भ्रष्टाचारियों को फांसी जरूरी क्यों?
सुरेंद्र किशोर।
एक करोड़ रुपए या उससे अधिक की सरकारी धनराशि के गबन, घोटाले या रिश्वतखोरी के दोषियों के लिए यदि फांसी की सजा का कानूनी प्रावधान हो जाए तो इस देश के कई क्षेत्रों में सुधार करने में सुविधा होगी। न केवल हम देश को बर्बाद होने से बचा सकेंगे बल्कि इससे धीरे- धीरे परिवारवाद-वंशवाद भी घटेगा।
इन दिनों सरकारी भ्रष्टाचार के कारण वैसे तत्वों को भारी मदद मिल रही है जो इस देश में इस्लामिक शासन कायम करना चाहते हैं। भ्रष्टाचार पर काबू नहीं किया गया तो देश में जेहादी तत्व गृह युद्ध तुरंत शुरू कर देंगे। उनकी हथियारबंद तैयारी जारी है। सरकारी कर्मियों ने घूस लेकर करोड़ों बांग्लादेशियों-रोहिग्याओं को इस देश में प्रवेश करवा दिया है। उनके लिए सारे कागजात घूसखोरों से मिलकर जेहादियों और वोट लोलुप नेताओं ने तैयार करवा दिये हैं। आने वाले खतरों को समझिए अन्यथा सपरिवार नेस्तनाबूत हो जाने के लिए तैयार हो जाइए।
दुनिया के जिन देशों में भ्रष्टाचार के आरोप में फांसी की सजा का प्रावधान है, उनमें चीन, वियतनाम, थाईलैंड, लाओस, इराक, मोरक्को, इंडोनेशिया, उत्तर कोरिया शामिल हैं।
कल्पना कीजिए चीन का एकाधिकारवादी कम्युनिस्ट शासन भी भ्रष्ट तत्वों के लोभ को साधारण सजा के जरिए काबू में नहीं कर सकता था, इसीलिए वहां भी फांसी की सजा का प्रावधान करना पड़ा।
दूसरी ओर, हमारे देश की स्थिति अपवादों को छोड़कर ऐसी बन गई है कि जो जितना बड़ा लुटेरा, भ्रष्ट, देशद्रोही है, उसके उतने ही बड़े पद पर पहुंच जाने की गुंजाइश है। उम्मीद की किरण मुझे फिर भी मोदी-नीतीश आदि में नजर आती है।

इस देश के चुनावों में अपवादों को छोड़कर लोकसभा, विधानसभा, राज्यसभा और विधान परिषद के टिकट बिकते ही रहे हैं। बिहार के चुनाव में इस बार भी बिके। पहले से अधिक दाम पर बिके। पर इस बार अपुष्ट खबर यह भी है कि उससे भी अधिक घिनौना काम हुआ है।
दरअसल विधायक और मंत्री पद इन दिनों अपवादों को छोड़कर अधिकतर लोगों के लिए पैसे कमाने का इतना बड़ा साधन बन चुका है कि अमीर होने के लिए अब कोई इंडस्ट्री खोलने की मजबूरी नहीं रही। सत्ता और विधायिका के आसपास इतने अधिक प्रलोभन बिछे हुए हैं कि शायद ही कोई विश्वमित्र मेनका की ओर आकर्षित नहीं हो रहा है। मोदी-नीतीश जैसे इक्के -दुक्के लोग ही अपवाद बच गये हैं।
यदि एक करोड़ रुपए से अधिक के भ्रष्टाचार के लिए फांसी की सजा क प्रावधान हो जाए तो कोई नेता अपने पुत्र को मंत्री नहीं बनने देगा। उसे आशंका होगी कि उसका बेटा लोभ संवरण न कर पाए और वह फांसी पर लटक जाए। मौत की सजा के बाद राजनीति में इस तरह परिवारवाद भी कम होगा। आज तो परिवारवाद की महामारी कोविड-हैजा-प्लेग से भी अधिक सर्वव्यापी होती जा रही है।
अभी क्या कर सकते हैं
1.- प्रारंभिक कदम के रूप में केंद्र सरकार व राज्य सरकार एम.पी.फंड और विधायक फंड बंद करे।
2.- अब तक इस फंड के तहत जितने भी निर्माण हुए हैं,उनकी गुणवत्ता की कड़ाई से जांच कराई जाये।
3.- नामांकन पत्र के साथ संसद-विधानसभा के उम्मीदवारों को संपत्ति का भी व्योरा देना पड़ता है। अब उन्हें इस बात के लिए कानूनन मजबूर किया जाये कि वे अपनी संपत्ति की कमाई का स्रोत भी बताएं।
4.- भ्रष्टाचार या अपराध के दो मामले में चार्ज शीटेड लोगों को चुनाव लड़ने से कानून बना कर रोका जाये।
विषम स्थिति
देश के समक्ष आज विषम स्थिति है। विषम स्थिति का सामना करने के लिए कुछ कड़ी दवाएं देनी ही पड़ेंगी, अन्यथा यह देश नहीं बचेगा। मध्य युग की तरफ चला जाएगा।
यह संयोग नहीं है कि इस देश के कई बड़े नेता विदेशों में अपने रहने के लिए मकान व रोजगार के साधन बना रहे हैं। जाहिर है कि उन लोगों ने इस देश को जमकर लूटा है। एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के 6 देशों में एक लाख 35 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति होने की खबर है। इस देश की स्थिति जब और बिगड़ने लगेगी तो वैसे लुटेरे सपरिवार विदेश भाग जाएंगे। पर बाकी लोग कहां जाएंगे? वे अभी से सरकारों को दबाव डाल कर भ्रष्टों और देशद्रोहियों पर नकेल कसने के लिए कड़े कानून बनवाएं।
परिवारवाद, वंशवाद बने ‘फांसी घर’
राजनीति में बढ़ रहे व्यापक परिवारवाद-वंशवाद ईमानदार मंशा वाले राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं के लिए फांसी घर है। अपवादों को छोड़कर जो भी एक बार एम.पी., एम.एल.ए. बन जा रहा है, वह चाहता है कि अगली बार उसके ही परिवार का कोई उसकी जगह चुनाव लड़े। कार्यकर्ता के रूप में एमपी-एमएलए फंड के ठेकेदार काम करेंगे ही। इसलिए भी सांसद-विधायक फंड जल्द खत्म कीजिए मोदीजी-नीतीशजी। इसे खत्म करने के कारण अब आपकी सरकार नहीं गिरेगी। बिहार चुनाव में यहां की अधिकतर जनता ने यह साफ संकेत दे दिया है कि वह देश के जेहाद समर्थकों,वंशवादियों, घोटाले बाजों और संगठित अपराधियों आदि को चुनाव में नहीं जितवाएगी अपवाद स्वरूप एक दो राज्यों को छोड़कर।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
मैंने राजनीति क्यों छोड़ी?
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अच्छी मंशा वाले एक लाख प्रतिभाशाली युवकों को राजनीति में लाने का प्रयास होगा क्योंकि राजनीति को सिर्फ वंशवादियों पर नहीं छोड़ा जा सकता है। उम्मीद है कि मोदी जी काम कर रहे होंगे। उन एक लाख युवकों के लिए पार्टी फंड से मासिक मानदेय का भी प्रबंध कीजिएगा।
मैं अपना अनुभव बताता हूं। बड़े उत्साह से साठ-सत्तर के दशक में मैं समाजवादी राजनीति से जुड़ा था। पर सवाल था कि मेरे जैसा पूर्णकालिक कार्यकर्ता भोजन कहां से करेगा? कभी कभी कुछ समाजवादी नेता दो चार रुपए भीख की तरह दे देते थे।
एक बार भोजपुर जिले के एक पूर्व विधायक के पटना स्थित फ्लैट में मैं गया। उन्हें लगा कि मैं उनसे दो रुपए मांगने आया हूं। मुझे देखते ही कुछ बोले बिना तेजी से वे खड़े हुए और जल्दी से मेरे पास आकर मेरी गर्दन में हाथ लगा कर मुझे पीछे की ओर ढकेलना उन्होंने शुरू किया। दूर तक ले गये। मैं किसी तरह संभलता रहा। पीछे के बल गिरते-गिरते बचा अन्यथा ब्रेन हेमरेज हो सकता था।
उसी घटना के मैंने राजनीति छोड़ दी और स्वाभिमान से जीने के लिए पत्रकारिता की राह पकड़ ली।



