अब मायावती की पार्टी ने प्रदेश के 17 नगर निगमों में 11 मेयर उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय के दिए हैं। साफ है कि मायावती अब ब्राह्मणों की जगह मु्स्लिमों को देने की रणनीति पर काम कर रही हैं। शायद उन्हें लगता है कि ब्राह्मण भाजपा का साथ छोड़कर आने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में मुस्लिमों के जरिए ही वह अपने बेस को मजबूत कर सकती हैं। यदि मायावती का यह फॉर्मूला सफल रहा तो फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी वह इसे आजमा सकती हैं। बसपा ने 17 कैंडिडेट्स में से 11 मुस्लिम उतारे हैं तो वहीं तीन ओबीसी चेहरों और दो अनुसूचित जाति के उम्मीदवार दिए हैं।
ओबीसी कोटे की सीटों पर भी मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए
यही नहीं ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों पर भी मुस्लिम कैंडिडेट उतारकर मायावती ने साफ संकेत दिया है कि वह अब नई सोशल इंजीनियरिंग में जुटी हैं। 2007 में ब्राह्मणों को उन्होंने बड़े पैमाने पर टिकट दिए थे और जोरदार जीत हासिल की थी। तब उनकी सोशल इंजीनियरिंग की काफी चर्चा हुई थी। हालांकि उसके बाद मायावती कभी कोई चुनाव नहीं जीत सकीं। ऐसे में माना जा रहा है कि अब वह ब्राह्मणों की बजाय मुस्लिमों की ओर रुख कर गई हैं। चर्चा यह भी है कि मायावती को इससे कितना फायदा होगा पता नहीं, लेकिन सपा को जरूर नुकसान हो सकता है।
मेयर चुनाव में नहीं उतारा एक भी ब्राह्मण चेहरा
मेयर उम्मीदवार के तौर पर बसपा ने एक भी ब्राह्मण चेहरा नहीं उतारा है। सवर्ण समाज से उन्होंने सिर्फ नवल किशोर नाथानी को टिकट दिया है, जो गोरखपुर में मेयर उम्मीदवार होंगे। वह अग्रवाल वैश्य समाज से आते हैं। यही नहीं दलित उम्मीदवार भी मायावती ने सिर्फ दो आरक्षित सीटों पर ही उतारे हैं। ये सीटें हैं- आगरा और झांसी। इसके अलावा कानपुर, अयोध्या और वाराणसी सीटों से बसपा ने ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं। इसके अलावा ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित 4 सीटों सहारनपुर, मेरठ, शहाजहांपुर और फिरोजाबाद से मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए हैं।
गाजियाबाद और लखनऊ में भी मुस्लिम उम्मीदवार
इन उम्मीदवारों में सहारनपुर से खदीजा मसूद, मेरठ से हसमत अली, शाहजहांपुर से शागुफ्ता अंजुम और फिरोजाबाद से रुख्साना बेगम शामिल हैं। इसके अलावा गाजियाबाद से भी बसपा ने निसारा खान को उतारा है। लखनऊ से शाहीन बानो को मुकाबले में उतार दिया है। अलीगढ़, बरेली, मथुरा, प्रयागराज और मुरादाबाद में भी बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार ही दिए हैं।(एएमएपी)