फ़िल्म समीक्षा: राधे- योर मोस्ट वॉन्टेड भाई
राजीव रंजन
कलाकार- सलमान खान, जैकी श्रॉफ, दिशा पाटनी, रणदीप हुड्डा, सुधांशु पांडेय, गोविन्द नामदेव, दर्शन जरीवाला, विश्वजीत प्रधान, गौतम गुलाटी, मेघा आकाश, अर्जुन कानूनगो, मिक्की मखीजा
निर्देशक- प्रभुदेवा
निर्माता- सलमान खान, सोहेल खान, अतुल अग्निहोत्री, जी स्टूडियो
ईद पर फिल्में रिलीज करने का विशेषाधिकार सलमान भाई का है और अपने स्टारडम की हनक में वाहियात फिल्में परोसने का विशेषाधिकार भी उन्हीं को है। तो अपने विशेषाधिकारों के साथ इस ईद पर भी वह पधारे ‘राधे- योर मोस्ट वॉन्टेड भाई’ के साथ। नाम से यह ‘वॉन्टेड’ सीरीज की दूसरी फिल्म लगती है, हालांकि न तो यह ‘वॉन्टेड’ का सीक्वल है और न प्रीक्वल। बस दोनों फिल्मों में यही समानता है कि फिल्म का हीरो पुलिस ऑफिसर है और अपराधियों का काल है। दोनों फिल्मों में खूब मारधाड़ भी है। खैर बात करते हैं ‘राधे’ की।
मुंबई ड्रग्स की चपेट में है। युवा ड्रग्स के नशे में बर्बाद हो रहे हैं, ड्रग्स के कारण मर रहे हैं। दिल्ली से आया एक खुंखार ड्रग डीलर राणा (रणदीप हूड्डा) मुंबई में ड्रग्स के धंधे को और फैला देता है। मुंबई पुलिस की खूब बदनामी हो रही है। अब इतने भयानक रूप से फैले ड्रग्स के कारोबार को खत्म करना किसी सामान्य पुलिस अधिकारी और उसकी टीम के बस का तो है नहीं। तो इसके लिए खास पुलिस अधिकारी की जरूरत है और जाहिर है, वह सुपरकॉप राधे (सलमान खान) है। उसे ड्रग्स माफिया को खत्म करने का जिम्मा दिया जाता है। उसका सीनियर है अविनाश (जैकी श्रॉफ), जिसके कैरेक्टर का कुछ पता ही नहीं चलता। अविनाश की बहन है दिया (दिशा पाटनी), जो राह चलते राधे से टकरा जाती और धीरे-धीरे उससे प्यार करने लगती है। अब राधे एक साथ दो काम करने में जुट जाता है। एक, ड्रग्स माफिया को खत्म करने और दूसरा, दिया के साथ रोमांस करने तथा गाना गाने में।
कई बार अच्छी कहानी खराब पटकथा की वजह से प्रभावहीन हो जाती है, तो कई बार साधारण कहानी चुस्त पटकथा की वजह से जानदार बन जाती है। ‘राधे’ के मामले में यह तय करना लगभग असंभव है कि कहानी ने पटकथा का कबाड़ा किया या पटकथा ने कहानी की ऐसी-तैसी की। ड्रग्स को लेकर ढेरों फिल्में तथा टीवी धारावाहिक बन चुके हैं और इनमें से कई दर्शकों पर प्रभाव छोड़ने में भी सफल रहे हैं। लेकिन ‘राधे’ एकदम फ्लैट पिच की तरह है, जहां गेंदबाज कितनी भी कोशिश कर ले, सफल नहीं हो पाता। बल्लेबाज खुद ही उकता कर विकेट फेंक दे तो और बात है। ‘राधे’ में कोई रोमांच नहीं है, एकाध ट्विस्ट है भी, तो कोई प्रभाव नहीं छोड़ता। इसमें बस हिंसा है और सलमान हैं। अब इतना कहने के बाद प्रभुदेवा के निर्देशन के बारे में कुछ कहने को रह ही नहीं जाता। बतौर निर्देशक, उन्होंने कोई कालजयी फिल्में तो नहीं बनाई हैं, लेकिन कुछ मनोरंजक फिल्में जरूर बनाई हैं। उस लिहाज से देखें, तो यह उनकी अब तक की सबसे खराब फिल्म है।
सलमान खान अमूमन जैसा अभिनय करते हैं, उन्होंने इस फिल्म में भी वैसा ही किया है। उसमें कोई कमी बेशी नहीं की है उन्होंने। इस मामले में वे बहुत वे अटल (कन्सिस्टेन्ट) रहते हैं। जैकी श्रॉफ न भी होते इस फिल्म में, तो क्या होता। हो सकता है, उनकी कुछ इज्जत बच जाती। न ढंग का किरदार और न अभिनय का कोई स्कोप। दिशा पाटनी को निर्माता अमूमन उनकी खूबसूरती और कुछ गाने, डांस आदि के लिए लेते हैं। तो दिशा ने अपना काम ठीक से कर दिया है। अभिनय के लिए वह सिर खपाती नहीं। जब सुंदरता और नाच-गाने आदि से ही काम चल जाए, तो उसके लिए क्या सिर खपाना! और हां, निर्माता-निर्देशक उनसे इसकी अपेक्षा भी नहीं रखते। रणदीप हुड्डा तो इस तरह की भूमिकाओं और फिल्मों के लिए ही बने हैं। इस तरह के किरदारों में वे उतर जाते हैं, लेकिन इस फिल्म में वह भी निराश करते हैं। बाकी किसी अन्य कलाकार का किरदार या अभिनय भी ऐसा नहीं है, जिसके बारे में कुछ खास कहा जा सके।
फिल्म के संवादों में भी कोई ऐसी बात नहीं है, जिसके बारे में कोई बात की जा सके। कॉमेडी का कुछ तड़का लगाने का कोशिश की गई है, लेकिन हंसी नहीं आती। गीत-संगीत के बारे में तो पूछिए ही मत। गाने के बोल क्या था, धुन कैसी थी, यह बिल्कुल याद नहीं। गाना खत्म होने से पहले ही वह चित्त से उतर जाता है। और भी कुछ याद रखने लायक है इस फिल्म में? …याद नहीं आता। जरा, ठहरिये… फिल्म में सारी बातें खराब ही नहीं हैं। एक बहुत अच्छी बात भी है, फिल्म केवल दो घंटे में खत्म हो जाती है।
काठ की हाड़ी बार-बार आग पर नहीं चढ़ सकती। ये कहावत पता नहीं कब से चली आ रही है और बिल्कुल सही भी है, लेकिन भाई तो भाई हैं, वह कुछ भी कर सकते हैं। वह हर बार एक जैसी काठ की हाड़ी ले आते हैं और आग पर चढ़ा देते हैं। अब जिसको जो बिगाड़ना, हो बिगाड़ ले। मैं समीक्षा लिख कर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बस भाई के चाहने वालों से सहानुभूति जता सकता हूं। सलमान खान के प्रशंसकों का भी मनोरंजनाधिकार है। उन्हें भाई का प्रशंसक होने की सजा ‘राधे’ के रूप में नहीं दी जा सकती। वे ‘बजरंगी भाईजान’ जैसी फिल्मों के भी हकदार हैं। शायद भविष्य में भाई की ओर से उन्हें ‘बजरंगी भाईजान’ जैसा कोई तोहफा मिल जाए। तब तक “बेटर लक नेक्स्ट टाइम” भाई लोगों।