आपका अख़बार ब्यूरो।
कुछ दिनों से हम देख रहे है कि भारतीय वायुसेना के विमान अफगानिस्तान में फंसे भारतीयो को दुशाम्बे के रास्ते काबुल से लेकर आ रहे हैं। 16 अगस्त से अब तक आठ सौ से ज्यादा लोग भारत लाये जा चुके हैं। देखने और सुनने मे यह काफी आसान लगता है। लेकिन इसके पीछे भारत सरकार की कितनी मेहनत और कितनी कूटनीति है वह भी हमें जानना चाहिये। विभिन्न विभागों से जुड़े अधिकारियों और कर्मियों ने इस चुनौती को जिस तत्परता से स्वीकार किया है वह देशभक्ति की अद्भुत मिसाल है। हम अपने पाठकों को यहाँ जो जानकारी दे रहे हैं वह सोशल मीडिया पर वायरल संदेशों पर आधारित है। कई जानकार सूत्रों ने अपनी पहचान जाहिर न करने का अनुरोध करते हुए उसे सही बताया है। हालांकि किसी सरकारी स्रोत से इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है।
सीधा प्लेन रुट नहीं
सबसे पहली बात यह कि अफगानिस्तान जाने के लिये हमारे पास कोई सीधा प्लेन रुट नही है। इसके लिये सबसे शार्ट कट रुट या छोटा वायुमार्ग जो है, वह पाकिस्तान से होकर जाता है। लेकिन हमेशा की तरह पाकिस्तान इसमे बड़ा अड़ंगा है। इसलिये भारतीय विमानों को लंबा रूट लेकर ईरान से होकर जाना पड़ता है। इसके लिये भारत सरकार ने सबसे पहले ईरान से भारतीय वायुसेना के विमानों के लिये एयर स्पेस के इस्तेमाल की मंजूरी हासिल की। यह मंजूरी हासिल करना इतना आसान काम नही था क्योंकि कोई भी देश दूसरे देश की वायुसेना को अपने एयर स्पेस के इस्तेमाल की अनुमति नही देता है। लेकिन भारत अपने अनूठे राजनय और कूटनीति की बदौलत ईरान से यह अनुमति हासिल करने में कामयाब रहा।
दूसरा पेंच
इस अनुमति को हासिल करने के बाद भी वहाँ एक दूसरा पेंच था कि भारतीय प्लेन सीधे काबुल नही उतर सकते थे। क्योंकि तालिबान के साथ भारत के सम्बंध कभी अच्छे नही रहे हैं इसलिये भारत सरकार तालिबान पर इतना भरोसा नहीं कर सकती थी कि वायुसेना के प्लेन को वहाँ ज्यादा देर तक खड़ा रख सके। दूसरी तरफ काबुल एयरपोर्ट में मची अफरातफरी और भारी भीड़ के मद्देनजर भी यह संभंव नही था कि भारतीय प्लेन वहाँ खड़े रहें।
ताजिकिस्तान के एयरपोर्ट का सहारा
इसके हल के लिये भारत सरकार ने एक और रास्ता निकाला उसने इसके लिये ताजिकिस्तान के एयरपोर्ट का सहारा लिया। एक बार फिर भारतीय कूटनीति सफल रही और भारतीय वायुसेना के प्लेन को ताजिकिस्तान एयरपोर्ट के इस्तेमाल की अनुमति मिल गयी।
भारतीयो को काबुल एयरपोर्ट कैसे पहुंचाएं
अब भारत सरकार के पास दूसरी परेशानी यह भी थी कि भारतीयो को काबुल एयरपोर्ट तक कैसे पहुँचाया जाये क्योंकि तालिबान के कब्जे के बाद तालिबान लड़ाको ने जगह जगह अपनी चेक पोस्ट खड़ी कर दी हैं। वे काबुल एयरपोर्ट आने वाले हर व्यक्ति कि न केवल पूरी तलाशी लेते है बल्कि उसमे अंडगा भी लगाते हैं। दूसरी तरफ काबुल एयरपोर्ट पर मची अफरा-तफ़री के कारण भारतीयो का काबुल एयरपोर्ट पर एक साथ इकट्ठा होना भी सम्भव नही था।
गैराज का इंतजाम
आखिरकार भारतीय अधिकारियों ने इसका हल भी ढूंढ निकाला। उन्होंने काबुल एयरपोर्ट के पास ही एक बड़े से गैराज का इंतजाम किया जहां वे लगभग डेढ़ दो सौ भारतीयों को एक साथ इकट्ठा कर सकते थे।
भारतीयों को इकठ्ठे करने का काम
अब रोजाना सबसे पहले भारतीयों को गैराज में इकठ्ठा किया जाता है। भारतीयों को इकठ्ठे करने का यह काम रात दिन चलता है। इसके लिये भारतीय अधिकारी खुद अपनी गाड़ी लेकर उस स्थान में पहुँचते है जहाँ पर भारतीय ठहरे होते हैं। उन्हें लेकर वह जगह जगह बनी तालिबानी चेक पोस्टों पर माथा पच्ची करते हुए उन्हें काबुल एयरपोर्ट से सटे गैराज में पहुँचाते हैं।
अपने देश की ओर
जब गैराज में पर्याप्त भारतीय इकट्ठे हो जाते हैं तो इसकी सूचना भारतीय अधिकारी कजाकिस्तान में खड़े भारतीय वायुसेना के अधिकारियों और काबुल एयरपोर्ट में तैनात अमेंरिकी अधिकारियों तक पहुचाते हैं। उल्लेखनीय है कि काबुल एयरपोर्ट का एटीएस कंट्रोल और सिक्योरिटी कंट्रोल अमेरिकी सेना के हाथ में है। इसके बाद अमेरिकी सेना द्वारा भारत के प्लेन को उतरने के लिये क्लियरेन्स दी जाती है। तब तजाकिस्तान एयरपोर्ट पर खड़ा भारतीय वायुसेना का विमान वहाँ से उड़कर काबुल पहुँचता है। प्लेन की लैंडिंग होते होते गैराज से सभी भारतीय अमेरिकी सेना की गाड़ी में एयरपोर्ट के अंदर पहुँच जाते हैं। उन्हें तुरत फुरत वहाँ खड़े भारतीय वायुसेना के प्लेन में चढ़ा दिया जाता है। पंद्रह मिनट के अंदर अंदर ही भारतीय वायुसेना का यह प्लेन भारतीयो को लेकर अपने देश की ओर उड़ चलता है। भारतीय विमान पहले ताजाकिस्तान पहुंचता है और उसके बाद दिल्ली के लिए उड़ान भरता है।