना होगा। गौतम बुद्ध और महावीर जैन के प्रभाव में हम ऐसे अहिंसावादी हो गए कि हममें किसी भी अत्याचार को सहने की तो ताकत है, लेकिन उसका प्रतिरोध करने की नहीं। जबकि हमारे सभी भगवान, देवी देवता बिना शस्त्र के नहीं दिखते। हमारी तो देवियाँ भी शस्त्र के साथ ही दिखती हैं। दुर्गा तो शक्ति की ही प्रतीक हैं। हम उनकी आराधना तो करते हैं अनुसरण नही। प्रतिरक्षात्मकता हमारे जीन्स मे आ गई हैं। हम बड़े गर्व से कहते हैं कि हमने किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया। लेकिन कोई देश 1000 वर्षों तक गुलाम भी तो नहीं रहा, यह गर्व का विषय है या चिन्ता का। हमारे नेता और सेनानायक कहते हैं कि हम एक इंच भूमि भी किसी दूसरे को नहीं लेने देंगे। अरे, क्यों नहीं लेने देंगे। यदि हम कुछ वर्ग किमी एक जगह खोकर दूसरी जगह उनकी सैकड़ो वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्ज़ा कर सकें। हम अपनी सेना के हाथ पैर खुद ही बांध देते हैं।

जंबू द्वीपे, भरत खंडे, आर्यावर्ते

हमारे सभी धार्मिक अनुष्ठानों में स्थान का विवरण “जंबू द्वीपे, भरत खंडे, आर्यावर्ते” के तौर पर दिया जाता है। जंबू द्वीप है सिंगापुर से अदन तक का पूरा क्षेत्र, भरत खंड; भारत, बर्मा, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान का पूरा क्षेत्र, (स्वतंत्रता से पहले का ब्रिटिश राज्य) और आर्यावर्त आज का भारत। हमें शक्ति अर्जित करनी होगी कि पूरे जंबू द्वीप में कोई दूसरी शक्ति इस पूरे क्षेत्र मे हमारी सहमति के बगैर कुछ न कर सके। भरत खंड में रक्षा, विदेश, मुद्रा और संचार साधनों पर भारत की जिम्मेदारी होगी, बाकी मामलों में ये देश स्वत्रंत रहेंगे और आर्यवर्त (भारत) मे हमारी सार्वभौम सत्ता रहेगी। चंदबरदाई ने यूं ही नहीं कहा था ‘मत चुक्कै चौहान’।

(लेखक की पुस्तक ‘बलोचिस्तान: एक सुलगता ज्वालामुखी’ हाल में प्रकाशित। उद्योग एवं व्यवसाय के सिलसिले में चार दशकों से अधिक समय पांच महाद्वीपों में यात्रा प्रवास। रुचि का भौगोलिक क्षेत्र नील नदी और सिंध नदी के बीच का भूभाग।)