किरेन रिजिजू को मिला पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय।

मोदी कैबिनेट में गुरुवार को एक बड़े फेरबदल का ऐलान किया गया है। अबतक कानून मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे किरेन रिजिजू का मंत्रालय बदला गया है। उनकी जगह पर अर्जुन राम मेघवाल को कानून और न्याय मंत्रालय का राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है। रिजिजू को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय दिया गया है। मेघवाल पहले से ही संसदीय कार्य मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय के राज्यमंत्री के रूप में काम कर रहे थे। अब अचानक उनके कद में बढ़ोत्तरी के कई सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं।

कौन हैं अर्जुन राम मेघवाल

मेघवाल फिलहाल राजस्थान के बीकानेर सुरक्षित सीट से सांसद हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने के बाद उन्होंने 2009 में पहली बार भाजपा के टिकट पर बीकानेर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और वहां से जीत दर्ज की थी। इसके बाद उन्होंने 2014 और 2019 में भी वहां से जीत दर्ज की है। मेघवाल को साल 2016 में मोदी सरकार में वित्त राज्य मंत्री बनाया गया था। इसके बाद जल संसाधन राज्य मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया।

मेघवाल के पास कानून की डिग्री

बीकानेर के राजकीय डूंगर कॉलेज से बीए, एमए और एलएलबी करने वाले मेघवाल को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मई 2019 में संसदीय मामलों और भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम राज्य मंत्री बनाया गया। 2021 में उन्हें संस्कृति मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया। अब उन्हें कानून मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। एक तरह से वह इस मंत्रालय के सर्वेसर्वा होंगे। इस तरह मोदी सरकार में उनका कद बढ़ गया है।

अर्जुन के बहाने दलित वोटरों पर बीजेपी का निशाना

सिर पर पगड़ी बांधकर और साइकिल से संसद पहुंचने वाले मेघवाल राजस्थान में भाजपा के दलित चेहरा हैं। उन्हें वर्ष 2013 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार भी मिल चुका है। इस साल के अंत तक राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लिहाजा, माना जा रहा है कि उससे पहले मेघवाल को पदोन्नत कर मोदी सरकार और भाजपा ने राजस्थान में दलित मतदाताओं को साधने और उनके बीच दलित हितैषी होने का दांव चला है।

राजस्थान में दलित वोट बैंक अहम

राजस्थान विधानसभा में कुल 200 सीटें हैं। इनमें से 34 सीटें अनुसूचित जाति और 25 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। राजस्थान में दलित मतदाता परंपरागत रूप से भाजपा का ही वोट बैंक रहे हैं। पिछले तीन विधानसभा चुनावों  को बात करें तो आंकड़े बताते हैं कि जिस दल ने एससी और एसटी सीटों पर कब्जा जमाया है,राजस्थान में उसी की सरकार बनी है।

2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में अनुसूचित जाति (SC) की कुल जनसंख्या का 17.83%  और अनुसूचित जनजाति (ST) की आबादी 13.48% है। यानी 31 फीसदी से ज्यादा दलित वोटरों की आबादी है। माना जा रहा है कि मेघवाल को पदोन्नति देकर भाजपा ने राजस्थान के दलित मतदाताओं के बीच पैठ बनाने की कोशिश शुरू की है।

आखिर क्‍या है वजह?

माना जा रहा है कि बीते कुछ महीनों में न्यायपालिका के साथ किरेन रिजिजू के बढ़ते तकरार और मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा के बाद ये कदम उठाया गया है। इसके अलावा कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे भी इसकी एक प्रमुख वजह है। बीजेपी ने कर्नाटक चुनावों का विश्लेषण कर पाया कि दलित, पिछड़े और लिंगायत वोटरों के कांग्रेस की तरफ शिफ्ट होने की वजह से वहां पार्टी हारी है। इसलिए पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनावों वाले राज्यों में दलित वोटों पर फोकस करना शुरू कर दिया है।(एएमएपी)