प्रदीप सिंह।

गुजरात में विजय रूपाणी की विदाई हो गई और भूपेंद्र पटेल का नए मुख्यमंत्री बनाए गए। यह बदलाव क्यों हुआ? ऐसा क्या हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बदल रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में रूपाणी चौथे मुख्यमंत्री हैं। पहले कर्नाटक में येदियुरप्पा की विदाई हुई। उसके बाद उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत और फिर चार महीने के भीतर ही तीरथ रावत की विदाई हुई …और अब गुजरात में यह परिवर्तन हुआ है। कोई तो कारण होगा? क्या इन मुख्यमंत्रियों को इसलिए हटाया गया कि उनका काम काज अच्छा नहीं था? आखिर अचानक ऐसे फैसले लेने की जरूरत क्यों पड़ रही है। कोई भी बदलाव अच्छा या बुरा तो बाद में साबित होता है- पहले वह एक अनिश्चितता पैदा करता है।


केशुभाई, मोदी और आनंदीबेन

Photos: Modi, BJP's top brass attend Anandiben Patel's swearing in - Photos News , Firstpost

ऐसा नहीं लगता कि मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस बात को नहीं समझ रहे हैं। फिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इसके कोई दूरगामी लक्ष्य हैं… निश्चित रूप से होंगे… लेकिन उस पर बात करने से पहले गुजरात की बात करते हैं। 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली आए तो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री बनाया। उसका एक कारण तो यह समझ में आता है कि भारतीय जनता पार्टी ने पटेल समुदाय के सबसे बड़े नेता केशुभाई पटेल को हटाकर मोदी को मुख्यमंत्री बनाया था। इसलिए जब मोदी ने मुख्यमंत्री पद छोड़ा तो शायद उन्हें लगा होगा कि वापस सत्ता पटेलों के हाथ में चली जानी चाहिए। लेकिन उसके बाद पाटीदारों यानी पटेलों का अनामत आंदोलन शुरू हुआ। अनामत गुजराती का शब्द है जिसे आरक्षण के लिए प्रयोग किया जाता है। पटेलों के इस आंदोलन में हिंसा हुई। पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। उसके बाद गुजरात में जो स्थिति बनी उसमें आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा था।

क्यों हुई विजय रूपाणी की ताजपोशी

How Vijay Rupani has survived as Gujarat CM for five years? - India Today Insight News

आनंदीबेन को मुख्यमंत्री से हटा दिया और कुछ समय इंतजार कराने के बाद उन्हें राज्यपाल बना दिया गया। विजय रूपाणी को उस समय मुख्यमंत्री बनाने की वजह यह थी कि उस समय पिछड़ों का भी आंदोलन चल रहा था और पाटीदार भी आंदोलन कर रहे थे। उस स्थिति में किसी एक गुट के नेता को मुख्यमंत्री बनाने से फिर से संघर्ष शुरू हो सकता था। इसलिए विचार हुआ कि किसी कास्ट न्यूट्रल व्यक्ति को- यानी ऐसा व्यक्ति जो दोनों गुटों में से किसी का ना हो- मुख्यमंत्री बनाया जाए। विजय रूपाणी जैन हैं। इसलिए उनको सीएम बनाने से दोनों गुटों के बीच में कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं होगी।

तूफ़ान से निकाली किश्ती

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यह प्रयोग सफल भी रहा। लेकिन गुजरात में 2017 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी पूरी साख दांव पर लगानी पड़ी। गुजरात में नरेंद्र मोदी ने उसी प्रकार से चुनाव लड़ा जिस तरह वह मुख्यमंत्री के तौर पर लड़ा करते थे और भाजपा को जीत दिलाई। उस चुनाव में केवल पाटीदार आंदोलन की ही बात नहीं थी। जीएसटी में आ रही परेशानियों से व्यापारी वर्ग नाराज था। नोटबंदी के फैसले से भी बहुत से लोगों में नाराजगी थी। कुल मिलाकर 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में माहौल बीजेपी के बहुत ज्यादा खिलाफ था। मेरा मानना है कि पिछले 31 सालों में अगर गुजरात में कांग्रेस के लिए कोई सबसे अच्छा मौका था तो वह 2017 का विधानसभा चुनाव था- जो वह चूक गई। अब कांग्रेस को निकट भविष्य में गुजरात में सत्ता मिलने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं दिखती।

विजय नहीं दिला सकते थे रूपाणी

Vijay Rupani resigns as Gujarat Chief Minister | India News | Zee News

ऐसा नहीं है कि विजय रूपाणी के बारे में तुरत फुरत में फैसला कर लिया गया। रूपाणी को मुख्यमंत्री पद से हटाने का फैसला करने के पहले पार्टी ने तीन सर्वे कराए। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थानीय नेताओं से फीडबैक लिया गया। फिर संगठन के लोग राज्य में घूम कर आए और उन्होंने अपना फीडबैक दिया। कुल मिलकर पार्टी नेतृत्व को यह फीडबैक मिला कि विजय रूपाणी के नेतृत्व में पार्टी को विधानसभा चुनाव जीतने में मुश्किल आएगी। यह बात सब जानते हैं कि विजय रुपाणी कोई जन-नेता, जनाधार वाले नेता या लोकप्रिय नेता नहीं हैं। विजय रुपाणी को हटाने का दूसरा कारण बना कोरोना के दौरान राज्य सरकार के कामकाज को लेकर हाईकोर्ट की तल्ख़ टिप्पणियां। तो विजय रुपाणी को हटाने के कारण कई थे।

संगठन की ताकत

Gujarat BJP's trinity, PM share stage after 20 yrs | Deccan Herald

हमें एक बात और समझनी चाहिए कि गुजरात और मध्य प्रदेश दो ऐसे राज्य हैं जहां जनसंघ के समय से पार्टी का संगठन बहुत मजबूत रहा है। कोई बड़ी सी बड़ी मुसीबत भी आए तो संगठन में इतनी ताकत है कि वह सब झेल लेता है। गुजरात में शंकर सिंह वाघेला और केशुभाई पटेल- ये दो लोग थे जिन्होंने जनसंघ के जमाने से गांव-गांव घूमकर खूब मेहनत से पार्टी को खड़ा किया। 1995 में शंकर सिंह वाघेला की महत्वाकांक्षा जागी और मुख्यमंत्री न बनाए जाने पर उन्होंने बगावत कर दी। पार्टी से निकल गए। एक धड़ा तोड़ कर ले गए। कुछ समय के लिए कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने, फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा। दो साल बाद ही 1997 में फिर चुनाव हुए और भाजपा फिर बड़े बहुमत से जीत कर आई। उसके बाद से गुजरात में बीजेपी कभी हारी नहीं है। इस तरह गुजरात में भाजपा ने लगातार 26 साल राज किया है। इसका एक मतलब यह भी है कि लगातार छह एंटी इंकम्बेंसी पार्टी झेल चुकी है। यह बीजेपी के संगठन की बदौलत ही हो सका है। केशुभाई पटेल गुजरात में पाटीदारों के सबसे बड़े नेता थे और उस समय कांग्रेस में भी उनके बराबर का कोई नेता नहीं था। तब पार्टी ने सहज रूप से उनको हटाकर नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी जो उससे पहले सभासद भी नहीं रहे थे। उस समय के लिहाज से देखें तो यह बहुत बड़ा जोखिमभरा फैसला था… पता नहीं उसका क्या असर होगा! लेकिन नरेंद्र मोदी ने साबित किया कि नेतृत्व ने उन पर जो भरोसा जताया था वह उस पर खरे उतरे। उन्होंने पार्टी नेतृत्व को निराश नहीं किया। बारह – साढ़े बारह साल निर्बाध रूप से शासन किया।

गुजरात-मध्य प्रदेश जैसी मजबूत किलेबंदी और कहां

A dynamic leader who fought for right cause' - Hindustan Times

मध्य प्रदेश की बात करें तो 2003 में कैलाश जोशी, सुंदर लाल पटवा, बाबूलाल गौर जैसे तमाम वरिष्ठ नेताओं को किनारे करके दिल्ली से उमा भारती को भोपाल भेज दिया गया। 2003 के चुनाव में उनको मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया। पार्टी को शानदार सफलता मिली। उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि अगले ही साल यानी 2004 में कर्नाटक में झंडारोहण के एक मामले में उनको अदालत से सम्मन आया। उसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। पार्टी ने जब दोबारा उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो उन्होंने बगावत कर दी और पार्टी छोड़ दी। लेकिन पार्टी पर कोई असर नहीं हुआ। जब अगला विधानसभा चुनाव हुआ तो बीजेपी फिर से दो तिहाई बहुमत से जीत कर आई। गुजरात और मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के संगठन की यह ताकत है। भाजपा संगठन की ऐसी ताकत दूसरे किसी भी राज्य में नहीं है।

एक बगावत नहीं झेल सका यूपी

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गुजरात- मध्य प्रदेश और बाकी राज्यों के बीच अंतर को उत्तर प्रदेश के उदाहरण से और अच्छी तरह समझा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह ने बगावत की और उसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी 15 साल तक बनवास झेलती रही। अगर 2013-14 में मोदी और शाह ने आकर उत्तर प्रदेश में भाजपा को उबारा नहीं होता तो वहां अब भी भाजपा का बनवास चल रहा होता। यह फर्क संगठन के ताकतवर होने और ताकतवर नहीं होने का है। इस बात को नरेंद्र मोदी और अमित शाह से ज्यादा अच्छी तरह से और कोई नहीं समझ सकता।

लेफ्ट लिबरल बिरादरी की सक्रियता

Prashant Kishor On Bengal Assembly Elections 2021: On May 2, Hold Me To My Last Tweet

इस समय की भाजपा में गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन से लेफ्ट लिबरल बिरादरी और मीडिया का एक खेमा सक्रिय हो गया है। इस परिवर्तन को भाजपा में झगड़ा दिखाने के लिए कहा गया कि यह आनंदीबेन पटेल की जीत है क्योंकि भूपेंद्र पटेल उनके आदमी हैं। आनंदीबेन ने उनको मुख्यमंत्री बनवा दिया और यह अमित शाह की हार है। दरअसल प्रशांत किशोर का दर्द रह रह कर टीसता है। वह अभी तक यह स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि अमित शाह ने उनको बीजेपी के सिस्टम से बाहर कर दिया। इसलिए वह इस तरह की खबरें प्लांट कराते रहते हैं। इसमें यह भी दिखाने की कोशिश हो रही है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री में मतभेद हो गया है। प्रधानमंत्री ने अमित शाह की बात नहीं सुनी। जबकि वास्तविकता में यह सब कोरी बकवास है और इसमें कोई तथ्य नहीं है।

आम कार्यकर्ताओं के लिए बड़ा सन्देश

Bhupendra Patel: Engineer, corporator, MLA in 2017 to CM - Swift rise for Patidar leader

भूपेंद्र पटेल अहमदाबाद कारपोरेशन में रहे हैं। वहां की स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन रहे हैं। 2017 के उपचुनाव में पहली बार जीत कर आए। यह सीट पहले आनंदीबेन पटेल की थी। उनके खाली करने पर भूपेंद्र पटेल ने चुनाव लड़ा। विधायक बने। वह पार्टी के मामूली और समर्पित कार्यकर्ता हैं। उनका मुख्यमंत्री बनना पार्टी के आम कार्यकर्ता के लिए बहुत बड़ा सन्देश है। संदेश यह है कि पार्टी की नजर अपने कार्यकर्ताओं पर रहती है और उसके लिए आपको किसी सिफारिश, किसी का बेटा या परिवार का सदस्य होने की जरूरत नहीं है। पार्टी अपने उन कार्यकर्ताओं को फर्श से अर्श तक ले जाती है जो पार्टी और विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं। किसी भी लोकतंत्र में किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं के लिए इससे बड़ा संदेश नहीं हो सकता कि कार्यकर्ताओं को यह महसूस हो कि वे भी सबसे ऊंचे पद तक पहुंच सकते हैं। हालांकि मैं गेम चेंजर या मास्टर स्ट्रोक जैसे शब्दों का उल्लेख नहीं करता लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह काम उसी प्रकार का है। विजय रूपाणी के प्रति लोगों की जो भी नाराजगी या एंटी इंकम्बेंसी थी, वह उनके हटते ही उनके साथ चली गई।

कांग्रेस 2017 के बाद अब कहां

congress in gujarat: Latest News, Videos and congress in gujarat Photos | Times of India

गुजरात में 2017 में कांग्रेस की जो स्थिति सुधरी थी- आज 2021 में हम बात करें तो- उसका ग्राफ सीधे नीचे की ओर जा रहा है। 2017 के बाद राज्य में जितने भी स्थानीय निकाय, पंचायतों के चुनाव, विधानसभा के उपचुनाव हुए उनमें कांग्रेस को करारी हार मिली है। चुनाव में बीजेपी का स्ट्राइक रेट 90 फ़ीसदी से ऊपर का है। इसके अलावा कांग्रेस के कम से कम दस विधायक अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में आए हैं। इससे कोई भी यह अनुमान सहज ही लगा सकता है कि गुजरात में कांग्रेस की क्या हालत है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और विधायक दल के नेता ने हाईकमान के पास इस्तीफा भेज रखा है और इस बात को छह महीने हो चुके हैं। अभी तक इस्तीफा ना तो स्वीकार हुआ है, ना अस्वीकार। पार्टी में किसी को पता नहीं कि अध्यक्ष कौन है और विधायक दल का नेता कौन है।

कुछ तो बात है

कांग्रेस की तुलना में भारतीय जनता पार्टी को देखिए। सवा साल बात चुनाव होने हैं और चुनाव की तैयारी अभी से शुरू हो गई है। नया मुख्यमंत्री आ गया है। नया मंत्रिमंडल, नए सामाजिक समीकरण बन रहे हैं।  पार्टी ने एक बार फिर संदेश दिया है कि पटेल समुदाय जो कि उसका पारम्परिक वोटर रहा है वह उसे भूली नहीं है। उसके हाथ में फिर से नेतृत्व दिया है। सोशल इंजीनियरिंग, संगठन की भूमिका, कार्यकर्ता का महत्व- ये सब चीजें जो बीजेपी में दिखाई देती हैं वह दूसरी पार्टियों में नजर नहीं आतीं।

बौने लोग पद पा सकते हैं, कद कहां से लाएंगे

Delhi CM Kejriwal urges PM Modi to facilitate airlifting of oxygen from West Bengal, Odisha

अभी कुछ दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फिर से आम आदमी पार्टी का संयोजक चुन लिया गया। जब से पार्टी बनी है तब से अरविंद केजरीवाल ही संयोजक हैं। ये वो अरविंद केजरीवाल है जो राजनीति बदलने आए थे। कहते थे कि हम राजनीति का तरीका बदल देंगे और मूल्यों की राजनीति करेंगे। और पद से ऐसे चिपके हैं कि पूछो मत। मुख्यमंत्री भी हैं- फिर भी डर लगता है कि अगर पार्टी का संयोजक किसी और को बना दिया तो कहीं वह हम पर हावी ना हो जाए। ऐसे बौने लोग राजनीति में पद पर तो पहुंच सकते हैं लेकिन कद में बड़े नहीं हो सकते। अरविंद केजरीवाल के साथ वैसा ही है।

कुछ सवाल

भारतीय जनता पार्टी के कर्नाटक और उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदलने के पीछे क्या कारण था?

भाजपा में जब बड़े नेता अगर कोई गलत फैसला कर लेते हैं तो फिर क्या करते हैं?

पिछले सात सालों में विभिन्न राज्यों में भाजपा की स्थिति में क्या फर्क आया है?

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