अभिषेक रंजन सिंह ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा ऐसे समय पर हुई है जब बांग्लादेश अपनी आजादी का 50वां साल मना रहा है। यह वर्ष बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की 101वी जयंती भी है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बांग्लादेश की आजादी में भारत का अप्रतिम योगदान रहा है। बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए भारतीय सैनिकों ने अपना रक्त बहाया है।
आजादी की दो लड़ाइयां लड़ीं
कोई भी राष्ट्र एक दिन में नहीं बनता चाहे वह बांग्लादेश हो या फिर भारत। बांग्लादेश के साथ एक बड़ी विशेषता यह रही कि इसने 75 वर्ष में 2 देशों के लिए 2 देशों की लड़ाई लड़ी। एक भारत जब आजाद हुआ उस समय बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा था और पाकिस्तान बनने के 25 साल बाद ही उसे एक दूसरी लड़ाई लड़नी पड़ी। बेशुमार कष्ट और आर्थिक दिक्कतों के बावजूद बीते 50 वर्षों में बांग्लादेश ने जिस प्रकार की आर्थिक उन्नति की है उसकी चर्चा विश्व भर में हो रही है।
খেলা শেষ!
Mamata Banerjee has lost the game before it has begun.
Just listen to the profanity in her language! pic.twitter.com/qpfwvmDW0f
— BJP (@BJP4India) March 26, 2021
रिश्तो में गर्मजोशी
नरेंद्र मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने बांग्लादेश के साथ सबसे महत्वपूर्ण समझौता किया था- भूमि सीमा समझौता। यह पिछले 70 सालों से दोनों देश के बीच लंबित मसला था। इस समझौता के पूरा होने के बाद भारत और बांग्लादेश में रहने वाले हजारों लोगों को नागरिकता नसीब हुई। हाल के वर्षों में भारत के साथ बांग्लादेश के रिश्ते बहुत ज्यादा अच्छे हुए हैं। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिए गए कई महत्वपूर्ण फैसलों को जाता है। मसलन- 2014 के बाद दोनों देशों के बीच रेल, सड़क और यातायात के साधनों का जितना विस्तार हुआ है उतना बीते कई दशकों में नहीं हुआ था। इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक बाधाएं काफी कम हुई हैं। कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी का यह पहला विदेश दौरा है। उन्होंने अपनी इस यात्रा के लिए पड़ोसी देश बांग्लादेश का चयन किया है जो उनकी नेबरहुड फर्स्ट की नीति को बल प्रदान करता है।
अध्यात्म और राजनीति
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले बार भी बांग्लादेश यात्रा के दौरान अपने व्यस्त कार्यक्रम में से थोड़ा सा समय निकालकर बांग्लादेश के राष्ट्रीय मंदिर ढाकेश्वरी में पूजा अर्चना की थी। इस बार बांग्लादेश यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी दो दर्शनीय स्थलों का दौरा कर रहे हैं एक जागेश्वरी शक्तिपीठ जो बांग्लादेश समेत समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू आस्था का एक प्रमुख केंद्र है और दूसरा ढाका से 180 किलोमीटर दूर गोपालगंज जिले में मौजूद मतुआ संप्रदाय के मटका दर्शन करना।
Blessed moments from Orakandi. pic.twitter.com/BYbP97adNF
— Narendra Modi (@narendramodi) March 27, 2021
चुनाव के लिहाज से महत्वपूर्ण कदम
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी एक आध्यात्मिक व्यक्ति हैं और वह जहां कहीं जाते हैं वहां मौजूद प्रमुख हिंदू मंदिरों का दर्शन करते हैं। लेकिन इस बार उनका बांग्लादेश के मंदिरों का दर्शन करना कहीं ना कहीं पश्चिम बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनाव के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में मतुआ हिंदुओं की संख्या करीब 80 लाख है।
पश्चिम बंगाल में मतवा समाज अगर किसी राजनीतिक दल के साथ हो जाए इसमें कोई संदेह नहीं कि सूबे की सियासत में उसका वर्चस्व कायम हो जाएगा। इस इसकी अहमियत जानते हुए प्रधानमंत्री मोदी अपने बांग्लादेश यात्रा के क्रम में मतुआ समाज के पवित्र मठ जा रहे हैं। उनकी इस यात्रा का उद्देश्य है कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में मतुआ समाज पर इसका असर हो।
हिंदुओं पर हमले
इस बार पश्चिम बंगाल चुनाव में
तृणमूल कांग्रेस खुद को हिंदुओं की हिमायती साबित करने के लिए हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीकों, मंत्रों एवं मंदिरों का दौरा कर रही हैं। खासकर ममता बनर्जी अपनी लगभग हर जनसभा में दुर्गा सप्तशती का मंत्रोचार कर रही हैं। इसमें आस्था से ज्यादा बीजेपी को रोकने की कवायद नजर आती है। इसलिए खुद को हिंदू धर्म का रहबर मानने वाली भारतीय जनता पार्टी अपने को सबसे बड़ा हिंदू हितेषी सिद्ध करने में जुटी है। प्रधानमंत्री मोदी का बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों का दौरा उसी की एक कड़ी है। दूसरी बात प्रधानमंत्री मोदी यह संदेश देना चाहते हैं कि वह बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं की भी फिक्र करते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में बांग्लादेश में हिंदुओं के ऊपर अत्याचार बढ़े हैं। एक हफ्ता पहले बांग्लादेश के सुनामगंज में मुसलमानों की एक भीड़ ने 90 हिंदुओं के घरों में आगजनी की और लाखों की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया। हमलावर मुसलमानों की भीड़ ने सुनामगंज में नौ हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुंचाया। यह घटना ऐसे समय पर हुई जब बांग्लादेश में कथित हिंदू, कथित हिंदू हितैषी सरकार है। शेख हसीना सरकार का दावा है कि उनके शासन में बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं को पूरी सुरक्षा उपलब्ध है। ऐसे में वहां अगर हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला होता है तो बीएनपी और अवामी लीग सरकार में कोई फर्क नहीं रह जाता।
वोटों पर नज़र
निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी की बांग्लादेश यात्रा सफल कही जा सकती है क्योंकि उनका आगमन ऐसे समय हुआ जब बांग्लादेश अपने जन्म के बाद दूसरा कोई बड़ा उत्सव मना रहा है। बांग्लादेश में प्रधानमंत्री मोदी का हिंदू शक्तिपीठों में जाना और मतुआ समाज के मंदिरों में पूजा करना कहीं ना कहीं पश्चिम बंगाल में मौजूद हिंदुओं और मतुआ संप्रदाय के लोगों को भारतीय जनता पार्टी के प्रति आकर्षित करने की कवायद है। यह देखने वाली बात होगी बीजेपी को इसका कितना चुनावी फायदा मिलता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकर हैं)
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