कम सीटें आने के बावजूद और भी मजबूती से काम कर रहे प्रधानमंत्री।
प्रदीप सिंह।कहावत है कि मन के जीते जीत है,मन के हारे हार। अब इसके दो बहुत ताजा उदाहरण हैं कि किसने परिणााम को जीत माना और किसने हार माना? लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी की 240 सीटें आईं जबकि उससे पहले के चुनाव में उसकी 303 सीटें थीं। कांग्रेस की पहले 53 सीटें थीं जो 2024 में बढ़कर 99 पहुंच गईं। कांग्रेस ने इस परिणााम को अपनी जीत और भाजपा की हार माना। लेकिन भाजपा ने इसको न तो कांग्रेस की जीत माना और न ही अपनी हार माना। खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्योंकि वही सरकार के मुखिया थे।राजनीति में बहुत बार राजनीतिक इच्छाशक्ति की बात होती है। अब यह राजनीतिक इच्छाशक्ति है क्या? मेरे हिसाब से राजनीतिक इच्छाशक्ति का मतलब है जोखिम उठाने की क्षमता। चाहे वह संगठन का नेता हो,सरकार का नेता हो या राजनीतिक दल का नेता हो,उसमें जोखिम उठाने और उस पर खरा उतरने की जो क्षमता,जो विश्वास है,उसे ही राजनीतिक इच्छाशक्ति कहते हैं। जोखिम उठाने का यह मतलब नहीं है कि आप कुएं में कूद जाएं और कहें मेरे अंदर बड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति थी,मैंने जोखिम उठाया और कुएं में कूद गया। जिसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति होगी वह तैयारी करेगा कि कुएं में कूदने के बाद क्या करना है? उससे बाहर कैसे निकलना है। यह कला जिसको आती है उसी में राजनीतिक इच्छाशक्ति है। नरेंद्र मोदी ने इस कला को साकार रूप में पूरे देश को दिखाया है। 2014 में जब वह भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने और पार्टी लोकसभा चुनाव में उतरी तो उनकी पार्टी में भी ऐसे लोगों की कमी थी जो मानते थे कि भाजपा की सरकार बनने जा रही है। विपक्ष तो बिल्न्कुल ही नहीं मानता था। विपक्ष में ज्यादातर लोगों का मानना था कि हंग पार्लियामेंट आएगी। मिलीजुली सरकार बनेगी। बीजेपी में ही लोग कहते थे 160 से 180 सीटें आएंगी। साथ ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ 2002 के गुजरात दंगों को लेकर जिस तरह का अभियान चलाया गया और पूरी दुनिया में जिस तरह से उन्हें बदनाम किया गया, उससे लोगों का मानना था कि इस देश का एक बड़ा वर्ग मोदी का साथ कभी नहीं देगा। लेकिन नरेंद्र मोदी में उस समय भी राजनीतिक इच्छाशक्ति थी। तो उन्होंने 2014 में जिस तरह कैंपेन चलाया,लोगों से संवाद स्थापित किया,अपनी बात समझाई और अपने में भरोसा जगाया,उसका नतीजा हुआ कि भारतीय जनता पार्टी देश में पहली बार अकेले पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई। उसे अकेले 283 सीटें मिलीं। यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं थी। अटल बिहारी वाजपेई जैसा विराट व्यक्तित्व भी इस सफलता को हासिल नहीं कर पाया था जबकि उस समय भी भाजपा का संगठन वैसा ही था। उस समय भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ साथ था। कुछ बदला नहीं था। बदला क्या था? मोदी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनना और लोगों की उनसे उम्मीद कि वे देश,समाज और सरकारी व्यवस्था को बदल सकते हैं। मोदी उस भरोसे पर खरे उतरे तो 2019 में लोगों ने उन्हें पुरस्कृत किया और अकेले भाजपा की सीटें बढ़कर 303 हो गईं। देश में 2014 से लेकर 2019 के बीच में बहुत काम हुए और खासतौर से 2019 के बाद तो कई बड़े काम हुए,जिसमें अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर है। बहुत से लोग कहते हैं कि यह तो अदालत का फैसला था, लेकिन अदालत तो तब भी विचार कर रही थी जब मोदी नहीं आए थे। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद ही क्यों अदालत का फैसला आया? देखिए दुनिया बदलती है आपको देखकर। जब मालूम होता है कि किसका लक्ष्य क्या है और नीयत कैसी है। यही है राजनीतिक इच्छाशक्ति। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला आम राय से और राम मंदिर के पक्ष में आया। इसी तरह कोई मानता ही नहीं था कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 कभी हट सकता है। वहां की पार्टियां कहती थीं कि खून की नदियां बह जाएंगी। कोई भारत का झंडा उठाने वाला नहीं होगा। मोदी ने 2014 के चुनाव अभियान में जब जम्मू में पहली सभा हुई तो कहा था कि इस पर विचार होना चाहिए। 5 साल का समय दिया विचार के लिए और 5 अगस्त 2019 को संसद के प्रस्ताव के जरिए अनुच्छेद 370 और 35 ए को खत्म कर दिया। खून की नदी छोड़िए एक बूंद भी नहीं गिरी। इसी तरह के कई और काम हुए चाहे वह मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक का कानून हो या फिर आर्थिक सुधार हों। मोदी की सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि आप अगर अपने उद्योग के लिए सरकारी बैंक से कर्ज लेंगे तो उसे लौटाना पड़ेगा। अगर नहीं लौटाएंगे तो आपकी कंपनी आपकी नहीं रह जाएगी। आपने पिछले 11-12 सालों में नहीं सुना होगा कि कोई कॉर्पोरेट लोन डिफॉल्ट हुआ हो। पहले सारे सरकारी बैंक दिवालिया होने की कगार पर थे। आज सारे सरकारी बैंक लाभ में हैं। अब वे ज्यादा कर्ज देने की हालत में हैं। उनको भरोसा है कि जो कर्ज देंगे वह लौट कर आएगा। और लोगों में भी यह भावना आई है कि सरकारी बैंकों का से कर्ज लेकर भाग नहीं सकते। ऐसे ही और भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में पहला झटका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को लगा। जब भाजपा की सीटें 303 से घटकर 240 पर आ गईं। उस समय भाजपा उम्मीद कर रही थी कि उसकी अकेले 350 से ज्यादा सीटें आएंगी और एनडीए 400 से ऊपर पहुंच जाएगा, लेकिन उसकी उम्मीदों को गहरा धक्का लगा। इसके बाद मोदी विरोधी अभियान चलाने वालों ने फिर से कहना शुरू किया कि मोदी को तो गठबंधन की सरकार चलाना आता नहीं है। नतीजा आते ही कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के दो सहयोगी दलों तेलुगु देशम पार्टी और जनता दल यूनाइटेड की ओर चारा फेंका कि ये टूट कर आ जाएं तो कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बन जाएगी। इन दोनों में से कोई टस से मस नहीं हुआ। किसी ने बात करने की भी कोशिश नहीं की। उनको मालूम था कि भले ही मोदी की सीटें कम आई हैं लेकिन नीतियों,राष्ट्रीय एकता,राष्ट्र की सुरक्षा और राष्ट्र की उन्नति के मामले में स्थायित्व कहीं है तो मोदी के साथ है। उनको मालूम था कि उनकी राजनीति मोदी के साथ रहकर ही स्थायी रहेगी। तो जो लोग उम्मीद कर रहे थे कि मोदी गठबंधन की सरकार नहीं चला पाएंगे, उनकी सरकार जल्द ही गिर जाएगी,तीसरा कार्यकाल मोदी का अंतिम कार्यकाल है तो समझौते करेंगे,झुक कर चलेंगे, ज्यादा बड़े कदम नहीं उठाएंगे लेकिन हो गया इसका ठीक उल्टा। मोदी जिस तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से काम कर रहे है, ऐसा लग रहा है जैसे जीवन में पहली बार प्रधानमंत्री बने हैं और उनको इसी 5 साल में सब कुछ कर लेना है। मोदी का सबसे बड़ा गुण और सबसे बड़ा हथियार धैर्य है। 240 सीटें आने के बाद भी वे विचलित नहीं हुए। यही उनके फैसलों में दिख रहा है। सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी में प्रधानमंत्री इसके मुखिया होते हैं। इसमें गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री होते हैं। इन चार लोगों की यह कमेटी बनती है। अटल जी की सरकार में सीसीएस में सहयोगी दल के जॉर्ज फर्नांडिस डिफेंस मिनिस्टर के रूप में सदस्य थे। जबकि इस समय इसके चारों सदस्य भाजपा के ही हैं। उस समय लोकसभा अध्यक्ष का पद सहयोगी दलों को देना पड़ा था लेकिन 240 सीटें आने पर भी मोदी ने लोकसभा अध्यक्ष का पद किसी अन्य दल को नहीं दिया। पहले की गठबंधन सरकारों,चाहे वह अटल जी की रही हो या संयुक्त मोर्चा की, में सहयोगी दलों का भारी दबाव रहता था।

यूपीए की जब सरकार बनी थी तब चेन्नई से घोषणा हुई थी कि डीएमके से कौन मंत्री बनेगा और कौन सा विभाग वे लेंगे। इसकी घोषणा मनमोहन सिंह नहीं कर रहे थे। इसकी घोषणा करुणानिधि कर रहे थे। ऐसा कोई दृश्य 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद सामने नहीं आया। 2024 के बाद पाकिस्तान को भी शायद लगा होगा कि भारत कमजोर हो गया है। तो पहलगाम का नरसंहार किया और जवाब में ऑपरेशन सिंदूर हुआ। पाकिस्तान को उसके जीवन का सबसे बड़ा सबक सिखाया गया। चीन जो पिछले कई साल से सीमा पर तनाव बनाए हुए था, वह तनाव कम करने और बातचीत के लिए तैयार हो गया। 240 सीटें आने के बाद भी शी जिनपिन को समझ में आया कि मोदी की ताकत घटी नहीं है। मोदी और ज्यादा ताकत से काम कर रहे हैं। उनकी इच्छाशक्ति और बलवती हो गई है। मोदी ने 240 का जो दम दिखाया है तो विपक्षी दलों को समझ में नहीं आ रहा है कि ये ताकत कहां से आ रही है। कैसे आ रही है? यह होती है राजनीतिक इच्छाशक्ति कि हमारी नीयत सही है। हम सही काम कर रहे हैं। लोगों का हमें सहयोग मिलेगा। इसके बाद मोदी और भाजपा ने कमर कसी कि अब चुनाव में अपनी रणनीति बदलनी है। जो गलती 2024 में की अब आगे जो विधानसभा के चुनाव होने हैं, वहां नहीं होनी चाहिए। यानी लीडरशिप,नैरेटिव और संगठन तीनों को मिलकर चलना होगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में संगठन ढीला ढाला पड़ गया था। तो तीन पहिए वाली गाड़ी केवल दो पहियों पर चलाने की कोशिश हुई और नतीजा यह हुआ कि स्पीड घट गई। लेकिन उसके बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए तो जम्मू में भाजपा को अब तक की सबसे बड़ी सफलता मिली। अगर जम्मू अलग राज्य रहा होता तो जम्मू में भाजपा की सरकार बन गई होती। कश्मीर घाटी में तो बीजेपी का न कभी जनाधार था और न कभी होगा। जब तक वहां की डेमोग्राफी नहीं बदलेगी, कुछ नहीं बदलेगा। फिर महाराष्ट्र का चुनाव हुआ। वहां भाजपा ने लोकसभा चुनाव में बड़ी चोट खाई थी लेकिन विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पूरा पासा पलट दिया। ऐसी प्रचंड जीत हुई कि विपक्ष का तंबू कनात सब उखड़ गया। भाजपा लगातार तीसरे विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और अब तक के इतिहास की उसे सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। इसके बाद हरियाणा के चुनाव में भाजपा ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल कर सरकार बनाई। उसके बाद दिल्ली, जहां पहले 15 साल तक लगातार कांग्रेस की सरकार रही और फिर 11 साल तक अरविंद केजरीवाल की सरकार रही, में भी भाजपा ने विजय पताका फहरा दी। दिल्ली में तो माना जा रहा था कि अरविंद केजरीवाल को हराना संभव नहीं है। इससे पहले दिल्ली में भाजपा की सरकार 1993 में बनी थी। उसके बाद से अब बनी है। फिर बिहार का चुनाव भारतीय राजनीति में एक निर्णायक मोड़ लेकर आया है। भाजपा और एनडीए अगर यहां हार गया होता तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शायद अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ता और उनके विरोधियों का हौसला बढ़ गया होता। लेकिन बिहार के लोगों ने इस बात को समझ लिया कि वे केवल बिहार की सरकार के लिए वोट नहीं दे रहे है, वे देश की राजनीति के लिए वोट दे रहे हैं। तो ऐसा मैंडेट दिया कि किसी के मुंह से आवाज नहीं निकल रही है। अब कोई वोट चोरी की बात नहीं कर रहा है। राहुल गांधी, जो वोट चोरी की डुगडुगी लेकर घूम रहे थे, कहां चले गए हैं कुछ पता नहीं है। उनकी अपनी पार्टी के लोग कह रहे हैं कि गलत मुद्दा उठाया। उनके सहयोगी दल आरजेडी के लोग कह रहे हैं कि अपने साथ हमको भी डुबो दिया। जब एसआईआर या वोट चोरी का मुद्दा चल रहा था तो नरेंद्र मोदी जरा भी विचलित नहीं हुए। अपने नैरेटिव सामाजिक सामंजस्य और विकास पर कायम रहे। बिहार में यह लगातार दूसरा चुनाव है जहां भाजपा एनडीए में नंबर एक की पार्टी है और इस बार तो पूरे प्रदेश में नंबर एक की पार्टी बनी है।

इधर सरकार ने एक और बड़ा फैसला लिया है। 1920 से 1950 के बीच में बने श्रम कानून अब तक चल रहे थे। मोदी सरकार ने 2019-20 में लेबर कोड बनाया, लेकिन ट्रेड यूनियंस और राजनीतिक दलों का विरोध इस तरह का था कि उसको लागू नहीं कर पाए। 303 सांसदों वाली पार्टी भी उसको लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। कुल 29 श्रम कानून हैं। उनको जोड़कर चार लेबर कोड बनाए गए हैं। श्रमिकों की सुरक्षा, उनकी नौकरी की सुरक्षा, वेतन 7 तारीख को मिलेगा और अन्य दूसरे अधिकारों को लेकर अब दावा कर सकते हैं। नौकरी के कार्यकाल की सुरक्षा,स्वास्थ्य की सुरक्षा,गिग वर्कर्स, जो किसी सुरक्षा के दायरे में नहीं आते थे, के लिए भी कानून बन गया है और ये चारों लेबर कोड शुक्रवार से पूरे देश में लागू हो चुके हैं,लेकिन कहीं से कोई विरोध की आवाज सुनाई नहीं दी है। यह 240 का दम है। यह आता है जब आपकी नीयत सही हो। जब आपकी नीति और नीयत में कोई अंतर न हो। इससे पहले जीएसटी 2.0 में कई चीजें सस्ती कर भी सरकार ने बड़ा कदम उठाया। 240 के दम के आधार पर ही इनकम टैक्स में कमी, आरबीआई द्वारा इंटरेस्ट रेट में कमी, आर्थिक सुधार के बड़े कदम भी उठाए जा रहे हैं। सरकार को डेढ़ साल पूरा होने जा रहा है। किसी सहयोगी दल से आपने कोई असंतोष की बात नहीं सुनी होगी। जिस तरह का सामंजस्य है वो अपने आप में एक उदाहरण है कि गठबंधन की सरकार कैसे चलनी चाहिए। तो मोदी ने पूर्ण बहुमत की सरकार चलाकर दिखाया और देश के सामने गठबंधन की सरकार का एक मॉडल भी पेश किया कि सहयोगी दलों का पूरा सम्मान होना चाहिए लेकिन उनकी अनैतिक मांग पूरी नहीं की जाएगी। यह होता है लीडरशिप की इच्छा शक्ति का असर। अभी तो यह शुरुआत हुई है। आने वाले दिनों में हर क्षेत्र में बहुत बड़े कदम आपको उठते हुए दिखाई देंगे ।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



