Anil Singhअनिल सिंह 

घाव भरने की प्रक्रिया का आरंभ किया- आइंस्टाइन ने। उन्होंने कहा, “Religion without science is blind and Science without religion is lame.” (‘विज्ञान के बिना धर्म अंधा है और धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है’) विज्ञान हमेशा तथ्य की जानकारी पर आश्रित  होता है। वैज्ञानिक का काम यह है कि वह वस्तुओं को उस रूप में ही अध्ययन करें जिस रूप में वे हैं। वह उन वस्तुओं का विश्लेषण करता है, परीक्षा करता है और अंत में नाना वस्तुओं के विश्लेषण और परीक्षण के बाद उनके सामान्य धर्मों का पता लगाता है।


विज्ञान भौतिक जगत की बुद्धिगम्य व्याख्या

विज्ञान तथ्यों  के भीतर से उनके सामान्य धर्मों का पता लगाकर उनमें भी सामान्यता खोजता है- इस प्रकार वह जागतिक प्रपंच के भीतर से एक सामान्य सत्य या ‘ऐक्य’ को खोज निकालता है। इस प्रकार विज्ञान भौतिक जगत के कारण, कार्य और सामान्य धर्म के अध्ययन के द्वारा इस जगत की एक युक्तिसंगत और बुद्धिगम्य व्याख्या उपस्थित करता है।

आइंस्टाइन ने जब अपने छोटे से समीकरण (E= mc2 ) द्वारा व्याख्या प्रस्तुत की तो वर्षों तक उसे समझा ही नहीं जा सका। कारण यह है कि पुनर्जागरण काल के अपडेट हुए सॉफ्टवेयर को चेतना हटा नहीं पाई थी। धीरे धीरे उनकी परंपरा के वैज्ञानिकों ने बहुत सी स्थापनाएं दीं, बहुतेरे सवालों के जवाब दिए।

आधुनिक विज्ञान और ईश्वर की अवधारणा -2

विकिरण तरंगों का प्रवाह अदृश्य क्वांटा के रूप में

मैक्स प्लांक ने वर्ष 1900 में बताया कि प्रकाश विकिरण का उत्सर्जन निरंतर नहीं होता बल्कि ऊर्जा के टुकड़ों में क्रमशः होता है, जिन्हें ‘क्वांटा’ कहा गया। आइंस्टीन ने बताया कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण की तरंगों का प्रवाह भी अदृश्य क्वांटा के रूप में ही होता है जिसे ‘फोटान’ कहा गया। उन्होंने बताया कि प्रकृति का हर ‘एलिमेंट्री पार्टिकल’ का ‘एंटीपार्टिकल’ होता है। जब यह साथ लाए जाते हैं तो एक दूसरे को समाप्त कर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं। अतः यह  ‘फंडामेंटल’ नहीं हो सकते। मूल में कुछ और है जो उनसे ऐसा कराता है। इन प्रश्नों के उत्तर भी दिए गए कि जब सभी चीजें एक ही तरह ऊर्जा से बनी है तो क्यों प्रकृति उनसे अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह के कार्य कराती है?  क्या है जो अस्थिर ऊर्जा को क्वांटा में कैद रखता है जिसे ‘पार्टिकल ‘ कहते हैं?

बताया गया कि ‘ यूनिवर्स ‘ का जो भी विशालतम् हो सकता है वह सूक्ष्म से सूक्ष्मतम् से उद्भूत हुआ। हममें  से हर कोई यूनिवर्स का अनिवार्य अंग है और उसका स्रोत हमारे भीतर ही है। तो क्या मनुष्य ईश्वर की फ्रीक्वेंसी पर अपने को पुनः ट्यून कर सकता है? हां कर सकता है- चेतना की अतल गहराई में जाकर। अब विज्ञान किसी स्वर्ग को पृथ्वी से और माइंड को मैटर से अलग नहीं रखता। वह मानने लगा है कि व्यक्ति की चेतना और ब्रह्मांडीय चेतना, जिसे वैदिक ऋषियों ने ‘ब्रह्म’ कहा, के बीच के स्पेस को समाप्त करके यह ट्यूनिंग की जा सकती है। अब वास्तविक विज्ञान पदार्थ को आत्मा से ऊपर नहीं रखता वरन् दोनों को एक दूसरे में समाहित मानता है।

ब्रह्म जैसी कोई एकमात्र सत्ता

आधुनिक विज्ञान हमें बताता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड ऊर्जा के सागर से आप्लावित है- एक स्पष्ट प्रकाश। यह पहली कृति है, फिर भी यह पहली नहीं है। विज्ञान और आत्मा दोनों के लिए इसका सृजनकर्ता ‘ब्रह्म’ एकमात्र बिंदु है और समस्त बिंदु है। भौतिक जगत में हर चीज का अस्तित्व है किंतु मात्र संगठित ऊर्जा के रूप में। आधुनिक भौतिकी को भी इस निष्कर्ष की ओर बढ़ना पड़ रहा है कि ब्रह्म जैसी कोई एकमात्र सत्ता है जिसने अन्य सभी को अपने में समेट रखा है। चाहे कोई हिंदू योगी हो, बौद्ध तांत्रिक हो, ईसाई क्वाएटिस्ट हो, यहूदी कबालिस्ट हो या मुस्लिम सूफी हो — जब धार्मिक अनुभूति के स्तर पर पहुंचता है तो समान रूप से एक ही चीज पाता है- आत्मा का परमात्मा ( या जो भी नाम दे लें ) में  विलय, एकाकार हो जाना।

भौतिक जगत

भौतिक जगत को समझने के लिए उसके तीन स्तरों को जानना होगा।

पहला स्तर पार्थिव जगत् है, जिसमें हम प्रकृति और पदार्थ से घिरे पंच इंद्रियों द्वारा अनुभूत जगत में विचरण करते हैं। यह मात्र आइसबर्ग का टिप है। दूसरा स्तर कल्पना जगत है जिसे हम अपनी इंद्रियों से अनुभव नहीं कर सकते। वह जगत जहां ऊर्जा की अंतहीन अंतर्क्रिया संचालित होती है। हर वस्तु परमाणुओं से निर्मित है। इसमें  ‘पॉजिटिविली चार्ज्ड न्यूक्लियस’ होता है जिसमें प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक दूसरे से गुंथे  होते हैं। ये ‘निगेटिविली चार्ज्ड’ इलेक्ट्रॉनों से  घिरे होते हैं। प्रोटॉन और न्यूट्रॉन और भी छोटे कणों ‘क्वार्क्स’ से बने होते हैं। इस प्रकार इंद्रियानुभूत हर पदार्थ दो मूल कणों ‘क्वार्क्स’ और ‘इलेक्ट्रॉन’ की निर्मिति है। ये और कुछ नहीं, मात्र ऊर्जा के पैकेट हैं।

कतई खाली नहीं होता खाली स्पेस

कोई नहीं जानता कि ऊर्जा क्या है? किंतु यह विभिन्न रूपों में हमारे समक्ष प्रकट होती है। यह मूल कण क्वार्क्स और  इलेक्ट्रॉन बिखरते इसलिए नहीं क्योंकि इनकी ऊर्जा ‘फील्ड्स’ में संचित रहती है, जो कि ‘ऐब्सट्रैक्ट’ है। अब हम तीसरे स्तर के मुहाने पर पहुंच गए। आइंस्टीन ने बताया कि स्पेस, टाइम और फील्ड, स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं रह सकते क्योंकि यह आपस में गुंथे होते हैं। अव्यक्त फील्ड समस्त स्पेस और टाइम में व्याप्त होता है जिसे ‘क्वांटम’ कहते हैं। क्वांटम मात्र एक छोटी स्वतंत्र इकाई है जिसमें ऊर्जा के स्वरूप को व्यक्त किया जाता है। खाली स्पेस कतई खाली नहीं होता। यह क्वांटम क्रियाकलापों का खदबदाता हुआ हंडा है। प्रश्न है कि जब सब कुछ एक ही तत्व -ऊर्जा- से बना है तो प्रकृति उसे इतने भिन्न भिन्न प्रकार के फील्ड्स में क्यों व्यक्त करती है? ये विभिन्न फील्ड और कुछ नहीं, मात्र एक ही फील्ड के विभिन्न स्वरूप हैं।

ऊर्जा का पदार्थ में परिवर्तन

फ्रेड होयले ने ‘बिग बैंग’ नाम दिया। यह न किसी स्पेस में हुआ विस्फोट था और न ही कोई स्पेस अस्तित्व में था। आज विस्तृत होते हुए ब्रह्मांड में गैलेक्सीज़ के बीच की दूरी बढ़ रही है। बैंग के साथ ही स्पेस अस्तित्व में आया। प्रारंभिक अवस्था में ऊर्जा पदार्थ के प्रकाशवान कणों के रूप में थी। निरंतर हो रहे विस्तार के कारण ब्रह्मांड ठंडा होने लगा और ऊर्जा ने पहले क्वार्क और फिर पदार्थ के मूल कणों का रूप ग्रहण किया। इस प्रकार ऊर्जा के पदार्थ में परिवर्तन का आइंस्टीन का समीकरण प्रमाणित हुआ।

 (लेखक प्रख्यात शिक्षाविद हैं और विभिन्न विषयों पर उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं)


आधुनिक विज्ञान और ईश्वर की अवधारणा-1