आजकल युवाओं में मानसिक परेशानी के चलते यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है। इसमें भूख कम लगाना, नींद नही आना या बहुत अधिक नींद आना शामिल है। यह समस्या यूपी के फिरोजाबाद में अधिक देखने को मिल रही है। युवाओं में मानसिक रोग ज्यादा हावी हो रहा है। एक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि युवाओं को अकेलेपन की वजह से ये बीमारी हो रही है। वहीं अस्पताल में रोजाना युवा मानसिक बीमारी के इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।इस संबंध में मानसिक रोग चिकित्सक डॉ. अरुशिखा सिंह ने बताया कि हाल ही में एक महीने की उनकी ओपीडी में देखा गया कि उनके पास अधिकतम युवा अपनी मानसिक परेशानियों को लेकर दवा लेने आ रहे हैं। पिछले एक महीने की ओपीडी में उन्होंने लगभग 850 मरीजों को देखा, जिसमें 60 फीसदी मरीज युवा थे। जिनकी उम्र 25 से 40 साल थी, जिनका चार महीने से भी ज्यादा समय से इलाज चल रहा था।
युवाओं में अकेलेपन के कारण होती है ये बीमारी
उन्होंने बताया कि युवाओं में अकेलेपन के कारण यह बीमारी घर कर रही है। वैसे तो अकेलापन किसी के न होने पर महसूस होता है, लेकिन जब आप भीड़ में भी अपने आप को अकेला पाते हैं तो आप मानसिक रोगी बन जाते हैं और इसके कई सारे कारण हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं में सबसे ज्यादा इस बीमारी से लड़कियां परेशानी हो रही हैं। फिर मोबाइल की लत, नशे की लत का भी युवा शिकार हो रहे हैं। मानसिक बीमारी में नीद बिल्कुल कम या बहुत ज्यादा आने लगती, भूख कम लगती है इसके अलावा और भी लक्षण दिखाई देते हैं।
आसपास के लोगों से मिलना जुलना शुरू करें
डॉक्टर अरुशिखा का कहना यह भी रहा कि अगर आपको भी लगता है कि आप अकेलनेपन का शिकार हो रहे हैं, तो आप तुरंत अपने आसपास के लोगों से मिलना जुलना शुरू कर दें और सभी से खुलकर बातचीत करें। ताकि इस बीमारी से बचा जा सके। इस बिमारी को लेकर ऑनलाइन कंसल्टेशन बुक करने वाली कंपनी practo कंपनी का सर्वे कहता है कि पिछले से पिछले साल की तुलना में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां हर हालत में बढ़ी हुई दिखाई दे रही है । ये डाटा यह बताने के लिए पर्याप्त है कि हर साल यह मानसिक स्वास्थ्य की समस्या बढ़ रही हैं. पिछले एक साल में मानसिक रोग के लिए डॉक्टर से अपॉइंटमेंट 29 परसेंट बढ़ी हैं।
दिल्ली में डॉक्टरी सलाह लेने वाले लोग हुए दोगुने
कंपनी का डाटा बताता है कि किसी भी शहर के मुकाबले दिल्ली में डॉक्टरी सलाह लेने वाले लोग दोगुने हैं। दूसरा नंबर बेंगलुरु का आता है जहां से 19 प्रतिशत लोगों की बुकिंग चिकित्सक के पास पाई गई । मुंबई से 11 प्रतिशत और हैदराबाद से 10 प्रतिशत बुकिंग की गई। इसके बाद चेन्नई और पुणे 8-8 प्रतिशत जबकि भारत के बाकी हिस्सों से कुल 9 प्रतिशत कंसल्टेशन बुक की गई मिली। इनके सर्वे में कुल कंसल्टेशन यानी डॉक्टरी सलाह में से 55 प्रतिशत सलाह लेने वाले 25 से 34 वर्ष के बीच के लोग थे। इसके बाद 35 से 44 वर्ष के 26 प्रतिशत, 18 से 24 वर्ष के 9 प्रतिशत और 45 से 54 वर्ष के 6 प्रतिशत लोगों ने चिकित्सकों को अपने मन के घाव दिखाए। कुल सलाह लेने वालों में 67 प्रतिशत पुरुष तो 33 प्रतिशत महिलाएं थीं।
इसी प्रकार से एक अन्य सर्वे में सामने आया है कि देश के 9-17 वर्ष की आयु के आधे से अधिक भारतीय युवा प्रतिदिन 3 घंटे से अधिक समय सोशल मीडिया और ऑनलाइन र्गेंमग पर बिताते हैं। इस सर्वे में देश के करीब 50,000 माता-पिता शामिल थे। सर्वे में पाया गया कि 9 से 17 वर्ष की आयु के दस में से प्रत्येक छठा युवा प्रतिदिन तीन घंटे से अधिक सोशल मीडिया या र्गेंमग प्लेटफॉर्म पर बिताते हैं। अकेले महाराष्ट्र से 17 फीसदी माता-पिता ने कहा कि उनके बच्चे हर दिन छह घंटे से अधिक समय तक ऑनलाइन रहते हैं। यही जवाब देश के 22 फीसदी उत्तरदाताओं ने भी दिए। केवल 10 फीसदी माता-पिता ने कहा कि सोशल मीडिया या र्गेंमग पर समय बिताने के बाद उनका बच्चा खुश महसूस करता है।
नकारात्मक प्रभाव डाला रहा सोशल मीडिया
अध्ययन से यह भी बात सामने आई है कि सोशल मीडिया सकारात्मक प्रभावों की तुलना में अधिक नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स के एक अन्य सर्वे से पता चला है कि सोशल मीडिया के साथ लंबे समय तक जुड़ाव से आक्रामकता, अधीरता, अतिसक्रियता और अवसाद जैसे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की आशंका बढ़ जाती है। इसी तरह की रिपोर्ट डब्ल्यूएचओ की है जो यह मानती है कि अकेलापन गंभीर स्वास्थ्य विकार के तौर पर उभरती स्थिति है, युवाओं में इसका जोखिम काफी तेजी से बढ़ा है। भारत सहित कई देशों में इसका खतरा हाल के वर्षो में काफी बढ़ा है, विशेषतौर पर कोरोना महामारी के बाद लोनलीनेस के कारण होने वाली मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की समस्या अब ज्यादा रिपोर्ट की जा रही है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेलेपन की स्थिति हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए उसी प्रकार से हानिकारक है, जैसे एक दिन में 15 सिगरेट पीना। इतना ही नहीं, इसके दुष्प्रभाव मोटापे और शारीरिक निष्क्रियता के कारण होने वाली समस्याओं से भी अधिक हो सकते हैं।
अकेलापन स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम भरा
मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं भारत में, खासकर शहरी इलाकों में अकेलापन पिछले कुछ वर्षों में एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम बनकर उभरा है। कोरोना महामारी के दौरान सोशल आइसोलेशन ने इसे और भी ट्रिगर कर दिया है। हैरत की बात ये है कि इनमें से अधिकतर लोग इस समस्या से अनजान हैं कि उन्हें अकेलेपन की दिक्कत है, क्योंकि इसके कारण होने वाली मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का निदान नहीं हो पाता है और शारीरिक लक्षणों को कोई और बीमारी मानकर लंबे समय तक उपचार किया जाता रहा है। मौजूदा समय में अवसाद के ज्यादातर मामलों के लिए अकेलेपन को प्रमुख कारण के तौर पर देखा जा रहा है। यह समस्या हृदय रोग, डिमेंशिया से लेकर स्ट्रोक, अवसाद, चिंता और समय से पहले मौत के जोखिम को भी बढ़ाने वाली हो सकती है। व्यक्तिगत तौर पर भी सभी लोगों को इस स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। अगर आप भी अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे हैं तो इसे गंभीरता से लेते हुए मनोरोग विशेषज्ञों की सलाह जरूर लें।
लाइफस्टाइल में करना होगा बदलाव
एमपावर के फाउंडर और चेयरपर्सन नीरजा बिड़ला ने बताया कि युवा अपने लाइफस्टाइल में कुछ मामूली बदलाव करके अपने मेंटल हेल्थ को सुधार सकते हैं। सोशल मीडिया का लंबे समय तक इस्तेमाल आपमें उदासी, अकेलापन, ईष्या, चिंता और असंतोष जैसी भावनाएं आ सकती हैं, ऐसे में इससे बचने के लिए आप ‘सोशल मीडिया डिटॉक्स’ कर सकते हैं। हमें परिवार और दोस्तों के साथ भी समय बिताते वक्त भी अपने फोन से दूरी रखनी चाहिए, जैसा कि आप किसी कॉरपोरेट मीटिंग के समय करते हैं। रात में सोते समय फोन से दूरी आपकी नींद की क्वालिटी को भी बढ़ाती है और सुबह फ्रेश उठते हैं।
इफेक्टिव स्ट्रेस मैनेजमेंट से होगा तनाव कम
इस पर भी आपको ऐसा लग सकता है कि ऑफिस और घर में होना वाला स्ट्रेस आपके कंट्रोल में नहीं है, लेकिन अपने स्ट्रेस को कम करने के लिए आप कभी भी स्थिति को अपने हाथ में ले सकते हैं। इफेक्टिव स्ट्रेस मैनेजमेंट आपको जीवन में तनाव कम करने में मदद करता है। इसके साथ ही काम, रिश्ते, आराम और मनोरंजन आदि के लिए भी समय निकाल सकते हैं। अगर आप समझ जान जाएं कि जिंदगी का हर दिन एक गिफ्ट है तो आप अपनी जिंदगी को गंभीरता से जी रहे हैं। सच यही है कि हम अपने रोजमर्रा की जिंदगी में राजधानी एक्सप्रेस की स्पीड से भाग रहे हैं और हर किसी को किसी न किसी ने आगे निकलने में बहुत दबाव है । प्रतिस्पर्धा अच्छी है, लेकिन कभी कभी खुद को धीमा करना महत्वपूरण है। खुद का मेंटल हेल्थ ठीक करने के लिए आराम लें और जब जरूरत लगे छुट्टी ले लें।(एएमएपी)