मुंबई दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन के विकल्प के तौर पर ग्रीन ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि पर्यावरण को नुकसान से बचाया जा सके।  आने वाले दशकों में कोयले की ऐसी खदानें बंद कर दी जाएंगी जहां सैकड़ों खनन श्रमिक काम करते हैं। ये खदानें इसलिए बंद कर दी जाएंगी क्योंकि इनके भीतर से कोयला निकाला जा चुका है और देश कोयले की जगह पर स्वच्छ और कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल कर रहे हैं ।

अमेरिकी थिंक टैंक ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जेईएम) द्वारा संकलित रिपोर्ट के मुताबिक लाखों लोगों की नौकरी जाने की प्रमुख वजह सस्ती सौर और ऊर्जा उत्पादन की ओर बाजार का बदलाव और कोयले के बाद अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के प्रबंधन के लिए योजना की कमी होगी।  जीईएम ने चेतावनी दी है कि जिन खदानों के बंद होने की संभावना है, उनमें से अधिकांश के पास उन परिचालनों के जीवन को बढ़ाने या कोयले के बाद अर्थव्यवस्था में परिवर्तन का प्रबंधन करने के लिए कोई योजना नहीं है।

जीईएम के माइन ट्रैकर की प्रोजेक्ट मैनेजर डोरोथे मेई ने कहा कि कोयला खदानों का बंद होना तो निश्चित है लेकिन श्रमिकों की आर्थिक और सामाजिक दिक्कतों को लेकर पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकते। उन्होंने कहा है कि सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं बनाने की जरूरत है कि श्रमिकों को ऊर्जा परिवर्तन से नुकसान न हो।

उल्‍लेखनीय है कि जीईएम ने दुनिया भर में 4,300 सक्रिय और प्रस्तावित कोयला खदान परियोजनाओं को देखा, जिनमें लगभग 27 लाख श्रमिक काम करते हैं।  इसमें पाया गया कि 2035 से पहले ऑपरेशन बंद करने वाली खदानों में 4,00,000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं ।  जीईएम का अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने की योजना लागू की गई तो दुनिया भर में सिर्फ ढाई लाख खनन श्रमिकों की जरूरत पड़ेगी, जो मौजूदा कार्यबल के 10 प्रतिशत से भी कम है। जीईएम का अनुमान है कि दुनिया के सबसे बड़े कोयला उद्योग देश चीन, जो वर्तमान में 15 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है, उसको सबसे ज्यादा झटका लगेगा. चीन के शांक्सी प्रांत में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक संख्या में नौकरियां जाएंगी।  वहां 2050 तक 2,41,900 नौकरियां जा सकती हैं।  कोल इंडिया में सदी के मध्य तक 73,800 नौकरियां खत्म हो सकती हैं।

भारत कार्बन उत्सर्जन करने वाले सबसे बड़े देशों में से एक है. चीन, अमेरिका और पूरे यूरोपीय संघ के बाद भारत ही सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है । अपनी बिजली जरूरतों का 75 फीसदी हिस्सा वह कोयले से पूरा करता है जबकि कुल ऊर्जा जरूरतों का 55 फीसदी आज भी कोयले से आता है ।  इसी साल की शुरूआत में दिल्ली स्थित थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायर्नमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आईफॉरेस्ट) ने एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत अगर कोयले का इस्तेमाल बंद कर दे तो उसके यहां 50 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे, लेकिन अगले 30 साल में अगर भारत 900 अरब डॉलर यानी करीब 740 खरब रुपये खर्च करे तो किसी की नौकरी नहीं जाएगी और भारत कार्बन उत्सर्जन मुक्त स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकेगा।

इस रिपोर्ट में कहा गया कि सबसे बड़ा निवेश स्वच्छ ऊर्जा पैदा करने वाले ढांचे के विकास में होगा. रिपोर्ट का अनुमान है कि 2050 तक इसके लिए 472 अरब रुपये खर्च करने होंगे ।  लोगों को स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में नौकरी उपलब्ध कराने के कुल खर्च का मात्र दस फीसदी यानी करीब नौ अरब डॉलर होगा ।  रिपोर्ट के मुताबिक 900 अरब डॉलर में से 600 अरब डॉलर तो नए उद्योगों और ढांचागत विकास में निवेश के तौर पर खर्च होंगे जबकि 300 अरब डॉलर प्रभावित समुदायों की मदद में खर्च करने होंगे।

बात भारत की

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है, जहां चीन के शांझी प्रांत में काम कर रहे कोयला खदान कर्मियों की कुल संख्या के लगभग आधे हिस्से के बराबर श्रमिक काम करते हैं। कोल इंडिया आधिकारिक रूप से अपनी कोयला खदानों में लगभग 3,37,400 लोगों को रोजगार दे रही है। हालांकि कुछ अध्ययनों के मुताबिक स्थानीय खनन सेक्टर में हर प्रत्यक्ष कर्मचारी के लिए अनौपचारिक रूप से चार कर्मचारी काम कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि भारत जैसे देश, जिसे कोयला उत्‍पादन के चरम वाले वर्ष के बारे में कोई निर्णय लेना अभी बाकी है और जो अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अपना कोयला उत्‍पादन बढ़ा रहा है, उसे अपने कामगारों को खदानें बंद होने का झटका सहन करने में सक्षम बनाने और उन्‍हें कहीं और रोजगार देने के लिये एनर्जी ट्रांज़िशन नीतियों पर आगे बढ़ने की जरूरत होगी।

हालांकि भारत जैसे देशों के लिए एक मददगार स्थिति यह है कि यहां रिन्यूबल एनर्जी उद्योग हर साल रोजगार के नए अवसर जोड़ रहा है। सितंबर 2023 के अंत में जारी की गई आईआरईएनए की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में भारत में रिन्यूबल एनेर्जी क्षेत्र में रोजगार के करीब 988000 अवसर उत्पन्न हुए। इनमें से केवल वित्त वर्ष 2022 में ही भारत के रिन्यूबल एनर्जी उद्योग ने रोजगार के करीब 105400 अवसर जोड़े। भारत रिन्यूबल एनर्जी क्षमता की स्थापना की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। ऐसे में रिन्यूबल एनर्जी (स्थापना, संचालन और रखरखाव) के क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में और बढ़ोत्तरी होने जा रही है। हालांकि कोई जरूरी नहीं है कि जिन स्थानों पर कोयला खदानों में काम करने वाले लोगों के रोजगार छूट जाएंगे उन सभी को रिन्यूबल एनेर्जी क्षेत्र के नए रोजगार मिल जाएंगे, लिहाजा व्यापक एनर्जी ट्रांज़िशन नीतियों की सख्त जरूरत है। हालांकि कुछ अध्ययनों में यह भी दावा किया गया है कि स्थानीय खनन सेक्टर में हर प्रत्यक्ष कर्मचारी के लिए अनौपचारिक रूप से चार कर्मचारी काम कर रहे हैं।

सरकारी स्वामित्व वाली ‘कोल इंडिया’ दुनिया की ऐसी कोयला उत्पादक कंपनी है जो वर्ष 2050 तक 73800 प्रत्यक्ष श्रमिकों की सबसे बड़ी छंटनी कर सकती है। इससे यह बात स्पष्ट रूप से रेखांकित होती है कि सरकारों को कोयला श्रमिकों को इस रूपांतरण को अपनाने की योजनाओं में खुद को अनिवार्य रूप से शामिल रखना होगा।

कोयला क्षेत्र के अप्रत्याशित भविष्य की जिम्मेदारी भी कोयला उद्योग क्षेत्र के कंधों पर है। जीईएम ने पाया है कि आने वाले दशकों में बंद होने जा रही ज्यादातर खदानों में उनके परिचालन की समयसीमा को बढ़ाने या कोयले का प्रयोग बंद करने के बाद की अर्थव्यवस्था में रूपांतरण का इंतजाम करने की कोई योजना नहीं है।

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विशेषज्ञों की राय

डायरेक्टर और जस्ट ट्रांजिशन एक्सपर्ट संदीप पई का कहना है, ऊर्जा संक्रमण के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों को समझने के लिए इस प्रकार का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से, डेटा का यह स्तर दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन श्रमिकों के लिए उचित संक्रमण नीतियों को आकार देने में एक लंबा रास्ता तय करेगा। उदाहरण के लिए, इस प्रकार की बेसलाइन डेटा जीवाश्म ईंधन उद्योग में श्रमिकों को स्थानांतरित करने के लिए आवश्यक रोजगार सृजन के पैमाने का अनुमान लगाने में मदद कर सकता है।

भारतीय प्रबंधन संस्थान में प्रोफेसर, रूना सरकार कहती हैं, “कोयले के इर्द-गिर्द एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था बनाने के लिए काफी काम किया जा रहा है, जिससे यह जाहिर होता है कि एक कोयला खनन टाउनशिप जल्द ही कोयले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। आखिरकार हर किसी को यह ध्यान रखना चाहिए कि कोयले के मामले में समृद्ध क्षेत्र उनमें से नहीं है जहां सूरज चमकता है या प्रचुर मात्रा में हवा बहती है। इससे खदान बंद होने के परिणाम स्वरुप क्षेत्रीय असंतुलन के बढ़ने का संकेत मिलता है। इसके लिए एनर्जी ट्रांज़िशन के इर्द-गिर्द ज्यादा व्यापक चर्चा की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह क्षेत्रीय रूप से संतुलित सतत और न्यायपूर्ण हो।

रूना सरकार का कहना है कि कोयला खदानें बंद होने से भारत में सबसे अधिक प्रभावित पश्चिम बंगाल के कोयला खनन क्षेत्र हैं। खदानें बंद होने से भारत अगले दो दशकों में 60 हजार से अधिक खदान श्रमिकों का रोजगार जा सकता है कोल इंडिया में 2050 तक 73 हजार 800 नौकरियाँ खतरे में हैं।

ग्लोबल कोल माइन ट्रैकर के प्रोजेक्ट मैनेजर ने दोरोथी मेई ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, कोयला खदानों का बंद होना लाजमी है लेकिन उनसे जुड़े हुए कामगारों के लिए रोजी-रोटी का संकट और सामाजिक तनाव उनकी तकदीर का हिस्सा ना बने, ऐसा करना भी मुमकिन है। उनके लिए रूपांतरण की लागू की जा सकने योग्य योजनाएं अमल में लाई जा रही हैं। मिसाल के तौर पर स्पेन में डीकार्बनाइजेशन के हो रहे प्रभावों की नियमित रूप से समीक्षा होती रहती है। अन्य देशों की सरकारों को अपनी न्यायसंगत एनर्जी ट्रांज़िशन संबंधी रणनीतियां तैयार करते वक्त स्पेन की इस कामयाबी से प्रेरणा लेनी चाहिए।

आगे, कोल प्रोग्राम डायरेक्टर रायन ड्रिस्कल टेट का कहना है, जस्ट ट्रांजिशन महज लफ्फाजी साबित ना हो, यह सुनिश्चित करने के लिए हमें कामगारों को अपने एजेंडा में सबसे ऊपर रखना होगा। बाजार और प्रौद्योगिकियां जाहिर तौर पर एनेर्जी ट्रांज़िशन को तरजीह दे रही हैं लेकिन हमें कोयला खननकर्मियों और उनके समुदायों की विकट चिंताओं का हल निकालने के बारे में भी मुस्तैदी दिखानी होगी।

शोधकर्ता टिफनी मींस का मानना है, कोयला उद्योग के पास ऐसी खदानों की एक लंबी फेहरिस्त है जो निकट भविष्य में बंद कर दी जाएंगी। इनमें से अनेक कोयला खदानें सरकार के स्वामित्व वाली हैं और उनसे सरकार का बड़ा सरोकार भी है। सरकारों को स्वच्छ ऊर्जा वाली अर्थव्यवस्था में रूपांतरण से प्रभावित होने वाले कामगारों और उनके समुदायों के लिए एक प्रबंधित रूपांतरण सुनिश्चित करने की अपने हिस्से की जिम्मेदारी को ईमानदारी से उठाने की जरूरत है। (एएमएपी)