#pradepsinghप्रदीप सिंह।

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के जो चुनावी नतीजे आए हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर केवल इन राज्यों को जीतने पर नहीं थी। जैसे अर्जुन की नजर चिड़िया की आंख पर थी, वैसे ही उनकी नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर है। विधानसभा चुनाव के जरिये वे लोकसभा चुनाव का लक्ष्य कैसे साध रहे थे, यहां इसकी बात करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी को मालूम था कि अगर इन तीन राज्यों में विपक्ष की जीत हो गई यानी कांग्रेस की जीत हो गई तो देश में एक नया नैरेटिव बनेगा। विपक्ष जीतेगा तो एक नया नैरेटिव बनेगा, वह प्रोत्साहित होगा, उसमें एकता की बात होगी और ज्यादा हमलावर होगी, बात सिर्फ इतनी नहीं है क्योंकि ये सब सामान्य बातें हैं।

यह बात आप अच्छी तरह से समझ लीजिए कि नरेंद्र मोदी को हराने के लिए देश के अंदर उनके राजनीतिक विरोधी ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय ताकतें लगी हुई हैं। उन अंतरराष्ट्रीय ताकतों को इन तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की हार से बड़ी शक्ति मिलती। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का एक हिस्सा किसी भी तरह से, किसी भी कीमत पर, किसी भी सूरत में नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाना चाहता है। इन राज्यों में कांग्रेस की जीत से उसके लिए रास्ता खुल जाता। उसके लिए नैरेटिव बनाने पर वे अरबों रुपये खर्च करने को तैयार हैं। नैरेटिव बनाने के लिए देश में ऐसे इंटेलेक्चुअल्स की, ऐसे पत्रकारों की कोई कमी नहीं है जो उनका साथ देने को तैयार हैं। उनके अलग-अलग कारण हैं। कुछ लोग नरेंद्र मोदी के आलोचक हैं, उनकी बात समझ में आती है। कुछ लोग नरेंद्र मोदी से नफरत करते हैं। कुछ लोग आरएसएस, बीजेपी, नरेंद्र मोदी तीनों से नफरत करते हैं और इन तीनों को किसी भी हालत में पराजित होते हुए देखना चाहते हैं। ऐसे लोगों को बाहरी शक्तियों का साथ मिलता है और ये दोनों मिलकर भारत में एक नैरेटिव बनाते हैं। हालांकि, यह शुरुआत आज से नहीं हुई है, पहले से होती रही है, लेकिन हाल की बात करें तो तथाकथित किसान आंदोलन उसी नैरेटिव का हिस्सा था कि कैसे सरकार को अस्थिर किया जाए, कैसे नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता पर चोट पहुंचाई जाए। वह कोशिश तब से अब तक जारी है। अलग-अलग टूल किट्स बनती रही है और बनती रहेगी।

मोदी को उखाड़ने का षडयंत्र

जॉर्ज सोरोस के बारे में आप जानते ही हैं। वे नरेंद्र मोदी को सत्ता से उखाड़ने के लिए एक बिलियन डॉलर खर्च करने को तैयार हैं। मोदी को सत्ता से हटाने के लिए बड़े पैमाने पर अगर लोग पैसा लेकर तैयार हैं तो आप समझ सकते हैं कि कितना बड़ा षड्यंत्र है और उस षड्यंत्र को बहुत बड़ी ताकत मिलती इन तीन राज्यों के चुनाव नतीजों से। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ सीधी लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच थी। उनको उन्हें आगे बढ़ाना है जो मोदी को चुनौती दे सकता है यानी दूसरी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को, उसको ताकतवर बनाना है। इन शक्तियों का यह खेल बहुत पुराना है। वह दो-तीन तरह से सत्ता परिवर्तन करती हैं। एक, उस देश के विपक्षी दल को मदद पहुंचा कर, दूसरे, ऐसे इंटेलेक्चुअल्स को, पत्रकारों को फंडिंग करके और दूसरी तरह से उनको मदद करके या उनकी सेवाएं खरीद कर जो नैरेटिव खड़ा कर सकें। तीसरा, ताकत के जरिये। उनको मालूम है कि यहां ताकत के जरिये करना संभव नहीं है। इस देश की सेना इस मामले में कभी पॉलिटिकल नहीं रही है और न ही इस तरह की सोच रखने वाले पॉलिटिकल लोगों का कभी साथ दिया है। पाकिस्तान और भारत में एक बड़ा फर्क यही रहा है। भारत में सेना का इस्तेमाल तख्तापलट के लिए नहीं किया जा सकता है, यह देश के अंदर की ताकतों को भी पता है और बाहर की ताकतों को भी पता है।

नैरेटिव का खेल

नरेंद्र मोदी जितने मजबूत होते जा रहे हैं उनके लिए खतरा और उतना बढ़ता जा रहा है। देश के अंदर जो लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम है उसको लग रहा है कि वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। मोदी के लिए इन तीन राज्यों में जीतना इसलिए जरूरी नहीं था कि तीन और राज्यों में भाजपा की सरकार बन जाएगी, भाजपा के सरकारों की संख्या राज्यों में बढ़ जाएगी, ये सब गौण मुद्दे हैं। मोदी का जो लक्ष्य है उसके सामने यह छोटी बातें हैं। बड़ी बात थी नैरेटिव बनाने की। मोदी का नैरेटिव है कि 2024 तक इंतजार ही मत करो। 2024 की लड़ाई को पहले ही सेटल कर लो। अब आप इस बात को समझिए, मोदी की रणनीति को समझिए कि 2024 की लड़ाई के लिए वह 2024 तक इंतजार करने को तैयार नहीं हैं। 2024 की लड़ाई को 2024 से पहले ही अगर सेटल किया जा सकता है तो कर लेना चाहिए। इन तीन राज्यों के चुनाव का इंतजार न केवल भारतीय जनता पार्टी को, कांग्रेस पार्टी को, बल्कि जितने भाजपा विरोधी दल हैं और तकते हैं उन सबको था। एआईयूडीएफ जो असम की पार्टी है, के नेता बदरुद्दीन अजमल के बयान से आपको इसका अंदाजा लग जाएगा। उन्होंने कहा कि हमें यह उम्मीद नहीं थी कि इन तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी जीतेगी। ये लोग इसे भाजपा की नहीं, मोदी की जीत मानते हैं। इन लोगों को मोदी को रोकना है। उनको भाजपा से कोई समस्या नहीं है। मोदी विरोधी ऐसे बहुत से लोग हैं जिनको भाजपा से समस्या नहीं है।

विपक्ष का तंबू उखड़ा

मोदी ताकतवर हैं, मोदी डिसाइसिव हैं, कड़े से कड़ा फैसला लेने का साहस रखते हैं, राजनीतिक इच्छा शक्ति है इसलिए जोखिम लेने की ताकत है। यह मोदी ही कर सकते हैं। चाहे वह बालाकोट की एयर स्ट्राइक हो, चाहे नोटबंदी हो, चाहे जीएसटी का हो या फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जिस तरह से उन्होंने भारत की ताकत, प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़ाया है, उन सबसे इनको डर लगता है। इसलिए उन्हें मोदी का विरोध करना जरूरी लगता है, उन्हें रोकना जरूरी लगता है। इन तीन राज्यों के चुनाव का लोकसभा चुनाव के रिजल्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा। विधानसभा चुनाव अलग है और लोकसभा चुनाव अलग है। लोकसभा चुनाव में मोदी अपने लिए वोट मांगने जाएंगे। मोदी जब अपने लिए वोट मांगने जाते हैं, तो इस देश का मतदाता अलग तरह से सोचता है। वह मोदी के अलावा फिर कहीं और दाएं-बाएं देखता ही नहीं है। वह सिर्फ और सिर्फ मोदी को देखता है और मोदी के कहे पर वोट डालता है। उन लोगों को पता था कि मोदी जब अपने लिए वोट मांगने जाएंगे, तब हमारे लिए लड़ाई और ज्यादा मुश्किल हो जाएगी, इसलिए मोदी को पहले कमजोर कर दो। और मोदी को यह था कि 24 की लड़ाई शुरू होने से पहले ही विपक्ष को हतोत्साहित कर दो, उनका तंबू उखाड़ दो। मोदी ने इन तीन राज्यों के चुनाव के जरिये एक तरह से विपक्ष का तंबू उखाड़ दिया है।

विपक्षी गठबंधन में होगा पुनर्विचार

अब आप यह मान कर चलिए, जैसा मैंने पहले कहा था कि अशोक गहलोत किसी भी हालत में जीतने वाले नहीं है, फिर से मुख्यमंत्री बनने वाले नहीं हैं। इसी तरह, मैं कह रहा हूं कि यह जो इंडी अलायंस है यह सिरे चढ़ने वाला नहीं है। इसके संकेत अभी से मिलने लगे हैं। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर कौन समझता कि इन तीन राज्यों के चुनाव नतीजे के बाद जो हताशा और निराशा विपक्षी खेमे में होगी उसका सबसे ज्यादा असर विपक्षी एकता पर पड़ेगा। उसका सबसे पहला शिकार इंडी अलायंस होगा। इंडी अलायंस में जो दल शामिल हैं उनके अंदर नए सिरे से विचार शुरू होगा कि इस अलायंस में होने का कोई फायदा है या इस अलायंस के साथ चलने का कोई फायदा है। इसकी वजह है। उनको यह बात समझ में आ रही है कि जैसे ही मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी का होता है बीजेपी और ताकतवर हो जाती है। लोग कांग्रेस को देखना नहीं चाहते हैं। यह बात आप समझिए, आप तेलंगाना के अपवाद पर ध्यान मत दीजिए। इस देश का मतदाता, खासतौर से जब लोकसभा चुनाव की बात आती है, तो वह कांग्रेस को फूटी आंख नहीं देखना चाहता है। वह किसी भी हालत में कांग्रेस को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहता है।

कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा

चुनाव के बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए, लेकिन मैं अभी कह रहा हूं कि मई 2024 में जब लोकसभा चुनाव का नतीजा निकलेगा तो कांग्रेस पार्टी की आज लोकसभा में जो 53 सीटें हैं उसकी संख्या इससे और कम हो जाएगी। कांग्रेस की सीटें घटने वाली हैं, यह इन तीन राज्यों के चुनाव नतीजों ने तय कर दिया है। अब आप कहेंगे कि अभी ऊपर आप कह रहे थे कि विधानसभा चुनाव के नतीजे का लोकसभा चुनाव के नतीजे पर असर नहीं पड़ता और फिर कह रहे हैं कि तीन राज्यों के चुनाव नतीजे के बाद कांग्रेस की लोकसभा की सीटें घट जाएंगी। एक मल्टीप्लायर इफेक्ट होता है। किसी भी घटना का मल्टीप्लायर इफेक्ट कई दिशाओं में होता है, राजनीति में मल्टी डाइमेंशनल भी होता है। इन तीन राज्यों के नतीजे का असर इन तीन राज्यों पर तो है, इसका असर सबसे ज्यादा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ेगा। थोड़ी देर के लिए कल्पना कर लीजिए कि अगर इन तीनों राज्यों में कांग्रेस जीत गई होती तब आप कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मनोबल की कल्पना कीजिए और आज कीजिए। मोदी ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मन में एक बात स्थापित कर दी कि जब भी मुकाबला मोदी और कांग्रेस के बीच में होगा, कांग्रेस कभी नहीं जीतेगी।

भारत जोड़ो यात्रा रही बेअसर

भारत जोड़ो यात्रा के जरिये जो एक नैरेटिव बनाने की कोशिश हुई थी, अगर तीन राज्यों के चुनाव कांग्रेस जीत थी तो उस नैरेटिव को और तेजी से आगे बढ़ाया जाता। मध्य प्रदेश में जहां से यह भारत जोड़ो यात्रा गुजरी, 21 विधानसभा क्षेत्र से गुजरी, उनमें से 17 में कांग्रेस पार्टी हार गई। इससे आप समझ लीजिए कि भारत जोड़ो यात्रा का असर क्या हुआ। उत्तर भारत में भारत जोड़ो यात्रा दो राज्यों में सबसे ज्यादा समय रही। एक मध्य प्रदेश में और दूसरा राजस्थान में। वहां के चुनाव नतीजे आपके सामने हैं। इन दोनों राज्यों के अलावा दक्षिण में वह यात्रा सबसे ज्यादा दो राज्यों तमिलनाडु और केरल में रही। तमिलनाडु में कांग्रेस पार्टी कोई बड़ी प्लेयर नहीं है। वह डीएमके की पिछलग्गू है और उसकी कृपा पर निर्भर है। केरल में उसकी परीक्षा होनी बाकी है। केरल के बारे में मैं अभी से कह रहा हूं कि वहां भी कांग्रेस पार्टी की स्थिति खराब होने वाली है। पिछले लोकसभा चुनाव में जिन राज्यों में कांग्रेस को सबसे ज्यादा कामयाबी मिली थी वह दक्षिण के दो राज्य थे तमिलनाडु और केरल जहां से सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस पार्टी को आई थी, लगभग आधी सीटें। कम से कम केरल में तो सीटें घटने वाली है। तमिलनाडु में यह इस बात पर निर्भर करेगा कि डीएम उसे कितनी सीटें देती है।

मोदी विरोधियों की बोलती बंद

तीन राज्य जीतकर मोदी ने कांग्रेस की लोकसभा की परफॉर्मेंस अभी से तय कर दी है। यह मोदी की राजनीति है, यह नए भारत की राजनीति है, यह नए भारत का संदेश है। इन तीन राज्यों के लोगों ने इस बात को समझ लिया था। मैं मानता हूं कि मतदाता आपसे हमसे ज्यादा समझदार होता है। उन्होंने यह समझ लिया था कि इन तीन राज्यों के चुनाव से भले ही लोकसभा के चुनाव पर असर न पड़े लेकिन माहौल बनाने के लिए इनका असर पड़ेगा, तो उस नैरेटिव को ही खत्म कर दिया। एक दूसरा नैरेटिव जो चल रहा था कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान की 65 में से 62 सीटें बीजेपी जीत चुकी है, तो इस बार तो सीट कम होना ही है, ऐसा बोलने वालों के मुंह बंद हो गए हैं। अब उनको लग रहा है कि सीटें कम तो होने वाली नहीं है, बढ़े न तो यही बहुत बड़ी बात है। विपक्षी खेमे में भगदड़ है, उनके तंबू-कनात उखड़ चुके हैं। केवल तीन राज्यों के चुनाव ने यह तय कर दिया है। मोदी की रणनीति यही है कि लड़ाई के मैदान में आने से पहले ही विपक्ष को ध्वस्त कर दो और वह उन्होंने कर दिया है।

इंतजार कीजिए कि आने वाले दिनों में किस तरह से विपक्षी गठबंधन के अंदर लड़ाई होती है, किस तरह से विपक्षी गठबंधन के अंदर विरोध के स्वर सुनाई देते हैं, किस तरह से कांग्रेस के खिलाफ इस गठबंधन के अंदर से आवाजें उठना शुरू होती है। यह है मोदी की रणनीति कि केवल जीतो नहीं, अपने विपक्षी को सिर्फ हराओ नहीं, उसके खेमे में भगदड़ मचा दो, उसके खेमे में हताशा और निराशा का माहौल बना दो और वह नरेंद्र मोदी ने कर दिया है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)